चिकुनगुनियालघु लेख

दोस्तों, चिकुनगुनिया ये अजीब नाम एक बिमारीका है| यह बिमारी मच्छरोंके कारण फैलती है| गत २-३ सालोंपहले इसका फैलाव हुआ था| चिकुनगुनिया याने झुका हुआ आदमी| इस बिमारी में जोडोंके दर्दसे आदमी टेढा-मेढा होता है| इसलिये इसका ऐसा नाम पडा है|

कारण

चिकुनगुनिया एक विषाणुजन्य बुखार है| ये विषाणू ईडस और कभी कभी क्युलेक्स नामक मच्छरोंसे फैलते है| इनमेंसे ईडस से अधिक| ये ईडस मच्छर घर और इर्दगीर्द जमा पानी में बढते है| मच्छर काटनेके ४-७ दिनोंमें लक्षण नजर आते है|

रोगनिदान

ठंड लगाकर बुखार, सिरदर्द, मध्यम या अधिक बुखार चलता है| कभी कभी बारीक फसियॉं आती है| इस बुखारमें हाथ, पाव, पीठ और जोडोंमे बहुत दर्द रहता है| कुछ लोगोंकी आँखे लाल दिखती है| बगल, जांघ या गर्दन में गांठसी आती है| इसकी बारीक फसियॉं हर हफ्ते आती जाती रहती है| इस बिमारीमें जोडोंमें सूजनके साथ अकडन और दर्द होता है| हाथ पैरोंकी अंगुलियॉं, कलाई, कोहनी, कंधा, पीठकी हड्डी, जॉंघे, घुटने, आदि सभी जोडोंमें दर्द और सूजन होती है| हलचल मुश्किल और ददनाक होती है| जोडों में दर्द महिनोंतक रहता है| कभी कभी दर्द सालोसाल भी रहता है| लेकिन इस बिमारीमें बुखारसे रोगी मरता नही है| कभी कभी बिमारीसे उल्टीमें कालासा रंग आता हैया नाकसें खून निकलता है|

रक्त की जॉंच

रक्तपरिक्षणसे बिमारीका निश्चित निदान हो सकता है| इसके लिये एलिझा, पी.सी.आर. आदि विषाणुदर्शक परिक्षण है| रोग फैलनेकी जानपदिक स्थिती में इस परिक्षणकी आवश्यकता नही होती| क्योंकी रोग आसानीसे पहचाना जा सकता है| आवश्यकता होनेपर सरकारकी ओर से परिक्षण हो सकते है|

प्राथमिक इलाज

इस बिमारीके लिये दवा उपलब्ध नहीं है| सामान्यत: यह बिमारी कुछ हप्तोंमें अपने आप ठीक होती है| दवा के रूप में एस्पिरिनके अलावा कोईभी तापशामक या वेदनाशामक दवा काफी है| एस्पिरिन या स्टेरॉईड ना ले| इससे बिमारी बढती है|

रोकथाम

इस बिमारीमें मच्छरनियंत्रण महत्त्वपूर्ण मुद्दा है| यह मच्छर घरमें और आस पास के खाली डिब्बे, गुलदस्ते, हौज, एअरकुलरका ट्रे, फालतू टायर्स, मटके, फुटी बोतलें आदि में जमा पानीमें पलते है| हर हफ्ते ये जमा पानी निकाले और फफलतू चिजोंका सफया करे| मच्छर घर में ना घुसे इसलिये खिडकियों-दरवाजोंपर जालियॉं लगायें, सोते समय मच्छरदानियॉं खासकर मच्छरनाशक मच्छरदानी, मच्छर रोधक धुआँ, अगरबत्ती आदि हरसंभव उपायसे मच्छरों को दूर रखे| पायरेथ्रम आदि कीटनाशकोंके फव्वारेके उपयोगसे मच्छर नियंत्रित होते है| इस हेतु प्रति हेक्टर २५० मि.ली. रसायनका उपयोग करते है| हर फव्वारे के बाद १० दिन बाद फिरसे फव्वारा मारे| इन फव्वारोंसे कई हफ्तोंतक ईडस-मच्छर बिलकुल कम होते है| डेंग्युमें भी यही उपाय करे| चिकुनगुनियाके लिये कोई प्रतिबंधक टिका उपलब्ध नही है|

सूचना

मच्छरप्रतिबंध उपायोंका पडोसियों के साथ एकत्रित उपाय करे| इस बिमारीमें सलाईन-इंजेक्शनका कोई लाभ नही होता| केवल बुखार की गोलियॉं काफी है| आयुर्वेदिक या होमिओपॅथीक ईलाज करके देखे| इस बुखारमें कालीसी उल्टी या नाकसे खून निकलनेपर तुरंत वैद्यकीय सलाह ले|

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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