प्रजनन काल में डिंबग्रंथियों व गर्भाशय में हर महीने एक चक्र के रूप में होने वाले बदलाव को माहवारी कहते हैं। किशोर लड़कियों में शुरुआत के कुछ चक्र अनियमित होते हैं। परन्तु यह एक साल के अंदर अंदर ये नियमित हो जाते हैं।
माहवारी के चक्र की शुरुआत महिला हारमोनों द्वारा गर्भाशय अस्तर (यानि गर्भाशय की अंदरूनी भाग) के बनने के साथ होती है। गर्भाशय अस्तर इस कोशिश में बनता है कि कुछ दिनों बाद एक निषेश्चित अण्डाणु गर्भाशय में पहुँचेगा। यह चक्र के ५ वे दिन से 10वें से 1३ वें दिन तक बनना शुरु होता है। माहवारी के बीच च्रक14 दिन निेकलता है । डिंब नली में निषेचन होता है तीन से चार दिन बाद गर्भाशय में रोपित होता है।अगर चक्र के दौरान गर्भ न ठहरे तो चक्र के अंत तक यह झिल्ली नष्ट होकर गिरने लगती है। और यही मासिक रक्त स्त्राव के रूप में बाहर आती है।
महावारी में दोनों महिला हारमोनों यानि कि ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन की भूमिका होती है। दोनों ही डिंब ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित होते हैं। मासिक चक्र का पहला हिस्सा यानि डिंबशरण तक का, मुख्यत: ऐस्ट्रोजन द्वारा नियंत्रित होता है। अंडक्षरण दो मासिक स्त्रावों के लगभग बीच में होता है। इस समय तक खून में प्रोजेस्ट्रोन की मात्रा बढ़ने लगती है जिससे गर्भाशय अस्तर पकने लगता है। अगर निषेचन और निषेचित अंडे का निरोपण न हो तो ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन दोनों की मात्रा में गिरावट आने लगती है और गर्भाशय अस्तर का क्षरण होने लगता है। यह जल्दी की थक्कों के रूप में बाहर आने लगता है। माहवारी के समय दोनों हारमोनों की मात्रा सबसे कम होती है।
मासिक चक्र- रक्तस्त्राव के दिन अंडक्षरण के कुछ दिन और अन्य अंडाणुरहित अवधी |
माहवारी चक्र का चक्र आमतौर पर 28 दिनों का होता है। इसमें चक्र के अंत में 3 से 4 दिनों में रक्त स्त्राव होता है। अंडक्षरण अगली बार रक्त स्त्राव होने के करीब 12 से 14 दिन पहले होता है। हर महिला में रक्त स्त्राव की अवधि भी अलग अलग (लगभग 1 से 5 दिन) की हो सकती है। यह हारमोन की मात्रा पर निर्भर रहता है।
हर महीने गर्भाशय अस्तर के इस तरह बाहर निकलने का काफी बड़ा फायदा है। इससे गर्भाशय को किसी भी तरह के संक्रमण से रोकथाम का प्राकप्राक़तिक तरीका से बचाता है। गर्भाशय में कोई भी संक्रमण वो मासिक के स्त्राव के साथ बाहर निकल जाता है। माहवारी में अंड – वाहिनी (डिंब वाही नली) शामिल नहीं होती हैं, इसलिए इन में संक्रमण होने की संभावना ज्यादा होती है।
माहवारी समय छुआछुत का कोई कारण नही |
माहवारी में कुछ भी असामान्य या अस्वच्छ नहीं होता। अधिकांश समुदायों में सैंकड़ों सालों से माहवारी को बुरा और अशुभ माना जाता है। माहवारी के समय औरतों को अलग करके बिठा देने का रिवाज़ आज भी पूरे भारत में काफी आम है। यह एकदम गलत और आधारहीन है। यह काफी अजीब है क्योंकि रजोदर्शन आमतौर पर अधिकांश समुदायों में बहुत ही खुशी की घटना मानी जाती है।
लड़कियों में दूसरे स्तर के बदलावों में बगलों और जननेद्रियों के ऊपर बाल आना और स्तनों में मामूली वृध्दि शामिल हैं। अंडक्षरण जल्दी ही शुरु हो जाता है कई बार पहले चक्र में ही। जिन समुदायों में बचपन में शादी कर देने का रिवाज है उनमें कई बाद लड़कियों को मेनाराक का अनुभव ही नहीं होता। ऐसा इसलिए क्योंकि वो पहले ही चक्र में गर्भ धारण कर लेती हैं।
मासिक चक्र- रक्तस्त्राव के दिन अंडक्षरण के कुछ दिन और अन्य अंडाणुरहित अवधी |
रजोदर्शन के कुछ महीनों बाद माहवारी नियमित रूप से होने लगती है। इसके बाद बीच में माहवारी का न होना अक्सर गर्भ ठहरने का सूचक होता है। हांलाकि ऐसा कई और स्थितियों में भी हो सकता है। हर रजस्वला लड़की को इसके बारे में बताया जाना चाहिए। दुर्भाग्य से कई लड़कियों (या उनकी माँओं) को बहुत देर से समझ में आता है कि वो गर्भवती हैं। और तब तक चिकित्सीय गर्भपात का समय निकल चुका होता है। महावारी बंद होना एक चिंतनीय है, खासतौर पर तब जबकि इस बीच यौन संबंध हुआ हो।
मासिक चक्र- रक्तस्त्राव के दिन अंडक्षरण के कुछ दिन और अन्य अंडाणुरहित अवधी |
माहवारी के समय इस्तेमाल होने वाला कपड़ा या गद्दी (पैड) ज्यादातर ग्रामीण औरतें घर में कपड़े से बनी गद्दियाँ इस्तेमाल करती हैं। इसमें कोई बुराई नहीं है अगर ये साफ हों। गद्दियाँ रूई के कपड़े से बनी धूप में सूखी हुईं होनी चाहिए। पुरानी धोतियाँ इसके लिए अच्छी रहती हैं। गंदे कपड़े के इस्तेमाल से छूत होने का खतरा होता है। सौर कुकर में घर में बने हुई गद्दियों को कीटाणुरहित किया जा सकता है। शहरों में बाज़ार में भी माहवारी में इस्तेमाल करने के लिए पैड मिलते हैं। इनमें रूई भरी होती है जो आसानी से खून को सोख लेती है। इसलिए इनके इस्तेमाल से काफी सुविधा रहती है। परन्तु ये काफी मंहगे होते हैं।