नगर निगम की झाडू सफाई |
तपेदिक भारत और अन्य कई विकासशील देशों की आम बीमारी व जनस्वास्थ्य समस्या है। तपेदिक रोग बैक्टीरिया (माईकोबैक्टीरियम) के संक्रमण से होता है, पर गरीबी, कुपोषण व क्षीण प्रतिरक्षा तंत्र जिससे शरीर की बीमारियों से लड़ने की ताकत कम हो जाती है उदाहरण के लिये एच आई व्ही और अस्वच्छ और संकरे अंधेरे कमरे में रहवास इस बिमारी के मख्य कारक है।
भारत में लगभग सभी को बचपन में ही तपेदिक का संक्रमण हो जाता है लेकिन सबको बीमारी नही होती| कुल मिलाकर एक हजार आबादी में ३०५ तक तपेदिक के रोगी पाये जाते है| इसमे से आधे बिना उपचार के या निदान के रह जाते है| इलाज होनेवालों में लगभग आधे निजी डॉक्टरों पे पास इलाज लेते है और आधे सरकारी अस्पतालों में| इसलिये तपेदिक की समस्या कुछ मुश्किल सी हो रही है| सस स्थिती में ये भी कहॉ जाता है की मवेशियों में तपेदिक काफी प्रचलित है और मानवी टीबी का ये भी एक महत्त्वपूर्ण कारण है|
दुनिया में औद्योगिक क्रान्ति से पहले तपेदिक दुनिया के काफी बड़े हिस्से में एक आम बीमारी है। खासकर मज़दूर वर्ग में रहन-सहन के खराब हालात के कारण यह बीमारी बहुत होती है। तपेदिक की दवाई खोजे जाने और इसके बड़े स्तर पर इस्तेमाल से पहले ही इंग्लैंड में तपेदिक की बीमारी पर काफी अंकुश लग गया था। इसका कारण था लोगों के रहन सहन के हालातों में सुधार होना। इससे यह साबित हो जाता है कि तपेदिक की बीमारी एक स्वास्थ्य समस्या से ज़्यादा आर्थिक सामाजिक समस्या है। इलाज में जर्बदस्त सुधार के बावजूद भी भारत में आज भी तपेदिक एक बड़ी नागरिक स्वास्थ्य समस्या है। हर एक हज़ार लोगों में से 20 से 30 लोग तपेदिक से प्रभावित हैं।
तपेदिक ज़्यादातर हवा के माध्यम से फेफडे के टी बी रोगी व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को फैलता है। कभी-कभी किसी बीमार मवेशियों के कच्चे दूध पीने से भी व्यक्ति को आँतों का तपेदिक हो जाता है। तपेदिक का रोगी जब एक बार खॉंसता है तो वो एक साथ लाखों तपेदिक के बैक्टीरिया हवा में छोड़ता है। वहॉं से ये बैक्टीरिया सीधे दूसरे व्यक्ति के श्वसन क्रिया के रास्ते से फेफड़ों में घुस सकते हैं। यह बूँदें धूल में भी समा सकती हैं और इस तरह बैक्टीरिया कई दिनों तक इसमें ज़िन्दा रह सकते हैं। यह धूल भी किसी भी व्यक्ति के फेफड़ों में घुस सकती है और इससे भी छूत फैल सकती है। बिना साचे समझे थूकते रहने से भी तपेदिक फैलनू का खतरा बढ़ता है। इसलिए तपेदिक के रोगी को बोलते, खॉंसते और छींकते समय मुँह पर कपड़ा रखना चाहिए।
तपेदिक के बॅक्टीरिया |
ज़्यादातर लोगों को किसी पास के रिश्तेदार या परिवार के सदस्य से ये छूत लगती है। बच्चों को भी यह छूत परिवार के सदस्य या पड़ोस से ही लगती है। ज़्यादातर बच्चों को यह संक्रमण दो साल के भीतर ही लग जाती है। तपेदिक एक चिरकारी शोथकारी बीमारी है। बीमारी किसी व्यक्ति पर किस तरह असर करती है यह व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है। तपेदिक से आमतौर पर फेफड़ों पर असर होता है। परन्तु इससे कोई भी अंग प्रभावित हो सकता है। जैसे लसिका ग्रंथियॉं, त्वचा, दिल, दिमाग, आँतें, हडि्डयॉं, गर्भाशय आदि। इस अध्याय में हम मुख्यत: फेफड़ों के तपेदिक की बात करेंगे। बच्चों और बड़ों में तपेदिक की बीमारी की प्रवृति अलग अलग होती है। बच्चों में हुए तपेदिक पर अक्सर ध्यान ही नहीं जाता। हम दोनों ही तरह के तपेदिक की बात करेंगे।
गम्भीर श्वासनली शोथ, जिसमें हल्का बुखार हो या न हो, भाप लेने से ही फायदा हो जाता है। इससे बलगम ढ़ीला होकर निकल जाता है। परन्तु अगर बुखार भी हो (जिसका अर्थ है कि संक्रमण है) तो कोट्रीमोक्साज़ोल या डोक्सीसाइक्लीन या ऐमोक्सीसिलीन देना ज़रूरी है। वायरस संक्रमण में इन दवाओं से असर नहीं होगा। परन्तु वायरस संक्रमण आमतौर पर अपने आप एक दो हफ्तों में ठीक हो जाता है।
पहली बार संक्रमण
अगर किसी बच्चेको (या व्यक्तिको) का पहली बार तपेदिक के बैक्टीरिया से सम्पर्क हुआ है तो शरीर की प्रतिक्रिया को प्राथमिक प्रतिक्रिया कहते हैं। जहॉं से बैक्टीरिया घुसे हों या वहॉं पर एकदम थोड़ा सा शोथ और निकटतम लसिका ग्रंथियों में जल्दी से सूजन होती है। फेफड़ों में प्राथमिक तपेदिक में कुछ ही हफ्तों में रोग अपने आप ठीक हो जाता है। इससे बच्चे में तपेदिक के लिए प्रतिरक्षा विकसित हो जाती है।
दूसरी बार संक्रमण से होनेवाला तपेदिक
अगर किसी व्यक्ति का दूसरी बार तपेदिक के बैक्टीरिया से सम्पर्क हुआ है तो फेफडोमे शोथ होकर पीप बनता है। यह तपेदिक बीमारी फेफडोंमे सीमीत रहता है। यही इसका आम उदाहरण है। बीसीजी से प्रतिरक्षण असल में बनावटी रूप से उत्पन्न प्राथमिक जटिलता है (इसमें त्वचा पर असर होता है)! इससे बच्चों को ऊपर बताए गए खतरों से बचाया जा सकता है।
आगे