काली खॉंसी |
यह बच्चों को होने वाली एक जीवाणू जनित बीमारी है। इसमें एक बार खॉंसी शुरू हो जाने पर लगातार बनी रहती है। यह एक गम्भीर समस्या बन जाती है। सौभाग्य से टीके से इससे बचाव हो सकता है। जब तक इसका टीका नहीं बना था यह बीमारी बहुत आम थी। इससे बच्चे के स्वास्थ्य पर लम्बे समय के लिए असर पड़ता था। यूनीवर्सल टीकाकरण से यह बीमारी कम हो गई है, फिर भी कुछ ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में जहॉं स्वास्थ्य सेवाएँ नहीं पहुँच पाती है, अभी भी बहुत से बच्चे सस बिमारी के शिकार होते है ।
संक्रमण एक रोगी बच्चे से दूसरे में हवा के रास्ते फैलती है। आम तौर पर यह खॉंसी बच्चे को दो साल की उम्र तक होती है। इसके बाद इस संक्रमण के होने का खतरा कम होता है । इसलिए डीपीटी (ट्रिपल बैक्सीन) में से परटयूसिस को दो साल के बाद निकाल दिया जाता है। इस संक्रमण से श्वसन तंत्र के रास्ते में शोथ हो जाता है।
इस बीमारी में बच्चे को लगातार खॉंसी के दौरे पड़ते हैं। खॉंसी इतनी लगातार होती है कि बच्चे को बीच मे सॉंस लेने के लिए भी ठीक से समय नहीं मिलता। इससे बच्चे को ऑक्सीजन की कमी का सामना करना पड़ता है। और वा नीला हो जाता है । जब खॉंसी का दौरा थोड़ा रूकता है तो लम्बी गहरी सॉंस की सीटीनुमा आवाज़ आती है। (इसे व्हप् कहते है) बच्चे को इससे काफी तकलीफ होती है और उसे उल्टी भी हो सकती है। खॉंसी से पैदा होने वाली दबाव से नेत्र श्लेष्मा में खून की नसिकाएँ फट सकते है और आँखों में खून के धब्बे बनते है।
इसका निदान खॉंसी के दौरे पर ही निर्भर करता है। परन्तु इस समय तक इलाज के लिए काफी देर हो चुकी होती है। शुरू में बच्चे को सूखी खॉंसी होती है। उसकी आँखों में से पानी निकलता है। और उसे जुकाम (श्लेष्म स्त्रावी अवस्था) और बुखार भी हो जाता है। यह काफी संक्रमणकारी अवस्था होती है। इस अवस्था में संक्रमणग्रस्त बच्चे के साथ असुरक्षित सम्पर्क से एक दो हफ्ते के अन्दर ही यह बीमारी दूसरे बच्चे को लग सकती है।
इलाज केवल पहली अवस्था में ही उपयोगी होता है। अगर हम काली खॉंसी का निदान पहली अवस्था (श्लेष्मा स्त्रावी अवस्था) में ही कर सकें तो ऐरीथ्रोमाइसिन की गोलियों से फायदा हो सकता है। परन्तु जादातर इस अवस्था में इस बीमारी का निदान असम्भव होता है।
एक बार खॉंसी के दौरे शुरू हो जाने के बाद इस बीमारी का कोई इलाज नहीं होता। यह कुछ महीनों तक चलती है। इसलिए ऐसे में हमें बच्चे की सम्हलनेमें मदद करनी चाहिए। उसे ठीक से खिलाना पिलाना चाहिए। कोडीन खॉंसी को थोड़ा रोकने में मददगार हो सकती है। अन्य बॅक्टीरिया से द्वितीयक संक्रमण हो तो उसके लिए एजिथ्रोमैसिन गोली दी जा सकती है|
काली खॉंसी में भूख न लगने, उल्टियॉं आने और लगातार बीमारी से बच्चा कुपोषित हो जाता है। इसके अलावा इससे सॉंस की और बीमारियॉं जैसे निमानिया, फुप्फुसीय शोथ या पुराना तपेदिक का रोग फिर से हो सकता है। बार-बार और अचानक पड़ने वाले खॉंसी के दौरों से कभी-कभी दम घुटने से मौत भी हो सकती है।
छाती में दवा लेले के लिए स्पेसर का उपयोग |
न्यूमोनिया फेफड़ों के वायुकोशों के तीव्र शोथ को कहते हैं। इसके विपरीत तपेदिक एक लम्बे समय तक चलने वाला चिरकारी रोग है। न्यूमोनिया से बहुत अधिक मौतें होती हैं। यह संक्रमण कई तरह से सूक्ष्म जीवाणुओं जैसे वायरस, बैक्टीरिया या फफूँद से होती है। बैक्टीरिया से होने वाला न्यूमोनियाया सबसे ज़्यादा आम है।
तेज़ बुखार, खॉंसी, छाती के प्रभावित हिस्से से दर्द, और तेज़ और गहरी सॉंस आना इसके प्रमुख लक्षण हैं। अगर बुखार के साथ तेज़ सॉंस चले तो यह निमोनिया हो सकता है। बडों में प्रति मिनट ३० से अधिक बार सांस चले तो यह असामान्य है|
छाती के एक्स-रे में एक सफेद धब्बा दिखाई देता है इससे पता चलता है कि निमोनिया किस हिस्से में है। बच्चों में उम्र के अनुसार प्रतिमिनट सांस की सामान्य गिनती अलग रहती है| बहुत छोटे बच्चों में अक्सर उल्टी, सुस्ती या फेट फुलना यह प्रमुख लक्षण होते है और हमे हमेशा जॉंच करना चाहिए की ऐसे बच्चे में निमोनिया तो नही है?
बच्चों व बड़ों दोनों में ही निमोनिया एक गम्भीर बीमारी है। इससे अक्सर मौत भी हो जाती है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता बच्चों में निमोनिया के ज़्यादातर मामलों में जीवाणु रोधी दवाओं से आसानी से प्राथमिक इलाज कर सकते है। पहले के मामलों से पता चलता है कि अगर निमोनिया का इलाज शुरू में ही हो जाए तो निमोनिया से कई कम मौतें होती हैं।
गॉंवों में इन्जैक्शन की जगह मुँह से पैनसेलीन दिया जा सकता है। इसके अलावा ऍमॉक्सिसीलीन, ऐरिथ्रोमाइसिन या कोट्रीमोक्साज़ोल (शिशु छोडके) भी दी जा सकती हैं। दर्द और बुखार कम करने के लिए ऐस्परीन या पैरासिटैमोल दी जा सकती है। कम से कम एक हफ्ता तक पूरा आराम ज़रूरी होता है। अच्छे इलाज से निमोनिया के रोगी एक या दो हफ्तों में ही ठीक हो जाते हैं। लेकिन अच्छा होगा की इलाज शुरू करे पर उसके बाद डॉक्टर के पास ज़रूर भेजना चाहिए।