किसी गॉंव जैसे शरीर भी विभिन्न छोटे बड़े तंत्रों का एक संघ होता है। शरीर के पास जानकारी बॉंटने और उसका विश्लेषण करने उसके प्रति प्रतिक्रिया करने, विभिन्न तंत्रों को नियंत्रित करने और उन सब के बीच तालमेल बिठाए रखने की व्यवस्था होती है। तंत्रिकाएँ और हॉरमोन ये काम करते हैं। तंत्रिका तंत्र शरीर के अन्दर और बाहर से संवेदनाएँ ग्रहण करता है, उन्हें समझता है और उनकी प्रतिक्रिया के लिए पेशियों और ग्रंथियों तक सन्देश पहुँचाता है।
मनुष्य का मस्तिष्क हज़ारों सालों में धीरे-धीरे विकसित हुआ है। मानव रूप विकसित होने से पहले मस्तिष्क को केवल कुछ ही काम देखने होते थे- जैसे कि खाना इकट्ठा करना, प्रतिरक्षा और प्रजनन। विकास के साथ-साथ मस्तिष्क और काम करने लगा और इस तरह से मनुष्य का मस्तिष्क बना। मस्तिष्क और तंत्रिकाएँ बहुत सारे विद्युत सन्देशों द्वारा काम करते हैं।
तंत्रिका तंत्र |
तंत्रिका तंत्र के दो भाग होते हैं – केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र और परिसरीय तंत्रिका तंत्र। मस्तिष्क और मेरुदण्ड केन्द्रिय तंत्रिका तंत्र बनाते हैं।
मस्तिष्क को मुख्यत – तीन भागों में बॉंटा जाता है अग्र, मध्य और पश्चमस्तिष्क। मस्तिष्क के निचले भाग में से मेरुदण्ड निकलता है। ऊपर से देखने में हमें प्रमस्तिष्क दिखाई देता है। जो सीधे दो भागों में बंटा होता है। दोनों भाग एक जैसे दिखते हैं परन्तु उनके काम अलग-अलग होते हैं। सोचना, रचनात्मक कार्य, बोलना, संवेदनाएँ महसूस करना (जिनमें देखना और सुनना भी शामिल हैं) हलचल का नियंत्रण करना और उसका सन्तुलन बनाना आदि जटिल काम प्रमस्तिष्क करता है।
पश्चमस्तिष्क विभिन्न स्थितियों में सन्तुलन बनाए रखने का काम करता है। प्राणी विकास की शुरूआती अवस्थाओं में केवल मध्य मस्तिष्क ही हुआ करता था। यह मध्य मस्तिष्क बहुत सारे वैसे कार्य सम्भालता है जो कम विकसित जीवों में भी होते हैं। सॉंस लेने, दिल की धड़कन, भूख प्रजनन क्रिया और शरीर के तापमान का नियंत्रण।
काटे जाने का प्रकार | वर्णन |
क्लास १ (हल्का) | साधारण त्वचा पर चाटना, खून रहित खरोंचें, किसी ऐसे जानवर का बिना बला दूध पी लेना जिसे रेबीज़ होने का शक हो। |
क्लास २ (मध्यम) | ताजे कटे हुए स्थान पर चाटना, खरोंचे जिन से खून निकल रहा हो, साधारण ज़ख्म, पॉंच से कम, सभी ज़ख्म सिवाय चेहरे, गले, सिर, हथेली और उंगलियों के। |
क्लास ३ (गंभीर) | सभी ज़ख्म और खरोचें जिनमें से खून निकल रहा हो, गले, चेहरे, हथेली, उंगलियों, चेहरे और सिर पर हों। पॉंच से ज़्यादा ज़ख्म, जंगली जानवर द्वारा काटा जाना और ज़ख्म जिनमें चीर फाड़ हो गई हो। |
मस्तिष्क दोनों ओर १२ कपाल तंत्रिकाएँ भेजता है। ये तंत्रिकाएँ आँखों, कानों, जीभ, नाक, गले, चेहरे, और आन्तरिक अंगों को सम्भालती हैं।
मस्तिष्क आवरण की तीन तहें मस्तिष्क को ढॅंके रहती हैं। मस्तिष्क ओर मेरुदण्ड के आवरणों के बीच एक खास तरह का द्रव रहता है। इस द्रव को मस्तिष्क मेरुद्रव कहते हैं। मस्तिष्क आवरण शोथ (मैनिन्जाइटिस) या कई और बीमारियॉं हो जाने पर इस द्रव की प्रकृति में बदलाव आ जाता है। इस तरह से इस द्रव से इन बीमारियों के निदान में मदद मिलती है। एक सुई से पीठ के निचले हिस्से से यह द्रव निकालकर जाँच कर लिया जाता है।
मेरुदण्ड एक कई लेनों वाला मुख्य मार्ग है। इसके माध्यम से मस्तिष्क और अन्य अंगों के बीच विद्युत सन्देश पास होते हैं। मस्तिष्क की तरह मेरुदण्ड के विभिन्न हिस्से भी अलग-अलग तरह के सन्देश ले जाने के लिए नियत होते हैं। शरीर के विभिन्न अंगों की स्थिति बताने वाले विद्युत सन्देश, संवेदी और प्रेरक सन्देश अलग-अलग लेनों में से गुज़रते हैं। मेरुदण्ड तंत्रिका तन्तुओं से बनी होती है। तंत्रिका तन्तु तंत्रिका कोशिकाओं के धागें होते हैं जैसे कि बिजली के तार।
हमारे शरीर में ठीक उसी तरह से तंत्रिकाएँ होती हैं जैसे कि घर में बिजली बहने के लिए तार लगे होते हैं। ठीक बिजली की तारों की तरह तंत्रिका तन्तु मस्तिष्क और परिसरीय संवेदी और प्रेरक अंगों को आपस में जोड़ते हैं। आप अपनी कोहनी के भीतरी भाग की त्वचा को टटोलकर वहॉं नस की उपस्थिति महसूस कर सकते हैं। इस पर गलती से अक्सर आघात होता हैं जिससे अपने हाथ के आगे वाले हिस्से में उत्तेजना महसूस होती है। इससे तंत्रिका के काम की विद्युतीय प्रकृति का पता चलता है। ऊपर जिस तंत्रिका तन्तुओं के जाल के बारे में बात की गई है वो संवेदी और प्रेरक जाल कहलाता है। यह मुख्यत: संवेदनाएँ और हिलने डुलने के सन्देश ले जाता है। रेलगाडी की भाषा में यह अप और डाऊन यातायात है।
आन्तरिक अंगों के लिए एक और तंत्रिकाओं के जाल का तंत्र होता है। इसे स्वायत तंत्रिका जाल कहते हैं। ये विभिन्न आन्तरिक अंगों के कार्यों का नियंत्रण करता है खासकर छाती और पेट के आन्तरिक अंगों का। इस तरह से फेफड़े, दिल, आमाशय, आँतें, मूत्र और तंत्रिका तंत्र सभी स्वायत तंत्रिका जाल से नियंत्रित होते हैं। मस्तिष्क के साथ मिलकर ये तंत्र सभी महत्वपूर्ण कार्य जैस सॉंस लेना, पाचन आदि को चलाता रहता है और हमें इसका पता ही नहीं चलता। परन्तु किन्हीं भी भावुक क्षणों जैसे डर लगने, उत्तेजित होने या गुस्से के समय हमें इस तंत्र की उपस्थिति का अहसास हो सकता है। ऐसे में छाती और पेट में बेचैनी होना, गले में कुछ फॅंसता सा लगना, दिल की धड़कन बढ़ना और पसीना आना, तुरन्त पेशाब जाने की ज़रूरत लगना, मुँह का रंग उड़ जाना, रोंगटे खडे होना आदि सब इसी तंत्र के कारण होते हैं। भगवद्गीता में युद्ध के समय में अर्जुन लगभग यही लक्षण भगवान श्रीकृष्ण को बताता है। इस तंत्र में भी दो अलग भाग है, एक लढाई -डर से संबध्द है, और दूसरा खाने-सोने से संबंधित है। एक से उत्तेजना होती है, और दूसरे से विश्राम।
आँख का छेदचित्र |
पॉंच संवेदी अंग हैं –
संवेदनाओं से जुड़े सभी सन्देश समझने के लिए दिमाग तक पहुँचते हैं। पूरे शरीर को ढॅंकने वाली त्वचा नसों द्वारा मेरुदण्ड से जुड़ी रहती हे। अन्य चार संवेदी अंग कपाल तंत्रिकाओं के माध्यम से सीधे मस्तिष्क से जुड़े रहते हैं।
शरीर की ७ हॉर्मोन ग्रंथियॉं |
शरीर में एक और तंत्र है जो कि शरीर में नियंत्रण का काम करता है। ये तंत्र जैवरासायनिक सन्देशों के माध्यम से काम करता है। इस तंत्र को अन्तस्रावी तंत्र या वाहिनी विहीन ग्रंथियों का तंत्र कहते हैं। इसमें अवटु ग्रंथि (थैराइड), अधिवृक्क ग्रंथि (एड्रीनल) और अन्य ग्रंथियॉं शामिल होती हैं। ये ग्रंथियाँ तंत्रिका तंत्र के आदेशों का पालन करती हैं। जैवरासायनिक सन्देशवाहक, जिन्हें हॉरमोन कहते हैं, खून में छोड़े जाते हैं। ये हॉरमोन ज़रूरत के अनुसार विभिन्न अंगों के काम शुरू करवाते हैं या रोकते हैं।
हॉरमोन अन्तस्रावी ग्रंथियाँ द्वारा स्रावित होने वाले जैवरासायनिक सन्देशवाहक होते हैं। वो विशेष ऊतकों में विशेष शारीरिक कार्य सम्भालते हैं। उदाहरण के लिए इंसुलिन, अग्नाशय द्वारा स्रावित होने वाला एक हॉरमोन है जो कोशिकाओं में ग्लूकोज़ के इस्तेमाल को नियंत्रित करता है। हारमानों का स्रावित होना शरीर के रसायन विज्ञान से पूरी तरह से जुड़ा हुआ होता है। अगर बहत ज़्यादा या बहुत कम हॉरमोन बने तो इससे कमियॉं या गड़बड़ियॉं हो जाती हैं।
पीयूषिका ग्रंथि एक तरह से मास्टर ग्रंथि है। वो हारमोनों द्वारा अन्य पॉंचों ग्रंथियों के कामों का नियंत्रण करती है। गले के खाली स्थान के नीचे थाईमस ग्रंथि भी होती है। इसका सम्बन्ध प्रतिरक्षा से होता हे। यह ग्रंथि बचपन में ज़्यादा सक्रिय होती है।