कसरत और खेलकूद सिर्फ बच्चो और जवानों के लिए है ये मानना सही नही। किसी भी उम्र में कुछ ना कुछ करना जरुरी है।
भोजन के बाद २-३ घंटे कसरत ना करे यह एक मानना है, जिसको कुछ वैज्ञानिक मान्यता है। शरीर में दो अलग तंत्रिका तंत्र चलते है एक पेशियों के उत्तेजना के लिए है और दुसरा अंदरुनी अंगों के लिए है। ये दोनो अलग अलग समय हावी होते है। भोजन और निद्रा के समय अंदरुनी अंगों का तंत्रिका तंत्र ज्यादा चलता है। इसिलिए भोजन के उपरान्त २-३ घंटे भारी कसरत ना करे तो अच्छा होगा। इसी कारण हम सो कर उठने के बाद या सोने से जगने के बाद उसी मिनिट खेलकूद कसरत के लिए राजी नहीं होते। शरीर को बदलाव के लिए कुछ समय देना पडता है। कसरत किसी को करनी चाहिए जिसको पहिलवान बनना है यह भी एक गलत फैमी है। पहलवान बनने के लिए कई ज्यादा कसरत करनी पडती है, लेकिन स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए एक घंटे का समय कसरत के लिए देना पर्याप्त होता है।
चलने से काफी कसरत होती है यह मानना उचित नहीं। हॉं अगर कोई १-२ घंटे चलता है तो कुछ बन सकता है। फिर भी चलने से सारे शरीर को नहीं केवल टांगों को और हृदय को ही लाभ होता है। इसमें हाथ और पीठ के पेशियों को ज्यादा काम नहीं। वैसे ही इसमें ऊर्जा ज्यादा नहीं लगती और समय भी ज्यादा चला जाता है। इसके बजाय दौडना, तेज चलना, तैरना, पहाड चढना आदि प्रकार ज्यादा उपयुक्त है। बीमार या बुढे लोगों को यह व्यायाम प्रकार पर्याप्त है, औरों को नहीं।
संक्षेप में सुझाव
आपको अगर हृदयविकार हो तब अपने डॉक्टर से सलाह करे तभी व्यायाम निश्चित करे।
शुरुवात में श्रम की आदत न होने से १०-१५ दिन धीरे धीरे व्यायाम बढाये। इससे शरीर नयी आदत स्वीकार करता है। किसी भी खेल के पहले हल्के व्यायाम करने चाहिये। इससे शरीर तय्यार होता है।
थकानेवाले खेल या मेहनत के बाद शरीर को थोडा आराम देना चाहिये।
भोजन के उपरान्त कम से कम दो घंटे कसरत या खेल टालना ठीक होता है।
गर्भावस्था में खास अलग और हलके व्यायाम के तरीके करना चाहिये।
उम्र और मौसम के अनुसार व्यायाम में बदलाव अवश्य करे।
शीतकाल में ज्यादा मेहनत जरुर करे।
व्यायाम संभवत – सुबह या शाम को करे। अगर ये बस में नही तो अपने समय के अनुसार करे। लेकिन व्यायाम करना न छोडे।
हफ्तेमें कम से कम चार दिन दमसांस याने एरोबिक व्यायाम करना चाहिये। बचे तीन दिन लचीलापन या बलवर्धनके लिये उपयोग करे।
व्यायाम और योगसाधना करने के लिये अलग अलग समय चाहिये। इन्हे साथ साथ न करे। ध्यान रहें की दोनो प्रकार में अलग अलग तंत्रिका संस्थान काम करते है।
आपकी निजी श्रमक्षमता और गती जानकर खेल और व्यायाम चुने। बिना वजह दूसरोंके साथ होड ना लगाये।
खेल और व्यायामसे आनंद पाना चाहिये, दुख या दर्द नहीं। केवल व्यायाम की अपेक्षा खेल बेहतर होते है। खेलोमें भी व्यक्तिगत प्रकार से सांघिक खेल बेहतर है।