ज़्यादातर लोग कसरत के लिए नियमित और निश्चित समय रखना पसन्द करते हैं। ऐसा कोई ज़रूरी नहीं है कि कसरत किसी निश्चित समय पर ही की जाए। कसरत दिन के किसी भी समय में की जा सकती है। हालॉकि अनुशासन से फायदा तो होता ही है। खाना खाने के तुरन्त बाद कसरत नहीं करनी चाहिए। कम से कम एक घण्टे का विश्राम करना ज़रूरी होता है।
धीरे और दृढ़ता से कसरत हमेशा धीमे-धीमे ही करें ताकि दिल पर बिना कारण बोझ न पड़े। अगर किसी के साथ कसरत कर रहे हों तो कसरत करते समय साथ साथ बात भी करते जाएँ। इससे गति धीमी और सुरक्षित रहेगी।
बहुत से लोग शरीर की चर्बी (मोटापा) कम करने के लिए कसरत करते हैं। परन्तु यह आसानी से नहीं होता है। शरीर में उपलब्ध ग्लूकोस कसरत के पहले २० मिनट के लिए उर्जा उपलब्ध करवा देता है। इसी अवधि के बाद चर्बी जलती है। भारी कसरत में भी बहुत ज़्यादा उर्जा खर्च नहीं होती।
चर्बी एक कम वज़न वाला ऊतक होता है। इसलिए थोड़ा सा भी वज़न कम करने के लिए बहुत सारी चर्बी के जलने की ज़रूरत होती है। वज़न कम होने से बहुत पहले ही व्यक्ति पतला दिखने लगता है। वज़न नापने की मशीन की बजाय शीशे में देखने एक बेहतर मार्गदर्शक है। चर्बी कितनी कम हुआ हे यह पता करने के लिए महिलाओं को कमर के क्षेत्र पर और पुरूषों को पेट पर ध्यान देना चाहिए।
कसरत के अलावा खाने में वसा पर नियंत्रण भी वज़न कम करने के लिए ज़रूरी है। आमतौर पर कसरत से २०० से ३०० से ज़्यादा कैलोरी नहीं जल पाती। जबकि हम रोज़ लगभग २००० कैलोरी खा लेते हैं।
कुछ लोग ज़्यादा तेज़ गति से कसरत कर पाते हैं और कुद कम से। यह उनकी पेशियों के तन्तुओं पर निर्भर करता है, जो कि दो तरह के होते हैं। कुछ लोगों में ऐसे तन्तु ज़्यादा होते हैं जिनसे गति मिले और कुछ में ऐसे तन्तु ज़्यादा होते हैं, जो धीमे होते हैं। हर किसी को अपनी गति की पहचान करनी होती है। और उसी हिसाब से उपयुक्त कसरत या खेल का चुनाव करना होता है।
पीठ, कंधे और भुजाओं को मजबुत बनाने के लिए कसरत के तरीके |
कसरत शुरू करने पर कुछ दिनों कसरत से थकान होगी। कुछ दिनों में इसमें मज़ा आने लगेगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि नियमित रूप से थकने से शरीर की सहने की क्षमता बढ़ जाती है। दिल और फेफड़ों की क्षमता बढ़ जाती है और पेशियॉं ज़्यादा ग्लाईकोजन संग्रहित करने लगती हैं। पेशियों के तन्तु बेहतर और बड़े हो जाते हैं। कसरत से मस्तिष्क द्वारा कुछ जैव रसायन करते हैं, जिसके कारण हम प्रसन्नता, उत्साह महसूस करते हैं। कसरत की दिनचर्या को मज़ेदार बनाने के लिए नई-नई कसरतें की जा सकती हैं। अलग-अलग पेशियों के समूहों की कसरतें करना भी अच्छा रहता है। जैसे आप पैदल चलने की बजाए तैरना शुरू कर सकते हैं। तैरने में पीठ और हाथों की पेशियों की कसरत हो जाती है। कभी-कभी नियमित रूप से कसरत कर पाना सम्भव नहीं हो पाता। परन्तु हफ्ते में कम से कम चार दिन ३० मिनट तक कसरत करना ठीक रहेगा।
कसरत सभी उम्र की महिलाओं और पुरुषों के लिए पयोगी होती है। लोग आज इसकी जगह टेलीविज़न देखने और अन्य काम करने में ज़्यादा समय बिताने लगे हैं। ज़्यादातर लोग नियमित रूप से कसरत नहीं करते। यह स्थिति बदलना चाहिए।
अचानक कसरत करने से अनेरोबिक (वातनिरपेक्षी) क्रिया शुरू हो जाती है। यह शरीर के लिए अच्छा नहीं होता। किसी भी कडी मेहनत या कसरत करने के पहिले चंद मिनिट शरीर को हल्का और खुला बनाने के लिए कुछ तरीके दिये जाते है। क्रिकेट के मैदान में ये हम अक्सर देखते है। उदाहरण के तौर पर नीचे बैठकर पैर लंबे कर हाथों से पॉंव पकडना, दोनो हाथ फैलाना या कंधे से उपर करना, खडे रहकर कमर में झुककर पॉंव पकडना, हल्की दौड या – आदि। योग शास्त्र में कई सारे योगासन यही काम करते है। सूर्यनमस्कार भी इसीका एक अच्छा उदाहरण है। इन तरीकों से पेशी और जोडों का लचीलापन बढता है और इससे खेलकूद में चोटे कम लगती है। इसको वॉर्म अप भी कहते है। इसके चलते शरीर का तपमान कुछ मात्रा में बढकर रक्तसंचालन भी बढता है जिससे खेलकूद के लिए शरीर तैयार होता है। इससे हृदय पर अचानक तनाव पैदा होना हम टाल सकते है। इन शरीर गरमाने वाली कसरतों से कड़ापन कम करने, संचरण बढ़ाने और पेशियों को तानने में मदद मिलती है।
कसरत से शरीर में काफी ऊर्जा निकल कर गर्मी पैदा होती है। यह गर्मी पसीना और प्रश्वास में निकल पडती है। आमतौर पर पुरुषों में गर्मी ज्यादा पैदा होती है और महिलाओं को कसरत करते समय पसीना कम आता है। भारत जैसे गर्म हवा वाले देशों में पसीना कुछ ज्यादा ही होता है। शायद इसी कारण ऋतू के अनुसार कसरत कम या ज्यादा करने के लिए कहॉं जाता है। शीत काल में कसरत ज्यादा अच्छी लगती है ये हम सब जानते है।
पसीने से कसरत की तेज़ी का अन्दाज़ा लगता है। पसीना आने से शरीर ठण्डा होता है और कसरत से पैदा हुई गर्मी कम होती है। पसीना आना वातावरण पर भी निर्भर करता है। और वैसे भी कुछ लोगों को ज़्यादा पसीना आता है और कुछ को कम।
कुछ लोग ज़्यादा तेज़ गति से कसरत कर पाते हैं और कुद कम से। यह उनकी पेशियों के तन्तुओं पर निर्भर करता है, जो कि दो तरह के होते हैं। कुछ लोगों में ऐसे तन्तु ज़्यादा होते हैं जिनसे गति मिले और कुछ में ऐसे तन्तु ज़्यादा होते हैं, जो धीमे होते हैं। हर किसी को अपनी गति की पहचान करनी होती है। और उसी हिसाब से उपयुक्त कसरत या खेल का चुनाव करना होता है।
कसरत के बाद वापस ठण्डे होना भी महत्वपूर्ण है। कसरत अचानक नहीं रोकनी चाहिए। यह ५ से १० मिनट के अन्तराल में धीरे-धीरे बन्द करनी चाहिए। इससे दिल को अपनी सामान्य स्थिति में पहुँचने में मदद मिलती है। खेलकूद या कसरत खत्म होने के बाद पॉंच-दस मिनिट तक शरीर को थंडा करने के लिए समय देना जरुरी है। इससे श्वास पर श्वास धीमी गती में आ जाता है, पसीना निकल जाता है, हृदय की गती सही हो जाती है और पेशियों को आराम मिलता है। इसको कूल डाऊन कहते है।
कसरत करने के लिए ऊर्जा जरुरी है वैसे ही पेशियों को प्रोटीन भी। प्रोटीन ना या कम मिले तो पेशियों का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहेगा । पेशियों में पर्याप्त मात्रा में तंतू रहे इसिलिए प्रोटिनों की सख्त जरुरत होती है। हम जब खाना खाते है उसका रुपांतर ऊर्जा और पेशियों में होता है। अतिरिक्त खाना वसा के रूप में जमा होता है इसिलिए वजन का नियंत्रण हमें भोजन के बारे में सही निर्देश दे सकता है।
वसा में मंड के तुलना में दुगनी ऊर्जा होती है। कसरत करते समय वसा जलाकर ऊर्जा पाने की स्थिती आधे घंटे के बाद ही आती। इसलिए आमतौर पर सामान्य कसरत में वसा का इस्तेमाल नहीं होता। कोई व्यक्ती अगर मोटापा कम करने के लिए कसरत कर रहा हो तब कसरत का समय खूब बढाना चाहिए जैसे की दो घंटे या और भी ज्यादा। मोटापा कम करने के लिए कसरत के साथ भोजन का नियंत्रण जरुरी है। वैसे ही इसके लिए कुछ महिनों का कार्यक्रम बनाना उचित होगा और हर दिन १००-२०० ग्राम भी कम हुआ तो अच्छा ही समझे।
भारी बॉल फेकने/झेलने से छाती पीठ और हाथों को काफी व्यायाम होता है |
सिर्फ कसरत के बजाय खेलकूद कई मायनों में अच्छी होती है। खेलों में भी इक्के दुक्के खेल जैसे कुस्ती के बजाय सांघिक खेल जैसे फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी आदि ज्यादा फायदेमंद होते है। इसमें शारीरिक फायदे तो होते ही है लेकिन मानसिक और सामाजिक लाभ भी है। इसिलिए कसरत से खेलकूद हमेशा पसंद करते है।
किसी भी कसरत में हर व्यक्ती को एक अधिकतम गति प्राप्त होती है। लेकिन अलग अलग व्यक्ती में यह गती या वेग अलग अलग होता है। जैसे की कुछ लोग दौडने में कम लेकिन बलप्रधान खेलों में ज्यादा माहीर होते है। इस फर्क का कारण हर किसी के पेशियों के मूल रचना में होता है। कुछ लोगों के शरीर की पेशियॉं तेज हलचल वाले रेशों से बने होते है। उनकी हलचल और गति तेज होती है। जाहीर है की इनको ऍथलेटिक्स याने भागदौडवाले खेलकूद में ज्यादा रुची और कौशल होता है। इसके विपरित कुछ व्यक्तियों में पेशियॉं धीमी गतीवाली रेषों से भरे होते है। ये लोग जादातर ताकदवाले खेलों में हिस्सा लेते हैजैसे की कुस्तियॉं, भार तोलना। प्रशिक्षक को ये जानना जरुरी है की कौनसा व्यक्ती किस खेल में ज्यादा कामयाब हो सकता है। योग्यता के अनुसार खेलकूद चुनना कामयाबी के लिए बहुत जरुरी है।
किस व्यक्ति को किस तरह की कसरत करनी चाहिए यह उसकी उम्र, लिंग और काम के अनुसार इन सब पर निर्भर रहता है।
भारी बॉल और लाठी के साथ भी आप कसरत कर सकते है |
रस्सी कुदना |
बचपन में या जवानी में हर कोई कुछ ना कुछ खेल लेता है लेकिन शादी ब्याह के बाद यह सिलसिला अक्सर रुक जाता है। हमारे देश में ८०-९०% लोग इस उम्र में खेलकूद लेकर सबसे दूर रहते है। कोई अगर ये कहे की हमने जवानी में बहुत मेहनत और खेलकूद की है तो इसका लाभ जारी रहना संभव नहीं होता। खेलकूद या कसरत से प्राप्त पेशीबल कुछ हदतक जीवन में कायम रहता है लेकिन इससे अन्य सारे लाभ रुक जाते है। मोटापा बढ सकता है, धमनीयों में वसा चिपक जाता है, जोड और पेशियॉं सख्त होती जाती है, लचीलापन कम हो जाता है और प्रतिरोध शक्ती भी कम होती है। इसिलिए व्यायाम आजीवन जरुरी है। लेकिन यह भी है की उम्र और क्षमता के अनुसार कसरत खेलकूद के अलग अलग प्रकार अपना ले। फिर भी कसरत के मूल तत्व भुलना उचित नहीं है।आज का जीवन यापन का तरीका ही महत्वपूर्ण होता है। बुढ़ापे में भी कम सही पर निश्चित शारीरिक कसरत करते रहना ज़रूरी है।