भारतमें यह हिमालय जैसी ठंडी जगहों में ज़्यादा होता है। इसमें बहुत ज़्यादा ठंड के कारण ऊतकों के द्रव के जम जाने के कारण यह नुकसान होता है। यह तब हो सकता है जब कोई व्यक्ति लंबे समय तक बर्फ या ठंडी धातु के संपर्क में रहे।
आमतौर पर कानों, पैरों की उँगलियों, हाथों और पैरों पर असर होता है। सबसे पहला लक्षण यह महसूस होता है जैसे कि पिन या सुइयॉं चुभ रही हैं। इससे पता चलता है कि तंत्रिकाओं के सिरों पर असर हो रहा है। इसके बाद त्वचा पीली और संवेदनाहीन हो जाती है। गंभीर हिमदाह होने पर त्वचा की परतें फट जाती हैं। त्वचा सलेटी सी दिखने लगती है। स्थानीय ऊतकों में से द्रव रिसने लगता है जिससे सूजन हो जाती है। खून बहना, छाले पड़ना और कभीकभी गेंग्रीन के कारण त्वचा काली पड़ती है। इस स्थिति में बहुत ज़्यादा दर्द होता है। परन्तु बाद में और ज़्यादा नुकसान हो जाने के बाद दर्द खतम हो जाता है।
पीड़ित व्यक्ति को तुरंत पास के अस्पताल ले जाना चाहिए। हिमदाह से प्रभावित हिस्सा ठीक भी हो सकता है और उसे और ज़्यादा नुकसान भी हो सकता है। इसके अलावा प्रतिजीवाणु दवाओं से इलाज और छालों में से पानी निकालने के लिए डॉक्टर की ज़रूरत होती है।
रोकथाम – बर्फीली या बहुत ठंड जगहमें ३-४ कपडे पहनकर हिमघात या हिमदाह को रोक सकते है। अंदरुनी कपडा सूती, उसके उपर उती और बाहर न भीगनेवाला कपडा इस्तेमाल करे। कान, सिर, उंगलिया और पॉंवपर पूरा संरक्षण जरुरी है।
बर्फीली प्रदेशोमें और सर्दीयोंके दिनोमें उत्तरी भारत में अक्सर यह हादसा हो सकता है। बर्फीली ठंड में शरीर का ज्यादा देर रहनेसे तपमान गिरते जाता है। शरीर का अंदरुनी तापमान सामान्यत: ३६०C से कम होना हानिकारक होता है। शरीर का अंदरुनी तापमान ३५०C डिग्री से गिरनेपर शीतघात के असर दिखाई देते है। अंदरुनी तापमान गुदामें नापा जा सकता है। ३२०C से ३५०C डिग्रीतक सौम्य शीतघात होता है। २८०C से ३२०C तक मध्यम शीतघात और २८०C के नीचे तीव्र शीतघात कहा जाता है।
शीतघात के चलते सबसे सामान्य लक्षण है बोलचाल या बर्ताव में बदलाव, लेकिन इसको और लोग ही समझ सकते है। मनोस्थिती बिगडना, भावनाहीन सा होना, अलिप्त बर्ताव, असंगत बोलचाल, और ठंडको न पहचानना आदि लक्षण दिखाई देते है। नाडी पहले तेज होती है, फिर धीमी चलती है। कंपकंपी होती है। शीतघात गहरा होने पर नाडी और श्वासगति धीमी होती है। चमडी रंगहीन या भूरी बनती है। कंपकंपी जोरसे चलता है और उसे रोकना असंभव होता है। तापमान ३२०C के नीचे जाएँ तब कंपकंपी थम जाती है और बेहोशी आती है।
पर्याप्त घर या कपडोंकी कमी, ६५ वर्ष से ज्यादा आयु, बीमार व्यक्ती आदि इसके शिकार होते है। बर्फीली प्रदेशोमें सेना के जवान या चरवाहे इसकी चपेट में आ सकते है। अब मांसपेशीयॉं अकडने लगती है। सॉंस मिनिट को १-२ इतनी कम होती है, वैसेही नाडी भी मिनिट को १-२ इतनी कम होती है, वैसेही नाडी भी मिनिट को १-२ की गतिसे चलती है। यह बहुतही खतरनाक स्थिती होती है। आदमी जिंदा है या मृत यह भी तय करना मुश्किल होता है।