गर्भवति महिलओं में प्रसव के बाद गर्भाशय या यौनी में संक्रमण हो जाना एक आम शिकायत है| ऐसा इसलिए होता है प्रसव के दौरान शिशु जन्म की क्रिया में होने वाले घाव और कच्चे ऊतक,प्रसव के दौरान उपयोग होने वाले औजारो का उपयोग,प्रसव का स्थान संक्रमण करने वाले जीवाणुओ को के बढ़ने में मदद करते हैं| ऐसा तब होता है जब प्रसव अस्वच्छ हालातों में करवाया गया हो, मॉं को रक्त-अल्पता (एनीमिया) हो तब इसका होना संभव होता है| संक्रमण के बाद से गर्भाशय या डिंब वाही नली में शोथ(सूजन और लालपन),और | तेज़ बुखार हो जाता है (कभी कभी तापमान सामान्य से कम भी देखा गया है| पेड़ू (पेट का निचले हिस्से) में दबाने से दर्द होता है| योनि में से निकलने वाला स्त्राव बदबूदार होता है और अकसर खून मिला हुआ हो सकता है| यह बहुत ही गंभीर संक्रमण रोग है| संक्रमण से पीडित मॉं को तुरंत अस्पताल ले जाएं| अगर इसका इलाज न हो तो इससे मौत भी हो सकती है| आजकल अस्पतालो में प्रसव ज्यादा होते है, इसलिये इसका प्रभाव और संख्या कुछ कम हो गयी है|
स्तनों में दूध न निेकलने के कारण स्तन में भी संक्रमण हो सकता है| संक्रमण ग्रसीत स्तनों में दबाने से दर्द होता है, सूजन और लाली हो जाती है। शोथ और फोड़े पर की त्वचा फटने लगती है| अगर फोड़े को चीरा न लगाया जाए और इसमें से मवाद न निकाला जाए तो फोड़ा फट सकता है| फोडा फटने से बीमारी ज्यादा दिन तक चलती है|
जन्म पश्चात योनी मार्ग से सामान्य से अधिक खून बहना प्रसवोत्तर रक्त स्त्राव कहलाता है| प्रसव के बाद पहले २४ घंटों में कभी भी हो सकता है| घर पर प्रसव हुआ है तो प्रसूत महिला को अस्पताल पहुँचाना बेहद ज़रूरी हो जाता है| यह काफी गंभीर पर स्थिति है और इसके लिए अस्पताल में चिकित्सक और नर्सिग-देखभाल की ज़रूरत होती है| आप केवल आधी ऐसी घटनाओं के बारे में पहले से अंदाज़ा लगा सकते हैं| ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के चलते अस्पताल में प्रसव का प्रमाण काफी बढ गया है जिसके कारण बहना प्रसवोत्तर रक्त स्त्राव में कमी देखी गयी है।
साधारणतय: सिकुड़ता हुआ गर्भाशय खून की सभी नलियों के सिरों को बंद कर देता है| इससे गर्भाशय की रक्त वाहिकाओ में संकुचन के कारण खून बहना कम या बंद हो जाता है| प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव का प्रमुख कारण गर्भाशय में नाड़ का टुकड़ा रह जाना होता है| यह टुकड़ा गर्भाशय के सिकुड़ने में बाधा डालता है| जिससे गर्भाशय की खून की नलियॉं खुली रहती हैं और उनमें से खून बहता रहता है| इसे एटोनिक प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव कहते हैं| गर्भाशय को सिकुड़ने में मदद करने के लिए मिथाइल – एरगोमैट्रिन या ऑक्सीटोसिन का इंजैक्शन दिया जाता है | आजकल अस्पतालों में एटोनिक प्रसवोत्तर रक्तस्त्राव के इलाज के लिए प्रोस्टाग्लैंडिन्स का इस्तेमाल होता है| परन्तु इसे फ्रिज के बिना रखना संभव नहीं है| यह रक्तस्त्राव मात़़म़त्यु का एक प्रमुख कारण होता है| अस्पतालो में प्रशिक्षण प्राप्त चिकित्सक या नर्स सा एएनएम से प्रसव होना यही इसके प्रति एकमात्र रोकथाम का उपाय है|
गर्भाशय को हाथों से दबाने से रक्त स्त्राव रोकने में भी मदद मिलती है| इसके लिए दस्ताने पहन कर एक हाथ योनि के अंदर डालें और दूसरे से बाहर से गर्भाशय को दबाएं| परन्तु सबसे सही यह है कि खून बहना बंद हो जाने के बावजूद मॉं को पास के अस्पताल ले जाया जाए| क्योंकि यह फिर से भी शुरु हो सकता है|
अगर गर्भाशय सिकुड़ने के बाद भी खून बहना बंद न हो, तो यह गर्भाशयग्रीवा, योनि या भग में धाव उसका कारण हो सकता है| इसकी जांच के लिए अच्छी रोशनी और मदद की ज़रूरत होती है| ठीक से जांच के लिए खून पूरी तरह से साफ कर दें| कभी कभी यह रक्त स्त्राव प्रैशर पैक से रुक जाता है| अस्पताल में भी यह जोखम संभव है, लेकिन तुरंत इलाज से जान बच सकती है|
इकट्ठे हो रहे खून को ध्यान से देखें| क्या यह पॉंच मिनटों के अंदर अंदर जम जाता है या फिर इसे जमने में देरी लगती है? अगर यह समय से नहीं जमता है तो यह खून के जमने की प्रक्रिया में गड़बड़ी का सूचक है| इससे भी बहुत अधिक रक्त स्त्राव होता है| मॉं को तुरन्त खून दिए जाने की ज़रूरत होती है| रिश्तेदारों को बताएं कि खून की पूर्ति अच्छे खून से ही हो सकती है| बहुत से लोग खून देने से बचते हैं| अगर मॉं के खून का ग्रुप पहले से ही पता है तो खून देने वालों की व्यवस्था करना आसान होता है|