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टीकाकरण

inoculationचिकित्सा
विज्ञान ने मानव की आयु को बढा दी है, इसमें टीकाकरण का बडा योगदान है| बडी माता जैसी रोगों का नि:पात हुआ है| पोलिओ जैसे नुकसानदेह रोगों से भी टीकाकरण मौलिक संरक्षण देता है| छ: बड़ी बीमारियों के लिए टीके लगाना बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पोलियो, डिप्थीरिया, काली खॉंसी, टिटेनस, तपेदिक और खसरा बचपन की ऐसी छ: बीमारियॉं हैं जिनसे टीकों के माध्यम से बचाव हो सकता है। बीसीजी के टीके से हम तपेदिक और उसके अन्य परिणामों जैसे मस्तिष्कावरण शोथ (मैनेनजाइटिस), मेरुरज्जू के तपेदिक और कुछ अन्य अंगों के तपेदिक से बच्चे को बचा सकते हैं। विटामिन ए की कमी की भी आपूर्ति की जा सकती है। ये सभी गंभीर बीमारियॉं हैं और इनसे बच्चों को बचाया जाना ज़रूरी है।

बीसीजी

bcgअगर बचपन में तपेदिक हो जाए तो बाद में यह जटिलताएं उभरने की संभावना होती है। बीसीजी के टीके से बच्चे को बचपन में होने वाले तपेदिक से बचाया जा सकता है। बीसीजी के टीके से बड़ी उम्र में होने वाले फेफड़ों के तपेदिक से बचाव नहीं हो पाता।

बीसीजी प्रतिरक्षा में तपेदिक के ऐसे जीवाणुओं (बैक्टीरिया) को त्वचा के अंदर लगाया जाता है जो जिंदा होते हैं पर बीमारी नहीं कर सकते। जन्म के तुरन्त बाद या पहला महीना इसके लिए सबसे अच्छा रहता है। इंजेक्शन से असल में उस जगह पर हल्का फोडा हो जाता है। यह जो त्वचा तक सीमित रहता है। इन जीवाणुओं से लड़ने के लिए शरीर प्रतिपिंड बनाता है। फोडे वाला स्थान पर बाद में स्कार (चोट का निशान) बन जाताहै। जो बच्चे में दिमागी टी बी के रोग से बचाव करता हैा इन्जैक्शन लगने से उसका निशान बनने में छ: हफ्तों का समय लगता है।

बीसीजी के बाद

बीसीजी का इन्जैक्शन लगने के बाद सबसे पहले थोड़ी सी सूजन और लाली हो जाती है। इसके बाद एक छाला सा बनता है जिसमें बहुत सी पीप भरी रहती है। छाला फट जाता है और उथला सा अल्सर बन जाता है धीरे धीरे यह ठीक हो जाता है और एक निशान रह जाता है। इन्जैक्शन लगने के बाद सूजन और लाली आने में लगभग दो हफ्तों का समय लगता है।

इन्जैक्शन की जगह पर कोई भी दवा न लगाएं क्योंकि यह सब शोथ की प्रक्रिया का हिस्सा है। सक्रिया प्रतिरक्षा विकसित होने के लिए शोथ होना ज़रूरी है। जिस बांह पर इन्जैक्शन लगा हो उस वाली बगल में लसिका ग्रंथि में सूजन का भी कोई इलाज करने की कोई ज़रूरत नहीं होती है। परन्तु अगर दबाने से दर्द या वैसे ही दर्द हो तो इसका अर्थ है कि पीप बनाने वाले अन्य जीवाणुओं की छूत हुई है। ऐसी स्थिति में कोट्रीमोक्साज़ोल जैसी दवा के इलाज करना ज़रूरी होता है। अगर बीमारी बढ़ती जाए तो प्रति तपेदिक दवा देना ज़रूरी हो जाता है।

इसके फलस्वरूप अगर बाद में व्यक्ति पर तपेदिक के जीवाणुओं का हमला होता है तो उसके शरीर में उनसे लड़ने के लिए प्रतिपिंड पहले से ही मौजूद होते हैं। बाहर से पैदा की गई हरएक प्रतिरक्षा का सिद्यांत यही होता है। कभी कभी बगलों में स्थित लसिका ग्रंथियॉ भी बीमारी में शामिल होती हैं। असर काफी धीमा होता है, ठीक उसी तरह जैसे कि तपेदिक की प्राकृतिक छूत के समय होता है।

डीपीटी

dptडीपीटी से तीन बीमारियों से प्रतिरक्षा मिलती है – डिप्थीरिया, काली खॉंसी और टिटेनस। ये तीनों ही बचपन में होने वाली खतरनाक बीमारियॉं हैं। खासकर काली खॉंसी से काफी तकलीफ होती है। सौभाग्य से 3 साल से कम उम्र में तीन बार इन बीमारियों के मिलेजुले इन्जैक्शन की तीन खुराकें देने से इन बीमारियों से बचाव हो जाता है। तीन साल के बाद काली खॉंसी आमतौर पर नहीं होती, पर अन्य दो बीमारियॉं हो सकती हैं। इसलिए तीन साल बाद डीपीटी की जगह डिप्थीरिया और टिटेनस के लिए एक मिलाजुला इन्जैक्शन (डीटी या डबल टॉक्साइड) दिया जाता है|

पोलियो

teekakaranवैक्सीन से पोलियोमैलाइटिस नामक बीमारी से बचाव हो सकता है। मुँह से दी जाने वाली यह वैक्सीनङ्घ मॉं और बच्चे’ स्वास्थ्य कार्यक्रमों में उपलब्ध रहती है। बहुत से बच्चों के डॉक्टर इन्जैक्शन द्वारा दी जाने वाली वैक्सीन ज़्यादा पसंद करते हैं।

मुँह से दी जाने वाली पोलियो की वैक्सीन में जीवित जीवाणु होते हैं। यह फीकल ओरल रूट से ठीक उसी तरह से फैलते हैं जैसे कि पोलियो की बीमारी का वायरस फैलता है। इससे कुछ उन बच्चों में भी प्रतिरक्षा पैदा हो जाती है जिन्हें यह वैक्सीन न मिली हो। यह वैक्सीन न मिली हो। अगर किसी देश में 85 प्रतिशत बच्चों को पोलियो की वैक्सीन मिल जाए तो बाकी बच्चे अपने आप ही इसकी प्रतिरक्षा हासिल कर लेगें। परन्तु जिन बच्चों को मुँह से पोलियो की वैक्सीन दी जाती है उनमें लकवे वाला पोलियो होने की थोड़ी सी संभावना ज़रूर रहती है। दूसरी ओर इन्जैक्शन से दी जाने वाली वैक्सीन में ऐसा कोई खतरा नहीं रहता और उन्हें लकवे वाले पोलियो से पूर्ण सुरक्षा मिल जाती है।

पल्स पोलियो अभियान

पल्स पोलियो अभियान सफल हुआ है। इस अभियान के अंर्तगत तयशुदा तारीखों को पोलियो की मुँह से दी जाने वाली वैक्सीन की पॉंच खुराकें दी गईं। इसके बाद नि’मित रूप से उन बच्चों को वैक्सीन दी गई जो पल्स अभियान में छूट गए। तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा भारत को पोलियो मुक्त देश धोषित किया गया है।

खसरे का वैक्सीन

इन्जैक्शन द्वारा दिए जाने वाले खसरे के वैक्सीन से खसरे से पूर्ण सुरक्षा मिल जाती है (एकमात्र खुराक जो कि त्चचा के अंदर दी जाती है)। एमएमआर वैक्सीन से कनफेड़ और रूबैला से प्रतिरक्षा मिल जाती है। वैक्सीन देने का सबसे उचित समय 9 से 12 महीनों का होता है क्योंकि इस उम्र तक मॉं से मिलने वाले प्रतिपिंडों की संख्या कम होने लगती है। 115 – 18 महीनों के बीच एक पूरक खुराक दी जानी ज़रूरी होती है। टीकाकरण के लिये एक सुनिश्चित समय सारणी है, जिसके बारेमें हम अब जानकारी लेंगे|

टीकाकरणकी समय सारणी

भारत सरकारने टीकाकरण के लिये एक समयसारणी जारी की है| इसमें तपेदिक याने टी.बी, पोलिओ, गलघोंटू,काली खॉंसी, टिटॅनस, खसरा और जिगर शोथ बी, इन सात रोगोंके टीके शामील है| तथापि भारतीय बालरोग परिषद और भी कुछ टीके सूचित करती है| इसके आगे टीका, उसका महिना और डोस क्रमांक दिया है|

  • जन्म के बाद बी.सी.जी और मुँह से पोलिओ बुंद ०(जीरो खुराक) दिया जाता है| (बालरोग परिषद यकृत शोथ बी का प्रथम टीका भी देती है|)
  • छ हफ्ते बाद ट्रिपल प्रथम डोस, पोलिओ बूंद १, यकृत शोथ बी-१ दी जाती है| (बालरोग परिषद इस समय यकृत शोथ २ और हिप १ का टीका भी देती है|)
  • दस सप्ताह बाद ट्रिपल २ और पोलिओ बूंद २ और यकृत शोथ बी -२ (बालरोग परिषद हिब २ भी देती है|)
  • चौदा हफ्ते बाद ट्रिपल ३, पोलिओ बूंद ३ और यकृत शोथ बी -३ (बालरोग परिषद यकृत शोथ बी -३ तथा हिब ३ भी देती है|)
  • नौ महिने के समय खसरा एक डोस और विटािमन ए की खुराक पिलाई जाती है।
  • १६-२४ महिने ट्रिपल बूस्टर १ और पोलिओ बूस्टर १ (बालरोग परिषद हिब बूस्टर और एम.एम.आर. टीका देती है) एम.एम. आर. में गालगुब्बी, खसरा और जर्मन गोवर के टीके जारी है|
  • दो वर्ष के साथ बालरोग परिषद मोतीझरा याने टायङ्गॉईड टीका देती है| यह टीका हर तीन बरस के बाद लेना जरुरी है|
  • पॉंच वर्ष के समय डबल बूस्टर २ दिया जाता है (बालरोग परिषद ट्रिपल बूस्टर २, पोलिओ बूंद ५ और एम.एम.आर २ देती है|
  • दस वर्ष के साथ टिटॅनस बूस्टर दिया जाता है|
  • सोला वर्ष के साथ और एक टिटॅनस बूस्टर दिया जाता है|
  • गर्भवति माताओंके लिये टिटॅनस के २ डोस १ महिना अंतराल से|
  • अगले प्रसूती के समय टिटॅनस का सिर्फ १ डोस दिया जाता है|
  • भारतीय बालरोग परिषद पुरस्कृत टीकाकरण से थोडा जादा खर्च लगता है| लेकिन इससे जादा सुरक्षा भी मिलती है| लेकिन अपने जेब के हिसाब से यह तय करे|
  • भारतीय बालरोग परिषद पोलिओ बूंद के साथ पोलिओ टीके का इंजेक्शन भी जरुरी समझती है| इससे पोलिओसे सौ प्रतिशत छुटकारा मिलता है|
  • वैसे भारत सरकार के टीकाकरण साल में सिर्फ अतिरिक्त एम.एम.आर. टीका चढाना पर्याप्त समझते है| किशोरावस्था के लिये कुछ टिके
  • कुछ नये टीके अब उपलब्ध है| संभव हो तो ये टीके लेना ठीक रहेगा|
  • पीसीबी ७ टीका छटे हफ्ते के बाद लेना चाहिये| इससे बच्चा न्युमोनिया, मेनिंजायटीस और कर्णपी से बचता है|
  • छोटी माता का टीका १५वे महिने बाद लेना चाहिये| यकृत शोथ ए १८ महिने के बाद लेना चाहिये|
  • बाल अतिसार की रोकथाम हेतू रोटाव्हायरस टीका ६ हप्ते बाद लेना ठीक होगा|
  • गर्भाशय ग्रीवा के कॅन्सर के रोकथाम के लिये १४-१८ वर्ष उम्र की लडकियोंको एच.पी.व्ही. टीका देना ठीक होगा|

विशेष सुझाव

dosing-drugs-spoonसरकारी स्वास्थ्य केंद्र पर राष्ट्रीय टीकाकरण क्रार्यक्रम में शामिल सब टीके उपलब्ध होते है| स्वास्थ्य केंद्र में इसकी सारणी प्राप्त कर सकते है| स्वास्थ्य कर्मचारी और डॉक्टर के अनुसार सलाह ठीक से समझे और व्यवहार करे| कुछ टीके हल्के से तेज बुखार लाते है| इससे डरने की कोई बात नहीं| जरुरत हो तो स्वास्थ्य सेवक को पूँछ ले| सब वैक्सीन को शीत में रखना जरुरी है, अन्यथा वैक्सिन खराब होते है| शीत शृंखला के बारे में कोई आशंका हो तो स्वास्थ्य कर्मचारी या डॉक्टरसे सलाह ले| किसी टीके को लेने में देरी हो तो अब वह कब लेना चाहिये इसके बारे में स्वास्थ्य कर्मचारी को पूँछना चाहिये| टीकाकरण के समय बच्चोंको व्हिटामिन ए का डोस दिया जाता है| यह मात्रा हर छे महिने लेना ठीक है| लेकिन समय सारणी के कारण १८ महिने के बाद इसकी मात्रा दी नहीं जाती| व्हिटामिन ए के कारण बच्चोंके आँखे स्वस्थ रहती है और संक्रमण की रोकथाम भी होती है| अपने गॉंव में या वॉर्डमें सौ प्रतिशत बच्चोंका टीकाकरण होने के लिये प्रयास करे|

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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