परिवार नियोजन और जनसंख्या नियंत्रण कई दशकों से एक केंद्रीय राष्ट्रीय मुद्दा रहा है। परिवार नियोजन का अर्थ है कि परिवार छोटा रहे और बच्चों के बीच पर्याप्त अन्तर हो। राष्ट्रीय स्तर पर इसका असर जनसंख्या नियंत्रण का होता है। परिवार नियोजन लोग अपनी इच्छानुसार करते हैं पर जनसंख्या नियंत्रण योजनाकार की इच्छा पर निर्भर होता है। आपात स्थिति के बाद १९७६ में परिवार नियोजन का नाम बदलकर परिवार कल्याण कर दिया गया था।
यह सच है कि भारत एक गरीब देश है और हमारी जनसंख्या काफी ज्यादा है। परन्तु गरीबी ज्यादा जनसंख्या का सीधा परिणाम नहीं है। बल्कि इसके उलटे अक्सर गरीबी के कारण ही परिवार बड़े होते हैं और जनसंख्या बढ़ती है। इसलिए अगर अपनी जनसंख्या की समस्या से निपटना है तो पहले गरीबी दूर करनी होगी। कहा जाता है कि विकास सबसे अच्छा गर्भनिरोधक है। विश्व के कई देशों में यह साबित भी हो चुका है। चीन को छोड़कर कई और देशों में जनसंख्या नियंत्रण के किसी भी राष्ट्रीय कार्यक्रम के बिना ही जन्म दर कम हो गई। और तो अब उनमें से कई में जन्म दर बढ़ाने की फिक्र हो रही है। भारत पहला देश था जिसने १९५० में परिवार नियोजन कार्यक्रम शुरु किया। फिर भी हमारी जनसंख्या लगातार बढ़ती ही रही। ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी भी यहाँ बहुत अधिक गरीबी है। चीन में सामाजिक क्रान्ति के बाद बड़ी सख्ती से जन्म नियंत्रण शुरू हुआ। इससे आरम्भ में जन्म दर में कमी आई। परन्तु एक परिवार एक बच्चे की नीति काम नहीं कर सकी। हुआ यह कि दूसरे बच्चे को जनगणना में छिपाए रखा जाने लगा। इससे चीन में एक पूरी पीढ़ी को बिना भाई-बहन के रहने पर मजबूर किया। जनसंख्या नियंत्रण भारत जैसे जनतंत्र और चीन जैसे तानाशाही देश दोनों में ही असफल रहा। दोनों ही देशों में इसका एक ही कारण था यहाँ की गरीबी।
जनसंख्या वृध्दि जन्म, मृत्यु और प्रवासन के मिलेजुले असर होते हैं। ये सभी तत्व देश की अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं पर निर्भर करते हैं। इन सब तत्वों में देश के अलग-अलग भागों में होने वाले अन्तरों से भी अलग-अलग जगहों की जनसंख्या पर असर पड़ता है। जैसे कि शहरों की जनसंख्या जन्म दर बढ़ने से नहीं बल्कि गाँवों से लोगों के वहाँ आनेसे बढ़ रही है।
पिछली शताब्दी में जनसंख्या (जन्म दर नहीं) लगातार बढ़ रही है। ऐसा आर्थिक विकास और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण हो रहा है। मृत्यु दर गिर गई है पर जन्म दर अभी भी काफी ज्यादा है। अब कुल जन्मों की संख्या के मुकाबले कुल मृत्यु की संख्या ज्यादा होती है। भारत में हर ७ मौतों के पीछे २२ जन्म होते हैं। इसलिए हर १००० लोगों के पीछे १५ लोग हरसाल बढ़ जाते हैं।
इस जनसंख्या वृध्दि का प्रमुख कारण सामाजिक रूप से वंचित होना ज्यादा है। एक परिवार को जिसकी आमदनी काफी नहीं है, रोज़ के सहारे के लिए ज्यादा हाथ (यानि ज्यादा बच्चे) चाहिए होते हैं। बच्चे खेतों में काम करते हैं, दुकानों पर जी-तोड़ मेहनत करते हैं, जलाने के लिए लकड़ी इकट्ठी करते हैं, पालतू पशुओं को पालते हैं, घर के काम करते हैं और छोटे भाई-बहनों की देखभाल करते हैं। क्योंकि हमारे यहाँ सामाजिक सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है इसलिए बच्चों से रोज़ की कुछ आमदनी और भविष्य का सहारा सुनिश्चित हो जाता है। गरीब परिवारों में ५-७ प्रतिशत तक बच्चे जन्म के पहले साल में ही मर जाते हैं, इसलिये परिवार ज्यादा बच्चे पैदा करना चाहते हैं। और बेटे की चाह में भी अक्सर बच्चों की संख्या ज्यादा हो जाती है।
जनसंख्या के सवाल को परिवार नियोजन के सवाल से अलग करके रखना चाहिए। जन्म नियंत्रण महिला के स्वास्थ्य और बेहतरी के लिए ज़रूरी है। बच्चों की संख्या के अलावा उनके बीच अन्तर होना भी ज़रूरी है। अपने क्षेत्र में बच्चों की शादियाँ रोकने की कोशिश भी करें। इससे भी बच्चों की संख्या कम होने में मदद मिलेगी। किशोरों और बड़ों को जन्म नियंत्रण और सुरक्षित गर्भनिरोध के बारे में जानकारी देना भी सम्पूर्ण और प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं का अंग होना चाहिए।
दो बच्चों में तीन बरसों से ज्यादा अंतराल होना बिलकुल जरुरी है इसके लिए अलग अलग तरीके उपलब्ध है |
उन्नीसवीं शताब्दी के शुरुआत में जब पहली बार जनगणना हुई थी तो भारत की जनसंख्या २० करोड थी। कई दशकों तक यह उतनी ही बनी रही। क्योंकि जन्म और मृत्यु दर दोनों ही काफी ज्यादा रहे और एक-दूसरे को सन्तुलित करते रहते थे। परिवार नियोजन शुरू करने वाला भारत पहला देश था परन्तु इसमें इसे खास सफलता नहीं मिली। यह सच है कि १९६० और १९७० के दशक में परिवार छोटे हो गए। यह कई कारणों से हुआ। परिवार नियोजन अभियान उनमें से एक था। परन्तु उसके बाद से सरकार द्वारा जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रमों में काफी प्रयास हुए और काफी पैसा लगाया इसके बावजूद परिवार का औसत आकार उतना ही बना हुआ है।
सौभाग्य से हाल में हुए सर्वे से कई राज्यों में परिवार के औसत आकार में कमी आई है। अगर जन्म नियंत्रण की सुविधाएँ और ज्यादा उपलब्ध हों तो यह परिवार छोटे होने लगेंगे। हॉलाकि गरीबी जन्म नियंत्रण में रुकावट बनती है, मगर केरल, आ.प्र. और तमिलनाडू में गरीबी के बावजूद जन्म दर में कमी आई है। केरल की सफलता का कारण वहाँ की महिलाओं के समाज में बेहतर स्थान और उनका शिक्षा होना बताया जा रहा है। लेकिन अच्छी आमदनी भी एक कारण है। एक दशक के अन्दर-अन्दर तमिलनाडु में जन्म दर २१ से १६ प्रति १००० हो गई है। यह कैसे हुआ? नीचे दिए गए निर्णयों ने यह सम्भव बनाया-
जनसंख्या नियंत्रण पर राज्य का ध्यान अन्तर्राष्ट्रीय दबाव के कारण १९५० के दशक से शुरू हुआ। १९६० में कई सारे गर्भनिरोधक तरीके शुरू किए गए थे। पर जल्दी ही हारमोन की गोलियों, कॉपर-टी और सामूहिक नसबंदी ऑपरेशनों से नए रुझान की शुरुआत हुई। नए तरीके महिलाओं की ज़िन्दगियों में ज्यादा दखल देने वाले, देर तक असर करने वाले और डॉक्टर द्वारा नियंत्रित थे। अब हमारे पास और भी असरकारी तरीके जैसे हारमोन के इंजेक्शन (नैट – एन, डीपो प्रोवेरा) और रोप (नॉर प्लांट), दुर्बीन से नलिकाबन्दी और गर्भ निरोधक टीके उपलब्ध हैं। पहले के जन्म नियंत्रण के तरीके महिला, जोड़े और परिवार की भलाई पर केन्द्रित थे। पर नए तरीके सिर्फ संख्या नियंत्रित करने वाले तरीके हैं।
इन रुझानों के निशाने पर पुरुषों के मुकाबले महिलाएँ ज्यादा हैं। किसी समय में पुरुष नसबन्दी को, महिला नलिकाबन्दी से ज्यादा महत्व दिया जाता था। पर अब नसबन्दी तुलनात्मक रूप से कहीं ज्यादा आसान और सुरक्षित होने के बावजूद बिलकुल गायब ही हो गई है। प्रजनन नियंत्रण का पूरा भार इस तरह से महिलाओं पर ही डाल दिया गया है।