शिश्न मुण्डशोथ लिंग के सिरे के शोथ को कहते हैं। यह सम्भोग के समय जीवाणुओं के प्रवेश से हो जाता है जो सम्भवत: यौन संक्रमण कहलाता है। आमतौर पर इसका कारण फफूंद का इंफेक्शन (कैंडिडा) या ट्राइकोमोनास (संक्रमण) होता है।
इसमें जलन, खुजली, गीलापन और कुछ हद तक शिश्न के लगातार खड़े रहने की स्थिति बन जाती है। त्वचा को हटाने पर लाल और गन्दा दिखाई देता है। शिश्न मुण्डशोथ के निदान के समय हमें डायबिटीज़ और एस.टी आई./यौन संक्रमण की सम्भावना का ध्यान रखना चाहिए डायबिटीज़/मधुमेह के साथ अक्सर शिश्न मुण्डशोथ हो जाता है अत: पेशाब में शर्करा (शुगर) की मात्रा की जाँच ज़रूर करें।
डायबिटीज़ या एस.टी.डी. के बिना हुआ शिश्न मुण्डशोथ का इलाज आसान है। इसके लिए साबुन के साथ गर्म पानी से दिन में दो तीन बार धोएँ व जेनटियन वायलेट लगाएँ। यौन सम्बन्धी रोग का इलाज भी ज़रूरी है। ट्राईकोमोनास इंफेक्शन का इलाज, जिससे यौन सम्बन्धी को भी यही तकलीफ हो सकती है, ट्राईडाज़ोल का प्रयोग करें। मुँह से टिनिडासोल गोला करें।
शिश्न मुण्ड पर घाव या वृध्दि लगातार होने पर तुरन्त डॉक्टर के पास भेजें। डायबिटीज़ के निदान के लिए डिपस्टिक (रसायन युक्त कागज़ की पट्टी) के द्वारा एक आसान टेस्ट किया जाता है जिसमें पेशाब में शर्करा है या नहीं इसकी जाँच की जाती है। डायबेटिक शिश्न मुण्डशोथ बार-बार हो जाता है।
बच्चों में शिश्न मुण्डशोथ का एक आम कारण कीड़े को काटना होता है। इसमें मिट्टी या केतकी के गूदे का लेप करने से फायदा होता है (मिट्टी खेत में से ली जानी चाहिए जहाँ पाखाना न किया जाता हो)। इसके अलावा सी.पी.एम. की गोली भी दी जा सकती है। एलर्जी से होने वाली शिश्न मुण्डशोथ में खुजली होती है और इसमें भी सी.पी.एम. से आराम मिलता है।
फायमॉसिस-शिश्नम का बाहरी छेद छोटा होना |
फिमोसिस एक जन्मजात स्थिति है। इसका अर्थ है कि शिश्न मुण्ड षण को ढकने वाली त्वचा का छेद छोटा होता है। छेद छोटा होने से पेशाब के बाहर आने के रास्ते में रुकावट आती है इससे शिश्न मुण्ड की त्वचा फूल जाती है। बच्चा इसे सहन कर लेता है अगर छेद इतना भी छोटा न हो कि पेशाब बाहर ही न आ सके। आमतौर पर वृषण की त्वचा को ऊपर खिसका कर शिश्न मुण्ड को देखा जा सकता है पर फिमोसिस की स्थिति में ऐसा कर पाना सम्भव नहीं होता।
हल्के फिमोसिस में फूलने की समस्या नहीं होती, तब यह इलाज अपनाया जा सकता है। त्वचा के छेद को रोज़ धीरे-धीरे थोड़ा खींचे और कोई तेल (जैसे नारियल का तेल) लगाएँ। पर दुसाध्य फिमोसिस में सुन्नत ही एकमात्र इलाज होता है। सम्भोग के समय फिमोसिस से खासतौर पर मुश्किल होती है क्योंकि इस समय वृषण का आकार 3-4 गुना बढ़ गया होता है। सूजे हुए शिश्नमुण्ड अगर त्वचा के बाहर निकल आएँ तो फिर इनका बाहर जाना मुश्किल होता है। त्वचा का छल्ला कसे हुए बैण्ड (बन्ध) जैसे काम करता है और इससे भयंकर दर्द होता है शिश्न मुण्ड में और अधिक सूजन आ जाती है। इस गम्भीर स्थिति को पैरा फिमोसिस कहते हैं। अगर त्वचा कुछ समय के बाद तक भी वापस न जाए तो इस स्थिति में तुरन्त ऑपरेशन की ज़रूरत होती है।
कुछ समुदायों में (इस्लाम और ज्यू) सुन्नत की प्रथा इस समस्या से निपट लेती है और इसे शिश्न मुण्ड में शिश्नमल भी इकट्ठा नहीं होता। इससे वृषण के कैंसर से भी बचाव होता है। लेकिन ऐसे धार्मिक संस्कार के समय संक्रमण टालना ज़रूरी है।