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जलवृषण (हाईड्रोसिल)
hydrocele
जलवृषण

जलवृषण वृषणों के बाहर स्थित कोष की बीमारी है। इसमें इस कोष में ज्यादा द्रव इकट्ठा हो जाता है। द्रव के इकट्ठा होने का कारण जन्मजात होता है या फिर संक्रमण ( इंफेकशन) होता है। जन्मजात कारण सबसे आम कारण है और ये वृषण और वृषण कोश के बीच रास्ते में विकृति से होता है।

पुरुष प्रजनन अंग और उसके कार्यपुरुष जननेन्द्रियों तंत्र में बाहरी और आंतरिक में कई अंग होते हैं। इनमें से दो दिखाई देते हैं _ वृषण, शुक्राशय थैली और शिश्न(लिंग)। ये अंग वाहिका नली (शुक्रवाहिका नली) से जुड़े होते हैं। तंत्र के पौरूष ग्रंथी और मुत्रनली अंग शरीर के अन्दर होते हैं।

जन्मजात जलवृषण

जन्मजात जलवृषण अगर बचपन में दिखाई दे तो इसमें एक खासबात होती है। जब व्यक्ति लेटा होता है तब द्रव उदर में वापस चला जाता है और यह खाली हो जाता है यानी सुजन नही दिखाई देगी। जैसे ही व्यक्तिखड़ा होता है तो द्रव्य वापस आ जाता है कोश फिर से भर जाता है यानी सुजन फिर दिखाई देगी ।

फाइलेरिया रोग

कुछ क्षेत्रों में जलवृषण का आम कारण फाईलेरिया रोग होता है। फाईलेरिया रोग में वृषणकोण पर असर होता है जब फाईलेरिया कृमि वृषणकोष की लसिका वाहिनी को बन्द कर देते हैं। इससे वृषण कोश में लसिका इकट्ठा हो जाता है। बाद में ये सूजन कड़ी और तन्तुई हो जाती है।

रोग लक्षण

जलवृषण में आमतौर पर दर्द नहीं होता और सिर्फ आकार बड़ा होने की ही शिकायत होती है। रोगी खुद ही जाँचकर सकता है कि द्रव इकट्ठा हुआ है या आकार बड़ा हुआ है। द्रव भरा होने पर सूजन पारभासी होती है (इसकी जाँच अंधेरे कमरे में टार्च की मदद से की जा सकती है)। अगर सूजन ठोस हो तो वो प्रकाश में पारभासी नहीं होगी। परन्तु यह तय करने का काम डाक्टर पर ही छोड़ देना चाहिए। जलवृषण का इलाज केवल आपरेशन ही है।

वृषण हर्निया

वृषण हर्निया आंतो के वृषण कोश में नीचे आ जाने को कहते हैं। इसे अप्रत्यक्ष उपस्थ हर्निया भी कहते हैं। सूजन साफतौर पर वृषणों के ऊपर होती है। रोगी खुद हार्निया को वापस उदर में धकेल सकता है। यह बीमारी भी जन्मजात हो सकती है या फिर बाद में उपस्थ मांसपेशियाँ कमज़ोर हो जाने से भी हो जाता है (पाचन तंत्र के अध्याय को भी देखें)।

वृषणशोथ (औरकाईटिस)

वृषणशोथ वृषण के शोथ (इनफ्लेमेशन) को कहते हैं। आमतौर पर पेशाब के रास्ते, पुरस्थ (प्रॉस्टेट) ग्रन्थि और शुक्र पुटिकाओं में हुआ इंफेक्शन वृषणों या इनके बाहर के कोश तक पहुँच जाता है। हालाँकि ये इंफेक्शन वृषणों के पीछे अधिवृषण कोश तक ही सीमित रहता है। कभी-कभी ये इंफेकशन खून से भी आता है जैसा कि कनफेड़ (मंपस) की स्थिति में होता है। अगर वयस्क व्यक्तिको कनफेड़ हो जाए (बच्चे को नहीं) तो इससे वृषणशोथ हो सकता है (और औरतों में अण्डाशयों में शोथ हो सकता है)। इससे बंध्यता हो सकती है। इसलिए वयस्क उम्र में कनफेड़ हो जाने और उससे बंध्यता हो जाने से बेहतर है बचपन में कनफेड़ हो जाना या कनफेड़ का टीका लगवा लेना। एमएम आर का टीका जन्म के नौ महीने के बाद लगाया जाता है पर यह अभी तक सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का हिस्सा नहीं बना है।

उपचार

पाँच दिनों के लिए कोई एंटीबायोटिक जैसे एमपीसिलीन, अमोक्सीसिलीन या कोट्रीमाक्साज़ोल और कोई शोथरोधी दवाई (जैसे ऑस्पिरिव) दी जाती है। वृषणों को आराम देने के लिए वृषणों को कपड़े से सहारा दिया जाना आवश्यक है नहीं तो लटके रहने से उनमें दर्द होता है। अगर वृषणशोथ का दर्द बहुत ज्यादा हो जाए तो अस्पताल ले जाना ज़रूरी हो जाता है। बंध्यता के डर के कारण विशेषज्ञ द्वारा इलाज ज़रूरी है।

वृषणों में मरोड़ या कुचलने से चोट लगना

वृषण वृषणकोष में वृषण रज्ज़ु की मदद से लटके रहते हैं। इस स्थिति में उनके दबने या कुचले जाने या वृषण रज्ज़ु के मुड़ जाने से चोट लगने की काफी सम्भावना रहती है। इससे बहुत ज़ोर का दर्द हो सकता है और रोगी के लिए चिकित्सीय सहायता की ज़रूरत होती है।

मुड़ना: वृषणों में मरोड़ का कारण वृषण का खुद के चारों ओर एक या दो बार घेरे ले लेना होता है जिससे वृषण रज्ज़ु मुड़ जाती है। इससे वृषणों में खून का प्रवाह रुक जाता है। खून का प्रवाह रुकने के कुछ ही मिनटों में भयंकर दर्द और सूजन शुरू हो जाती है। उपचार में देरी से वृषणों को हमेशा के लिए नुकसान हो सकता है| जिसके बाद आपरेशन द्वारा इनको निकाल दिया जाना ही एकमात्र तरीका बचता है।

चोट

चोट में वृषण कुचले जा सकते हैं या दब सकते हैं। इससे बहुत दर्द होता है क्योंकि वृषण (और अण्डाशय) बहुत संवेदनशील होते हैं। इस दर्द से लगने वाले आघात (शॉक) में शॉक के सभी लक्षण दिखाई देते हैं जैसे नाड़ी का कमज़ोर पड़ना, खून का दबाव (ब्लड प्रेशर) कम होना और पसीना आना। दर्द निवारक दवा और तुरन्त अस्पताल ले जाया जाना ज़रूरी होता है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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