भारत में दिल के वाल्व की बीमारियॉं बहुत आम है। ऐसी ज़्यादातर गड़बड़ियॉं रुमेटिक बुखारसे होती हैं। कभी कभार ये सिफलिस के कारण भी होती हैं।
अगर दिल के वाल्व में स्थाई खराबी आ गई हो (या तो वाल्व बहुत ज़्यादा कसा या ढ़ीला हो जाए) तो इसे ऑपरेशन से ही ठीक किया जा सकता है। दुर्भाग्य से ये तरीका काफी मंहगा है। इसलिए वाल्व के ऑपरेशन के लिए पैसों की मदद के लिए अकसर अखबारों में प्रार्थनाएं दिखाई देती रहती हैं। दिल की बीमारी के लिए डिजिटेलिस और डाईयूरेटिक (ज़्यादा पेशाब बनाने के लिए) से इलाज सिर्फ अस्पताल में ही हो सकता है।
सूजी हुई शिराएं अपस्फीत शिराएं कहलाती हैं। इनमें से खून भी ठीक तरह से नहीं बहता। यह आम तौर पर शिराओं के वाल्व के खराब हो जाने के कारण होता है। जो लोग लंबे समय तक खडे़ रह कर काम करते हैं उनमें यह समस्या देखी जाती है। जैसे कि वाहन नियंत्रित करने वाले पुलिस वाले या फिर बोझा ढोने वालों को अक्सर यह तकलीफ हो जाती है।
पैरों की पेशियों के भिंचने से पैरों की शिराओं में खून चढ़ता है। आंतरिक वाल्व खून को सिर्फ दिल की ओर ही जाने देते हैं। यह क्रिया खून पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के उल्ट चढ़ता है। अगर शिराओं में वाल्व न हों तो यह नहीं हो सकता। खड़े रहने से घुटनों और एड़ियों के बीच पीछे की ओर की पेशियॉं कड़ी और गतिहीन हो जाती हैं। इससे धीरे धीरे वाल्व खराब हो जाते हैं क्योंकि उन्हें लंबे समय तक खूब सारे खून का भार संभालना पड़ता है। इससे पैरों की शिराओं में चिरकारी निष्क्रियता हो जाती है (यानि खून का बहाव रुक जाता है)। इससे शिराएं सूज जाती हैं और टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं। इससे त्वचा पर अल्सर भी हो सकता है। ऐसा वहॉं के ऊतकों के कमज़ोर पड़ने के कारण होता है।
अगर अपस्फीत शिरा की तकलीफ गंभीर हो चुकी हो तो इसका एकमात्र इलाज ऑपरेशन ही होता है। शुरुआत की अवस्था में जब सिर्फ एक दो शिराएं ही प्रभावित हुईं हों तब हम इसका इलाज शुरु कर सकते हैं। इसके लिए ज़रूरी है कि शिराओं को नियमित रूप से व ठीक से खाली किया जाए। यह दो तरह से किया जा सकता है: