गुहेरी |
पलकों के बालों की जड़ों या पलकों की तेल ग्रंथियों में पीप इकट्ठी हो जाने को गुहेरी (स्टाई) कहते हैं। यह शरीर की बिमारियों से लड़ने (प्रतिरोध) की ताकत के कम हो जाने का सूचक हो सकता है। सबसे पहले पलकों पर छोटा सा लाल दाना या सूजन हो सकती है इससे थोड़ी सी मुश्किल होती है। यह या तो इसी समय ठीक हो सकती है, या कभी कभार पीप से भर कर पूरी गुहेरी बन सकती है जो अन्तत: फूट भी सकती है। इसके बाद यह अक्सर ठीक होती है। कभीकभी यह और फैल सकती है।
एण्टी माईक्रोबियल – गुहेरी बनने की प्रक्रिया को ऊपर बताए गए तरीके से रोकने की कोशिश करें। अगर पहले से ही पस बन गया हो तो बाल उखाड़ने से (अगर गुहेरी बालों के जड़ में है तो) और साफ गुनगुने पानी से धोने से गुहेरी बनना रोका जा सकता है। टैटरासाइकलीन या कोट्रीमोक्स जैसे बैक्टीरिया रोधी दवाइयॉं खाने से भी इस संक्रमण को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।
औषधियों का इलाज – गुहेरी की जगह पर लहसन का रस या आम की ताज़ी पत्तियों का दूध लगाने से ये ठीक हो सकती है।
आँखे आना |
नेत्रश्लेष्मा के शोथ को सामान्य भाषा में आँखे आना कहते हैं। यह शोथ किटाणुओं, एलर्जी करने वाले व विकार पैदा करने वाले पदार्थो से हो जाता है। आमतौर पर इसका कारण पता कर पाना मुश्किल होता है। साधारणतय इससे दोनों आँखों पर असर होता है। कुछ बैक्टीरिया और वायरस यह संक्रमण पैदा करते हैं। यह रोग कोई भी चीज़ों जैसे रोगी द्वारा इस्तेमाल किए गए रूमाल या तोलिया से या तैरने के हौदे के पानी से फैल सकता है। इसलिए जो व्यक्ति जॉंच कर रहा हो उसे सावधानी बरतनी चाहिए। संक्रमण वाला नेत्रशोथ अक्सर खूब फैल जाता है। असल में इस तरह रोग के महामारी जैसे फैल जाने से ही यह पता चलता है कि यह संक्रमण वाला नेत्रशोथ है। संक्रमण तेज़ी से परिवार के सदस्यों और अन्य सम्पर्क में आने वाले लोगों में फैल जाता है।
अगर प्रसूती के दौरान योनि मार्ग में किटाणु उपस्थित हों तो नवजात शिशु को २-७ दिनो में नेत्रशोथ हो सकता है। नवजात शिशुओं में नेत्रशोथ आमतौर पर सुजाक (गोनोरिया) के कारण होता है। इसके और भी कारक जीवाणू है। जन्म के समय हुए नेत्रशोथ पर ध्यान न दिए जाने से बच्चा अन्धा भी हो सकता है। इसलिये १० दिनतक नवजात शिशुका आँख का ध्यान भी रखना चाहिये।
आँखों में कुछ चीज -कंकर जाने का अहसान होना, आँखों का लाल हो जाना, उनमें पानी आना, दर्द होना ये आम लक्षण है। इसके साथ नेत्रश्लेष्मा में सूजन होना, रोशनी का सामना करने में मुश्किल होना और आखों में से चिपचिपा पदार्थ निकलना जिससे आँख खोलने में मुश्किल हो, ये भी लक्षण हैं। नेत्रशोथ का निदान साधारणतय आसान होता है। संक्रमण वाले नेत्रशोथ में पीप निकलता है। यह अक्सर एक व्यक्ति से दूसरे में फैल जाता है।
एलर्जी से होने वाला रोग एक व्यक्ति से दूसरे में नहीं फैलता। एलर्जी से होने वाले कंजंकटिवाईटिस में पानी जैसा पदार्थ निकलता है, पीप नहीं। परन्तु इसमें भी अतिरिक्त संक्रमण होने का खतरा रहता है। नेत्रशोथ की जॉंच के समय कॉर्निया को देखना ज़रूरी होता है। यह पक्का कर लें कि कॉर्निया सुरक्षित है और इसमें छोटा सा भी घाव नहीं है। नेत्रशोथ की स्थिति में कॉर्निया में घाव होने की काफी सम्भावना होती है। इस पर ध्यान न देने से कॉर्निया अपारदर्शी हो सकता है। इससे उस आँख में आँशिक या पूर्ण अन्धापन हो सकता है। अगर कॉर्निया सुरक्षित है तो नेत्रशोथ का इलाज मुश्किल नहीं है। एक आँख के नेत्रशोथ पर भी ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। यह मूलत: कॉर्निया की समस्या हो सकती है।
चिकित्सीय जॉंच में बैक्टीरिया और वायरस दोनों से होने वाला नेत्रशोथ एक जैसा लगता है। बैक्टीरिया से होने वाले नेत्रशोथ में आँखों के बैक्टीरिया रोधी तरल दवाई या ऑइंटमेन्ट से काफी असर होता है। पर इस तरह के इलाज से वायरस से हुए नेत्रशोथ में कोई फायदा नहीं होता।
रोहे वाला नेत्रशोथ एक चिरकारी स्थिति है जो टैट्रासाक्लीन ऑइंटमेन्ट के लगातार इस्तेमाल से ठीक हो सकती है। बैक्टीरिया से होने वाले नेत्रशोथ और रोहे वाले नेत्रशोथ दोनों के लिए ही टैट्रासाइक्लीन एक असरकारक दवा है। संक्रमण के स्थान पर टैट्रासाइक्लीन का इस्तेमाल बच्चों के लिए भी सुरक्षित है। अगर नेत्रशोथ संक्रामक हो गया है तो इसके इलाज के लिए खास बैक्टीरिया रोधी दवाई की ज़रूरत होगी। आपका स्वास्थ्य केन्द्र आपको इसके चुनाव में मदद करेगा।
ऐलर्जी से होने वाले नेत्रशोथ में खुजली होती है और उससे पानी जैसा द्रव निकलता है। इलाज के लिए स्टीरॉएड (आँखों की दवा) का इस्तेमाल होता है। आमतौर पर ऐलर्जी का असल कारण पता नहीं लग पाता। ऐलर्जी आसानी से टाली भी नहीं जा सकती। एलर्जी करने वाले कुछ आम पदार्थ हैं विभिन्न पौधों के परागकण और घर की धूल। पर स्टीरॉएड का बेतरीका इस्तेमाल आँखों को नुकसान पहुँचा सकता है। अगर कॉर्निया में घाव हो तो स्टीरॉएड का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। ऐसे में रोगी को डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए।
यह नेत्रशोथ आमतौर पर ऐसे पदार्थ आँख में से निकाल देने से ठीक हो जाता है। आँखों को पानी से धोना मददगार और आराम पहुँचाने वाला होता है।
चिकित्सीय जॉंच में बैक्टीरिया और वायरस दोनों से होने वाला नेत्रशोथ एक जैसा लगता है। बैक्टीरिया से होने वाले नेत्रशोथ में आँखों के बैक्टीरिया रोधी तरल दवाई या ऑइंटमेन्ट से काफी असर होता है। पर इस तरह के इलाज से वायरस से हुए नेत्रशोथ में कोई फायदा नहीं होता।
रोहे वाला नेत्रशोथ एक चिरकारी स्थिति है जो टैट्रासाक्लीन ऑइंटमेन्ट के लगातार इस्तेमाल से ठीक हो सकती है। बैक्टीरिया से होने वाले नेत्रशोथ और रोहे वाले नेत्रशोथ दोनों के लिए ही टैट्रासाइक्लीन एक असरकारक दवा है। संक्रमण के स्थान पर टैट्रासाइक्लीन का इस्तेमाल बच्चों के लिए भी सुरक्षित है। अगर नेत्रशोथ संक्रामक हो गया है तो इसके इलाज के लिए खास बैक्टीरिया रोधी दवाई की ज़रूरत होगी। आपका स्वास्थ्य केन्द्र आपको इसके चुनाव में मदद करेगा।
यह एक तरह का चिरकारी नेत्रशोथ है जो टी.बी. वाले जीवाणुओं से होता है। सभी तरह के चिरकारी नेत्रशोथ में विशेषज्ञ की सलाह ज़रूरी होती है।
नवजात शिशुओं में नेत्रशोथ आमतौर पर सुजाक के कारण होता है और इसलिए इसमें सलफा और पैनिसिलीन (आँख में डालने की) दवाई से फायदा होता है। कम से कम दो से तीन दिनों तक लगातार हर दो घण्टों में आँखों में दवाई डालें। इतने समय में बीमारी लगभग दूर हो जानी चाहिए। अगर राहत न हों तो डॉक्टर की सलाह लेने में न हिचकिचाएँ। पहले ४८ घण्टों में हर एक नवजात शिशु की जॉंच करें।
एरण्ड का तेल नेत्रशोथ के लिए एक अच्छा इलाज है। एक या दो बार एरण्ड का तेल लगाने से सभी तरह के नेत्रशोथ जैसे संक्रमण में फायदा होता है। यह पक्का कर लें कि कॉर्निया में छाला नहीं है। एरण्ड का तेल लगाते समय सफाई का पूरा ध्यान रखें। इसे काजल जैसे पलकों के किनारे पर लगाना चाहिए। आँख में इसकी एक परत फैल जाएगी। कुछ ही मिनटों में इसका लाभ महसूस होने लगेगा। रात को लगाने से आमतौर पर सुबह तक फायदा हो जाता है। दोनों आँखों में एरण्ड का तेल लगाने से एक दूसरे के सम्पर्क से संक्रमण से बचाव होता है। यह तेल छूत फैलने के दिनो में लगाने से बीमारी से बचाव में मदद करता है।