टीके बनने से पहले टिटेनस सबसे ज्यादा मौत का कारण बनने वाली बीमारी होती थी। यह बच्चों व बड़ों सभी को होती थी परन्तु नवजात शिशुओं में, जन्म के समय अस्वच्छ तरीके अपनाने के कारण इससे खास खतरा होता था। मिट्टी में टिटनेस के बैक्टीरिया बहुत ज्यादा होते हैं क्योंकि मनुष्यों के और पशुओं के मलमूत्र में ये कीटाणु बहुत अधिक होते हैं। पुराने ज़माने में बच्चे के जन्म के बाद उसकी नाल में गोबर लगाने की प्रथा थी। इस कारण से तब नवजात शिशुओं में टिटनेस बहुत होता था।
किसी भी तरह की चोट, सड़क दुर्घटना में लगी चोट और यहाँ तक की ऑपरेशन के ज़ख्म तक टिटनेस का कारण बन सकते हैं। परन्तु ऑंतों में टिटनेस के बैक्टीरिया होने से टिटनेस नहीं होता है।
टिटनेस की बीमारी के लिए ज़रूरी है ज़ख्म, जहाँ ऑक्सीजन की मात्रा कम हो। इसलिए कोई भी ज़ख्म जिसमें पीप पैदा करने वाले बैक्टीरिया हों _ वो वहाँ मौजूद ऑक्सीजन को इस्तेमाल करके खत्म कर देंगे _ और ऐसी जगह टिटनेस बहुत आसानी से हो जाएगा। ऐसे ज़ख्मों में टिटनेस के बैक्टीरिया अपनी संख्या बढ़ाते हैं और एक रोग-विष पैदा करते हैं। टिटनेस इस रोग-विष के कारण होता है।
यह रोग-विष मुख्यत: मस्तिष्क पर असर डालता है जिससे दौरे पड़ते हैं और फिर शरीर के कई महत्वपूर्ण काम लकवे के कारण रुक जाते हैं। जैसे कि श्वसन। बीमारी की शुरुआत में घाव के आस-पास भारीपन-सा लगता है। यह रोग-विष के स्थानीय असर के कारण होता है। रोग-विष के फैलने के बाद पहला असर जबड़ा-एेंठता हनुस्तम्भ का होता है। इसके बाद दौरे पड़ते हैं और महत्वपूर्ण अंगों को लकवा मार जाता है। इलाज न होने से पहले मौत हो जाना बहुत आम बात थी।
वात रोग सायटिक तंत्रिकाओं की बीमारी है। यह तंत्रिका श्रोणी से निकलकर कूल्हों से होती हुई सीधी जाँघों और पैरों के पीछे से होती हुई नीचे तलवों तक जाती है। वात रोग में अचानक दर्द की लहर उठती है। यह दर्द कभी असहनीय होता है। इसके लिए दर्द निवारक दवाओं के अलावा ऍलोपथी में कोई और इलाज नहीं है। एॅक्युपंक्चर अक्सर काम करता है। कुछ मामलों में ऑपरेशन ज़रूरी होता है। इसकी ज्यादा जानकारी अस्थि अध्याय में दी गयी है।
नवजात शिशुओं में टिटनेस उतना साफ दिखाई नहीं देता जितना कि बड़ों में। दूध न चूस पाना, रोना और दौरे पड़ना टिटनेस के लक्षण हैं। बार-बार एक या दोनों पैरों को खींचना, हाथ या पैरों में ऐंठन या बल पड़ना कुछ एक लक्षण हैं। एक रुकी हुई सी मुस्कुराहट, जिसे हास्यानुकारी कहते हैं, भी अक्सर दिखाई देती है।
टिटेनस टॉक्साइड, एक बेहद असरकारक टीका है। यह टिटनेस रोग-विष के दो अणुओं से मिलकर बना होता है। इससे टिटनेस के खिलाफ काफी लम्बे समय की प्रतिरक्षा मिल जाती है। एमसीएच माता एवं बालक सुरक्षा कार्यक्रम के सामान्य टीकाकरण योजना में टिटनेस का टीका भी शामिल है। इसकी दो खुराकें एक महीने के अन्तराल पर दी जाती हैं। प्रतिरक्षा दोनों खुराकों के बाद ही पैदा होती है।
यह प्रतिरक्षा पाँच साल बाद कम होने लगती है। इसलिए पाँच साल बाद एक बूस्टर खुराक लेनी ज़रूरी होती है। वयस्कों को भी टिटनेस का टीका दिया जाना चाहिए।
कांटा लगना, सड़क दुर्घटना होने या किसी जानवर के काट लेने जैसी नुकसान न पहुँचाने वाली तकलीफों से भी किसी व्यक्ति को टिटनेस हो सकता है अगर उसे टिटनेस का टीका न लगा हो। घाव को ठीक से साफ करें। हाइड्रोजन परऑक्साइड से उस क्षेत्र में ऑक्सीजन फैल जाती है जिससे टिटनेस के बैक्टीरिया मर जाते हैं। ज्यादा खतरे वाले ज़ख्मों में तैयार प्रति सीरम का इन्जेक्शन लगाया जाता है। टिटनेस शुरू होने पर समय से इसको पहचान पाना ज़रूरी है। इसलिए हमें शुरुआती लक्षणों जैसे हनुस्तम्भ की ओर विशेष ध्यान देना चाहिए। जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुँचाया जाना ज़रूरी है।
रसौली या सूजन मस्तिष्क भी उसी तरह हो सकती है जैसे शरीर के किसी भी और भाग में। ये या तो कैंसर हो सकता है या साधारण रसौली। मस्तिष्क में रसौली का सबसे आम असर यह होता है कि मस्तिष्क के उस भाग पर दबाव पड़ता है। मस्तिष्क में रसौली होने का पता सम्बन्धित अंग में लकवा होने या संवेदनशीलता में कमी होने से चलता है। रसौली के आकार और जगह के हिसाब से इसका पता देर से या जल्दी लग सकता है। जल्दी पहचान और इलाज महत्वपूर्ण हैं। मस्तिष्क की रसौली की पहचान के लिए खास ग्ङक्ष्/च्क्ॠग् फ़ोटो लेने और छवि बनाने की तकनीक काफी उपयोगी हो सकती है।
पार्किन्सन बीमारी आमतौर पर बुढ़ापे में होती है। यह एक चिरकारी बीमारी है। इसमें कुछ न करने के समय हाथ, उँगलियाँ और सिर लगातार हिलते रहते है। उँगलियों में एक खास तरह की माला घुमाने जैसी होती है। यह हरकत उस समय रुक जाती है जब व्यक्ति अपने आप कुछ काम करने के लिए पेशियों को हिलाता है। पर यह फिर शुरू हो जाती है जब वह स्वैच्छिक काम बन्द हो जाता है। इस बीमारी से बीमार व्यक्ति काफी मज़बूर-सा हो जाता है। पर इसके लिए दवाइयाँ उपलब्ध हैं। बीमार व्यक्ति को किसी विशेषज्ञ के पास भेजा जाना चाहिए।
सीटी स्केन और एमआरआई (मैग्नेटिक रैज़ोनैंस इमेजिंग) छवि बनाने की नई तकनीक है जिनका मस्तिष्क और मेरुदण्ड की बीमारियों के निदान में महत्वपूर्ण योगदान है। इन तकनीकों से जाँचे जा रहे भाग की सही और विस्तृत तस्वीर मिल जाती है। इससे मस्तिष्क या मेरुदण्ड में आन्तरिक रक्तस्राव की जगह और मात्रा या रसौली के बारे में सही जानकारी मिल जाती है। इससे मस्तिष्क या मेरुदण्ड की पेरशानियों से प्रभावित लोगों को बहुत राहत मिली है।