बच्चों को बीमारीयॉ का होना काफी आम बात है| इस अध्याय में साधारण या आम बीमारीयों का वर्णन दिया है|
भारत की जनसंख्या का 40 प्रतिशत 14 साल से कम के बच्चों का है। उसमें हर सौ बच्चो में से लगभग 12 बच्चे असल में 5 साल से कम उम्र के हैं। बीमारी और मौत छोटी उम्र के साथ ज्यादा हावी रहते हैं। 100 जवित पैदा हुए बच्चों में से 5 की म़त्यु अपनी उम्र का एक साल पूरा करने से पहले ही हो जाती हैं। बच्चों की यह मृत्यु दर विकसित देशों की मृत्यु दर से काफी ज़्यादा है। विकसित देशों में यह दर एक प्रतिशत से भी कम है। भारतीय बच्चों की लंबाई और वजन के पैटर्न को और उनकी बीमारियों को देखें तो हमें पता चलता है कि उनका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है। करीब 40 प्रतिशत भारतीय बच्चों की वृद्धि ठीक नहीं हुई होती और वो कुपोषित होते हैं।
भारत में बच्चों के खराब स्वास्थ्य और मौतों का कारण रहन सहन के खस्ता हालात ही है। इन हालातों के कारण ही कुपोषण, संक्रमण रोग और दुर्घटनाओं की स्थितियॉं निर्मित होती हैं। भारत के अधिकांश समुदायों में लडकीयॉ के लिये जन्म से ही और भी ज़्यादा मुश्किल परिस्थितियॉं हैं। गर्भ में लडकी का पता चलते ही उसे गर्भपात कर निकाल देना और लडकी को जन्म के तुरन्त बाद ही खतम कर देना या बाहर कुडेदान पर फेंक देना भी यहॉं काफी समस्या है। कुपोषण, बीमारी, देखभाल का अभाव और मौतें भी बच्चियों के मामले में ज़्यादा देखने को मिलते हैं। इसी कारण से भारत में लिंग अनुपात यानी पुरुषों के मुकाबले महिलाओं या लड़कों में मुकाबले लड़कियों की संख्या कम है।
बच्चों में बड़े स्तर पर बीमारियॉं होने के बावजूद यहॉं बच्चों के स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। ग्रामीण इलाकों के अधिकांश स्वास्थ्य
कार्यकर्ता और निजी चिकित्साकर्मी बच्चों की स्वास्थ्य सेवाओं के लिए प्रशिक्षित नहीं हैं। खास बच्चों की देखभाल के लिए चलाए गए आंगनवाड़ी कार्यक्रम भी पूरक पोषण और टीकाकरण तक ही सीमित रहते हैं। इसके अलावा कई कई बच्चे घरों में ही पैदा होते हैं और नवजात शिशुओं की ठीक देखभाल भी नहीं होती है। भारत में ३० प्रतिशत बच्चों का जन्म के समय वजन कम होता है और उन्हें जिऩ्दा रहने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। इस अध्याय से आपको बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल के बारे में समझने में मदद मिलेगी।
दांत निकलने की परेशानियॉं, मुखपाक, उल्टि व अमाश्यशोथ, दस्त, पेचिश, पेट में दर्द, पीलिया, क़मि, मोतीझरा, दोहद, कब्ज़ और दुर्घटना से ज़हर चला जाना।
जुकाम खॉंसी, टॉन्सिल या कंठशालूक का शोथ, गला खराब होना (गलदाह), वायुविविर शोथ, श्वसनिका शोथ, निमोनिया, तपेदिक, क़मि परजीवी से होने वाली खॉंसी, दमा।
छाले, संक्रमण वाले घाव, एक्ज़ीमा, जूंएं, पामा (स्कैबीज़), दद्रु कृमि।
दुखती आँख, कोर्निया में अल्सर, रतौंधी, देखने में मुश्किल और कानापन।
बाहरी कान का संक्रमण, बाहरी कान में फंफूद, कान में मोम जमना, मध्यकर्ण का संक्रमण और बहरापन।
मस्तिष्कावरण शोथ, मस्तिष्क शोथ, टिटेनस, पोलियो, मिर्गी और मानसिक रूप से अविकसित होना। दिल और संचरण: जन्मजात गड़बड़ियॉं और वाल्व की बीमारियॉं।
पैरों के आकार में गड़बड़ी, अन्य हड्डियों और जोड़ों के आकार में गड़बड़ियॉं, रिकेटस, हड्डियों का संक्रमण, कुपोषण के कारण पेशियों का खतम हो जाना, पेशीविकृति।
दात्र कोशिका अनीमिया, लोहे की कमी से अनीमिया, मलेरिया, कैंसर और रक्त स्त्राव संबंधित गड़बड़ियॉं।
फाइलेरिया रोग, कैंसर, गले में गांठें और वायरस से होने वाली गांठें।
मधुमेह (डायबटीज़), घेंघा रोग और वृद्धि में अवरोध।
गुर्दे का शोथ (वृक्क शोथ), अपवृक्कीय संलक्षण, मूत्राशय में संक्रमण, मूत्रमार्ग शोथ, पथरी और पेशाब रुक जाना।
वृषण का पूरी तरह से नीचे न आना, वृषण का विकसित न होना और निरुद्धप्रकाश।
कम विकसित डिंबग्रंथि या गर्भाशय।
खसरा, रूबैला, छोटी माता, कनफेड़, कुपोषण, समय से पहले जन्म, जन्म के समय वजन कम होना।
चोट, जलना, किसी कीड़े आदि द्वारा काट लिया जाना, डूब जाना, बिजली का झटका, कान या नाक में कोई बाहरी चीज़ का चला जाना या ज़हर अंदर चला जाना। यह सूची केवल एक मोटी समझ बनाने के लिए है। आप बहुत सारी बीमारियों के बारे में अन्य अध्यायों में पढेंगे। इस अध्याय में केवल कुछ खास बीमारियों के बारे में ही बात की गई है। बचपन में पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र और त्वचा की बीमारियॉं सबसे अधिक होती हैं। शरीर में कीड़े होने से भी कुपोषण बढ़ता है। बीमारी के लिए दवा दे देना ही काफी नहीं होता। बच्चों के स्वास्थ्य के लिए और उन्हें मौत से बचाने के लिए हमें बीमारियों से बचाव और शुरुआत में ही इलाज पर भी ध्यान देना चाहिए। पोषण, सफाई और टीकाकरण बहुत महत्वपूर्ण होते हैं।