आपके बच्चे को बारबार खांसी और हॉंफने की शिकायत हो लेकिन बुखार ना हो तो समझीये कि उसे बालदकमा है| बालकदमा १-५साल की उम्रतक हो सकता है| बालकदमा लंबे समयतक चलने और कम-अधिक होनेवाली बिमारी है| इसके लिये हमेशाके लिये नही लेकिन तात्कालिक उपाय है| माता-पिताको इस बिमारी व इसके इलाजकी सही जानकारी होनी चाहिये| तांकि वे बेकारकी चिन्ता, आशा-निराशा, डर तथा डॉक्टर बदलने जैसी बातोंसे दूर रहे|
अनुवंशिकता और ऍलर्जीके संयुक्त कारणोंसे बालकदमा होता है| वायूप्रदूषण से भी बालकदमा उभरता है| विषाणुजनित सर्दी-बुखारसे भी बालकदमा शुरू हो सकता है| बारीश या ठण्डे मौसममें बालकदमा अधिक होता है|
पहली बार दमा होने पर बच्चे को तुरन्त डॉक्टरके पास ले जाएँ| डॉक्टर तुरन्त उपचार करके घर लेनेके लिये दवाई देंगे| सामान्यत: बालकदमें में इंजेक्शन या सलाईनकी आवश्यकता नही होती| श्वसनमार्गसे दवाई सही स्थान पर पहुँचती है| डॉक्टर मुँहसे लेनेकी दवाईयॉं देते है, जिसे श्वसनमार्ग खुला रखने में सहायता होती है| तात्कालिक उपचारोंमें तीन प्रकारकी दवाइयॉं है|
बालकदमा किस तत्त्वों के परीक्षण एलर्जीसे हुआ है इसके शोध हेतु परीक्षण करते है| छातीका क्षयरोग है या नही देखने के लिये छातीका एक्सरे आवश्यक है| बालकदमा ५ वर्षोपरान्तभी रहा हो तो फेफडोंका क्षमता परिक्षण करना पडता है| इसकेलिए पी.एफ. टेस्ट करते है|
ऋतुमानानुसार बालकदमा कम-अधिक हो सकता है| अत: शीत या वर्षाकाल में ध्यान रखे गरम कपडों का उपयोग अच्छा है| ऐसे बच्चों को सर्दी बुखार वाले व्यक्तियों से दूर रखे| एलर्जीके कारणों का पता लगने से बालकदमा टाला जा सकता है| वायूप्रदूषण से बालकदमा बढ रहा है| धूल प्रदूषण से ऐसे बच्चों को बचाना चाहिये| बालदमें के लक्षण, चिन्ह दिखतेही डाक्टर से मिले| अपने बच्चे की बिमारी की जानकारी बालवाडी शिक्षिका को दे| साथही प्रथमोपचार की दवाईयॉं और अपना फोन नंबर दे|
पाँच सालकी उम्रके बाद बालकदमा अक्सर बंद हो जाता है| लेकिन कुछको बादमेंभी दमा शुरू रहता है| श्वसनोपचार अर्थात अलग-अलग सरल प्राणायाम बच्चों को सिखाए| गुब्बारा फुलानेका व्यायाम भी अच्छा है| बच्चों को उनके खेल खेलने दिजिये| खेलने से श्वसनमार्ग खुला और निरोगी रहता है| लेकिन साथवाली बॅग में दवाइयॉं रखनी चाहिये| कईं विश्वस्तर के खिलाडी दमा होने पर भी सफल रहे है| बालकदमा के लिये झोला छाप डॉक्टरों की सलाह, उपचार नही ले| ये लोग अक्सर स्टेरॉइड दवाइयों का गलत उपयोग करते है|
कनफेड़ हवा में मौजूद वायरस से होने वाली बीमारी है जो 5 – 6 साल के बच्चों को पकड़ती है। इस उम्र में कनफेड़ आमतौर पर नुकसानदेह नहीं होता। इसमें गालों के पीछे की ओर स्थित लार ग्रंथियों में सूजन हो जाती है जिनमें दबाने से दर्द भी होता है। एक बार संक्रमण होने पर जीवन भर के लिए प्रतिरक्षा पैदा हो जाती है। अगर यह संक्रमण बचपन में न हो तो यह कभी कभी बड़ी उम्र में हो सकता है। व्यस्कों में कनफेड़ से डिंबवाही ग्रंथियों या वृषण पर असर हो सकता है। इसलिए बड़ी उम्र में होने वाला कनफेड़ खतरनाक होता है। कनफेड़ से होने वाले डिंबवाही ग्रंथियों या वृषण के शोथ से बन्ध्यता हो सकती है। सही उम्र में इसका टीका लगा देना ही सबसे उपयोगी तरीका है। यह एम.एम.आर. टीके के रूप में मिलता है (यानि खसरे, कनफेड़ और रूबैला) के टीके के रूप में। बच्चों में कनफेड़ के इलाज के लिए पैरासिटेमॉल दी जाती है। इससे दर्द और बुखार कम हो जाता है। व्यस्कों को कनफेड़ होने पर डॉक्टर के पास भेजा जाना ही ठीक रहता है।