त्वचा के ज़ख्म और अन्य बीमारियाँ त्वचा और उसकी खुजलीवाली बीमारियाँ
मुँहासे

मुहॉंसे चेहरे पर होने वाले दाने हैं। ये उम्र के दूसरे दशक में होने शुरू होते हैं और फिर तीस साल की उम्र तक फिर से होते जाते हैं। यह यौन हारमोनो के कारण शरीर में आ रहे बदलावों से जुड़े हैं। शुरू में मुहॉंसे तेलीय ग्रंथियों में थोड़ी सी सूजन के रूप में दिखाई देते हैं जो ऊपर से बन्द होते है। फिर संक्रमण से पीप, सूजन व दर्द होने लगता है।

इलाज

जिन मुहॉंसों में संक्रमण नहीं हुआ होता वो अपने आप ही ठीक हो जाते हैं। परन्तु साथ ही दूसरी जगहों पर नए मुहॉंसे निकल आते हैं। दिन में ३-४ बार मुँह धोना छोटे मुहॉंसों को ठीक करने के लिए काफी है। बड़े मुहॉंसों को ठीक करने के लिए उपचार की ज़रूरत होती है।

नींबू का रस लगाना तेलीय डाट को खोलने के लिए उपयोगी होता है। इससे ग्रंथियों की रोक हट जाती है। संक्रमण वाले मुहॉंसे तब तक ठीक नहीं होंगे जब तक या तो पीप अपने आप निकल जाए या फिर इलाज से। मुहासों के लिए आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले लोशन में बेन्जाइल पेरॉक्साइड होता है जो मुहॉंसों को शुरू-शुरू में ही ठीक कर देता है। पीप से भरे मुहासों को दबाकर पीप निकालने की कोशिश न करें। नहीं तो चेहरे की वाहिकाओं द्वारा पीप दिमाग तक भी पहॅंच सकती है। दबाकर फोड़ने से निशान भी रह जाते हैं। मुहॉंसों को केन्द्र बिन्दु निकाल देने से अन्दर के गन्दे पदार्थ को बाहर निकलने का मौका मिल सकता है। संक्रमण रोकने के लिए डॉक्सी साइक्लीन सही दवा है। आयुर्वेद में मुहॉंसों को लेकर अलग समझ है। माना जाता है कि ये किन्ही दोष के कारण होते हैं। कब्ज़, इनका एक कारण होता है। मुहॉंसों के इलाज के लिए हल्दी का लेप प्रयोग करें।

हरपीज़ ज़ोस्टर (भैंसिया दाद)

मकडी एक वायरस से होने वाली बीमारी है। यह वही वायरस है जिससे छोटी माता होती है। एक बार छोटी माता होने के बाद यह वायरस शरीर में सुप्त अवस्था में पड़ा रह सकता है। किसी किसी व्यक्ति में यह कई सालों बाद फिर से सक्रिय हो सकता है। शरीर में सुप्त अवस्था में यह वायरस मेरूदण्ड (स्पाइनल कोर्ड) में रह सकता है। वयस्क उम्र में इससे हरपीज़ ज़ोस्टर यानी मकडी की बीमारी हो सकती है।

लक्षण

इस रोग का मुख्य लक्षण है त्वचा पर एक रेखा में दाने उभर आना। वायरस मेरूदण्ड से त्वचा तक तंत्रिका के रेशे के साथ-साथ पहुँचता है। और इसीलिए यह शरीर के किसी भी भाग पर एक रेशा के रूप में उभरता है। इसिलिये शरीर के एक ही ओर होता हे। शुरू में यह लाल चकत्तों के रूप में उभरता हे जो फिर सफेद चमकदार फूंसी में बदल जाता है। आमतौर पर जलन के साथ दर्द होता है। ज़्यादातर मामलों में २ से ३ हफ्तों में यह अपने आप ठीक हो जाता है। परन्तु कुछ लोगों में यह महीनों तक खिंच सकता है इससे बहुत ज़्यादा दर्द और तकलीफ होती है। कभी कभी चेहरे पर भी असर होता है, या आँखों पर असर हो सकता है जिससे अन्धापन भी हो सकता है। कुछ समुदायों में यह मिथक है कि सॉंप की तरह दिखने वाली यह बीमारी अगर शरीर के बीच के एक हिस्से से दूसरी ओर चली जाए तो इससे मौत हो सकती है। यह सच नहीं है क्योंकि तंत्रिकाओं की शाखाएँ कभी भी शरीर के बीच के एक हिस्से से दूसरी ओर नहीं जाती।

इलाज

एसाईक्लोवर हरपीज़ ज़ोस्टर की नई दवा है। इस दवा से यह बीमारी बहुत अच्छी तरह से ठीक हो जाती है। वयस्कों को ८०० मिलीग्राम की गोली दिन में पॉंच बार एक हफ्ते के लिए दी जानी होती है अधिक जानकारी के लिए डॉक्टर से सम्पर्क करें। एस्परीन और आईब्रुप्रोफेन देकर हम दर्द कम कर सकते है।

त्वचा के रोग और आयुर्वेद

आयुर्वेद में त्वचा के रोगों को किसी भी अन्दर की गड़बड़ी का बाहरी रूप में प्रकट होना माना जाता है। इसलिए इसमें त्वचा के रोगों के उपचार के लिए कई तरह से शुद्धीकरण की सलाह दी जाती है। यहॉं कुछ और सलाहें दी गई हैं। त्वचा को स्वस्थ रखने के लिए दूध या दूध की चीज़ें खट्टी चीज़ों के साथ नहीं खानी चाहिए। चावल, दाल और मछली दूध के साथ नहीं खाने चाहिए। नमकीन चीज़ें बहुत ज़्यादा नहीं खानी चाहिए। त्वचा के रोगों से ग्रस्त लोगों को अचार और ज़्यादा तेज नमक वाली चीज़ों से परहेज करना चाहिए। दही या खाने की ऐसी चीज़ों से परहेज करना चाहिए जो रखनेपर पानी छोड़ती है।

आँतों में कीड़े होने या कब्ज़ से भी त्वचा के रोग हो जाते हैं। बरसात के मौसम में होने वाले त्वचा की बीमारियों मे आमतौर पर जौंक से खून चुसवाने से मदद मिलती है। साबुन के इस्तेमाल से बचें क्योंकि इससे त्वचा के बाहर की बचाव करने वाली तैलीय परत हट जाती है। इसकी जगह नहाने के लिए बेसन को तेल में मिलाकर इस्तेमाल करें। शीकाकाई व रीठा के भी ज़्यादा इस्तेमाल न करे।

त्वचा की ज़्यादातर बीमारियों के लिए दवा के साथ ली जा सकने वाली एक फायदेमन्द चीज़ें हैं आरोग्यवर्द्धिनी इसकी ५०० मिलीग्राम की गोली दिन में दो बार और मंजिष्ठा पाऊडर डेढ़ से तीन ग्राम दिन में तीन बार। ये दोनो तीन महीनों तक दी जानी चाहिए। मंजिष्ठा से पेशाब का रंग लाल हो जाता है। इसलिए अगर यह दिया जा रहा है तो रोगी को इसके बारे में ज़रूर बता दिया जाना चाहिऐ।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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