रीढ से मेरु-द्रव निकालना |
अन्दरुनी मस्तिष्क आवरण के बीच द्रव बह रहा होता है। यही द्रव मस्तिष्क में छोटी-छोटी गुफाओं (वैन्ट्रिकल) और मेरुदण्ड में और उसके आसपास भी बह रहा होता है। इसे प्रमस्तिष्क मेरु-द्रव कहते हैं। इस द्रव से कोशिकाओं का पोषण होता है और ज़रूरी तत्वों की आवाजाही होती है। कई बीमारियों में कटिकशेरु का पंक्चर सुई द्वारा इस द्रव को निदान के लिए निकाला जाता है।
मेरुदण्ड रीढ़ की हड्डी के भीतर सुरक्षित रहता है। रीढ़ की हड्डी में बायें और दायें दोनों ओर खुला छिद्र होते हैं जिनसे तंत्रिकाओं को मेरूदण्ड तक का रास्ता मिलता है। तंत्रीकाएं फिर शरीर में जैसे जैसे फैलती है वैसे वैसे शाखित होती जाती है। रीढ़ की हड्डी में मेरुदण्ड या मेरुरज्जू होता है। इसीसे सारी तंत्रिकाऍ जुडी रहती है। तंत्रिकाऍ अंदर से बाहर और बाहर से अन्दर आती है।यह उस अधिक यातायात वाले दोतर्फा मुख्य मार्ग की तरह होता है। इस मुख्य मार्ग के आसपास के गाँवों को भी इसी मुख्य मार्ग का इस्तेमाल करना होता है। इसके लिए इनके पास मुख्य मार्ग से जोड़ने वाली सड़कें होती हैं – जैसे कि मेरुदण्ड की जड़ें। सड़क पर चल रहे वाहनों जैसे हर सेकण्ड खूब सारे संकेत मेरुदण्ड के नीचे-ऊपर जाते हैं। यह तंत्र हमारे आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक टेलीफोन एक्सचेंज से ज्यादा सक्षम है। संकेतों की प्रकृति इलेक्ट्रॉनिक ही है और हम इस इलेक्ट्रॉनिक यातायात की गति भी नाप सकते हैं।
शरीर में तंत्रिकाओं में तन्तु का एक जटिल जाल होता है जिसकी तुलना आपके घरों या गाँवों की बिजली की तारों से की जा सकती है। एक मेन स्विचों का बोर्ड सभी तारों और बिजली को नियंत्रित करता है। तंत्रिका तंत्र जिस तरह का संकेत आगे भेजता है उसके अनुसार उन्हें दो वर्गों में बाँटा गया है – प्रेरक और संवेदी तंत्रिका तन्तु। संवेदी तंत्रिका तन्तु दिमाग की तरफ संकेत पहुँचाती हैं। प्रेरक तंत्रिका तन्तु दिमाग से और अंगों तक सूचनाएँ पहुँचाती हैं।
तंत्रिकाएँ असल में तंत्रिकाओं के तन्तुओं के बण्डल होते हैं। एक तंत्रिका में प्रेरक या संवेदी या दोनों तरह के तन्तु हो सकते हैं। आप कोहनी के पीछे से जा रही तंत्रिका को धीरे से ठोककर तंत्रिका और इसके काम करने के तरीके को महसूस कर सकते हैं। आपको हल्का-सा आघात महसूस होगा। इससे आपको यह भी पता चलेगा कि तंत्रिका हाथ से कहाँ से जुड़ी है।
स्वायत्त तंत्रिका तंत्र असल में अन्तरांग तंत्रिका जाल है। यह जाल हमारे शरीर के सभी आन्तरिक क्रियाओं के लिये लगातार काम करता है और हमें इसका अहसास भी नहीं होता। यह आंतरिक संवेदनाऍ का अहसास भूख,प्यास,मितली,मूत्र और मल विर्सजन आदी का एहसास होता है। यह तंत्र मस्तिष्क के केंद्रों से जुडा होता है। इसी तंत्र से शरीर के भीतरी अंग जैसे ऑंतों, अदल और फेंफड़ों आदी का काम करना नियंत्रित होता है।
इसमें भी दो अंग होते है –
इसमें एक सिंपथॅटिक विभाग होता है, जिसका सारा काम उत्तेजना के साथ जुडा है जैसे की दौड-भाग, लडाई-झगडा, यौन क्रिया, कसरत, डर आदि । इसके चलते शरीर में खून के बहाव की मात्रा कई गुना बढ जाती है, दिल की धडकन और नाडी तेजी से चलती है, रक्तचाप बढ जाता है, शरीर का तापमान कुछ बढ सा जाता है, रासायनिक क्रिया तेज होती है और ज्यादा उर्जा इस्तेमाल होती है। इसी के साथ पसीना छुटता है जो की शरीर का तापमान उतारने का प्रयास होता है। मुँह में लार का सूख जाना, रोंगटे खडे होना आदि इसी के लक्षण है। कभी कभी आंतो में और मूत्राशय में उत्तेजना बढती है और उत्सर्जन की भावना होती है। आँख की पुतलियॉं फैलकर ज्यादा रोशनी प्रवेशित करती है और उत्तेजन क्रिया में यह उपयुक्त है। ऍड्रेनलीन दवा इसी विभाग से जुडी है, अलबत्ता कई अवसाद की घटनाओं में ऍड्रेनलीन देकर शरीर को सवारनेका प्रयास किया जाता है।
इसका दुसरा विभाग पॅरासिंपथॅटिक याने विश्राम अवस्था से जुडा है। इसके चलते नाडी और दिल धीरे से चलते है, रक्तचाप गिरता है, नींद आती है। भरपेट खाना होकर जब हम सुप्तावस्था में जाते है तब यह विभाग ज्यादा काम करता दिखाई देता है। इस विभाग का काम ऍट्रॉपीन दवा से जुडा है। इसके चलते मुँह से ज्यादा लार आती है और पेट में ऐंठन भी हो सकती है।
परन्तु दोनों ओर के मस्तिष्क में कुछ महत्वपूर्ण अन्तर हैं। बाँयी मस्तिष्क आम तौर पर ज्यादा प्रबल होती है और इसी से बोलने, बौध्दिक कार्यों और गणितीय कामों का नियंत्रण होता है। दायीं मस्तिष्क (आमतौर पर अप्रभावी) होती है और यह भावनाओं और कलात्मक पहलुओं को सम्भालती है। लोगों में बायीं ओर के अग्र मस्तिष्क से बोलने की क्षमता नियंत्रित होती है। सुनने के लिए पार्श्विका खण्ड (कानों के ठीक ऊपर) हैं तो देखने के लिए पश्चकपाल खण्ड मस्तिष्क के पीछे की तरफ होते हैं।
शरीर के कुछ हिस्सों को मस्तिष्क में ज्यादा भाग मिला होता है। जैसे कि हाथों और पैरों को मस्तिष्क में काफी ज्यादा हिस्सा मिला होता है तो पीठ को काफी कम। यह सब एक भाग की तुलना में दूसरे की संवेदनशीलता और काम करने की बारीकी पर निर्भर करता है। जैसे कि हाथ लिखने के लिए पैरों के मुकाबले बेहतर काम कर रहे होते हैं।