श्वसन तंत्र वाले अध्याय में आपको तपेदिक के बारे में और जानकारी मिलेगी। इसका भी जल्दी निदान किया जाना, चिकित्सीय मदद हासिल करना और बाद में देखभाल महत्वपूर्ण है।
ध्यान रहे कि बच्चों में तपेदिक होना भी उतना हीे आम है जितना कि बड़ों में। सतर्क रहें और ऐसे कोई भी लक्षण दिखने पर बच्चे को स्वास्थ्य केन्द्र ले जाएं।
खसरा हवा में मौजूद वायरस से बचपन में होने वाला संक्रमण है। प्रमुख रूप से इससे श्वसन तंत्र पर असर पड़ता है पर त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली पर भी चकत्ते उभर आते हैं। खसरे में आम जुकाम, खॉंसी, बुखार और साथ में चकत्ते होते हैं। स्वस्थ बच्चे खसरे से बिना किसी जटिलता के उबर जाते हैं। परन्तु कुपोषित बच्चों या फिर उन बच्चों में जिनकी प्रतिरक्षा क्षमता कमज़ोर है, खसरे से कई जरह की जटिलताएं होने की संभावना रहती है। कमज़ोर बच्चे खसरे से बीमार हो जाते हैं और कभी कभी मौत के शिकार भी। इसलिए टीका लगवाया जाना बहुत ही महत्वपूर्ण है।
खसरा आमतौर पर महारोग की तरह हर 2 या 3 साल बाद होता है। परन्तु इसके अलावा बीच में भी खसरे के मामले देखने को मिल जाते हैं। आमतौर पर सर्दियों के अंत में और गर्मियॉं शुरु होने के बीच खसरा होने की संभावना ज़्यादा होती है। खसरे के टीके से इसकी बीमारी अब काफी कम दिखाई देती है|
संक्रमण फेफड़ों और खून तक पहुँच जाता है। श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग में हल्का संक्रमण होता है। यह वो समय होता है जब चकत्ते अभी उभरे नहीं होते, परन्तु इस समय में संक्रमण एक बच्चे से दूसरे में पहुँच सकता है।
वायरस के शरीर में पहुँचने के करीब 8 से 10 दिनों के बाद ही चकत्ते उभरते हैं। चकत्ते खून की सूक्ष्म नलियों के आसपास में शोथ के कारण होते हैं। ये सारे असर कुपोषित बच्चों में ज़्यादा गंभीर होते हैं। कुछ बच्चों में मस्तिष्क शोथ हो जाने का खतरा भी होता है। चिकित्सीय रूप में खसरे का सबसे महत्वपूर्ण लक्षण है चकत्ते होना। परन्तु गालों के अंदर सरसों जैसे सफेद चिन्ह भी खसरा होने का विश्वसनीय सूचक हैं। इन्हें कोपलिक धब्बे कहते हैं। यह खसरे का एक खास लक्षण है। कोपलिक धब्बे 1 से 2 दिनों तक रहते हैं। आप मुँह के अंदर इनकी जांच कर सकते हैं।
बुखार 3 से 4 दिनों तक चलता है। बच्चे की नाक बहती है और आँखों में से पानी आता रहता है। उसके बाद कान के पीछे, चेहरे पर और फिर गर्दन, पेट, हाथ पैर पर चकत्ते उभरने लगते हैं। खसरे के चकत्ते लाल रंग के होते हैं। चकत्ते एक दूसरे में मिल जाते हैं। इसके विपरीत छोटी माता में होने वाले चकत्तों में पीप और द्रव होता है। कभी कभी बीमारी चकत्ते होने के बाद ठीक हो जाती है। चकत्ते 3 – 4 दिनों तक रहते हैं और उसके बाद गायब हो जाते हैं और उनकी जगह पीले काले निशान रह जाते हैं। इन जगहों पर से त्वचा निकल जाती हैं और कुछ दिनों तक निशान बने रहते हैं।
भूख न लगना खसरे का एक आम लक्षण है। भूख न लगने से कुपोषण हो जाने का खतरा हो जाता है। कभी कभी हमें लसिका ग्रंथियों में सूजन (गिल्टियॉं) दिखाई देती है। ठीक उसी तरह से जैसे कि कई और वायरस से होने वाली बीमारियों में होती है। अगर खसरे से कोई जटिलता न हो तो यह करीब एक हफ्ते में ठीक हो जाता है।
खसरे से निमोनिया, कान का संक्रमण, तपेदिक, मस्तिष्क शोथ और कभी कभी दिल का शोथ हो जाने की संभावना होती है। कुपोषित बच्चों में खसरे से होने वाली जटिलताओं की संभावना ज़्यादा होती है। दूसरी ओर कुपोषण अपने आप में बहुत ही आम समस्या है और इससे भी बच्चे को खसरा होने का खतरा होता है। खसरे से होने वाली मौतें असल में खसरे से हुए निमोनिया से होती हैं।
खसरे के वायरस से बचाव का कोई रास्ता नहीं है। पैरासिटेमॉल से बुखार कम किया जा सकता है। खसरे के कारण हो जाने वाला निमोनिया काफी खतरनाक होता है। जल्दी से जल्दी ऍमोक्सीसीलीन से इलाज शुरु कर दें। अन्य संक्रमणों से बचाव के लिए विटामिन ए भी दें। कुपोषण से बचाव के लिए आहार देते रहना ज़रूरी है। खसरे से बचाव का सबसे सही तरीका है बच्चे को खसरे को टीका लगवाना। संक्रमण से बचाव के लिए बच्चे को भीड़ वाली जगहों में ले जाने से बचें।