हिचकियॉं तब आती हैं जब मध्यपट (मॉसपेशिय संरचना जो वक्षस्थल और उदर गुहिकाओ को अलग करती है और श्वसन क्रिया में भाग लेती है ) झटके से ऊपर नीचे होता है। ग्रासनली में निचले हिस्से में मिर्च या शराब के कारण जलन होना हिचकी का सामान्य कारण हो सकताहै। कभी-कभी हिचकियॉं यूरिमिया के कारण भी होती हैं। यह खतरनाक अवस्था गुर्दे खराब हो जाने के कारण उत्पन्न होती हैं।
जलन के कारण आने वाली हिचकियॉं थोडा खाने या थोड़ा स पानी या दूध पीने से ठीक हो जाता है। इसके साथ लम्बी लम्बी सॉंस लेते रहें। गुड़ चबाना भी हिचकियों को रोकने का एक अच्छा उपाय है। एक चम्मच शक्कर के साथ चार तुलसी के पत्ते खाने से भी हिचकी में आराम मिलता है। एंटाएसिड की गोलियॉं लेने से भी फायदा होता है। इसमें जलन करने वाले पदार्थों का ि निष्क्रिय हो जाता है। अगर इलाज के दो घण्टों बाद भी हिचकियॉं न रूकें तो रोगी को डॉक्टर के पास ले जाना ज़रूरी हैं।
कब्ज़ एक आम शिकायत है। शौच जाने की आदत हर व्यक्ति की अलग अलग होती है पर हर रोज एक बार मलत्याग हो जाए सामान्य है। सुबह सिगरेट, तंबाकू,चाय पीये बगैर टट्टी न कर पाना एक गंदी आदत है। पूरी तरह खाली न होना और या बार-बार मल त्याग करने की ज़रूरत महसूस होना , या पतली टट्टी आना अस्वस्थ्यता के संकेत हैं। अगर किसी व्यक्ति दो दिनों तक टट्टी न हो तो उसे कब्ज़ कह सकते है। कुछ लोगों में यह समस्या रहती है कि उनके पेट आदतन ठीक से साफ नहीं होते ।
कब्ज दो प्रकार के होते है 1) आशिंक कब्ज – कभी-कभी होने वाला कब्ज़ 2) स्थायी कब्ज- लगातार रहने वाले कब्ज़ ।। आहार और नींद में बदलाव इसका कारण हो सकता है। आदतन कब्ज़ भी काफी आम है। पर इसे भी नजरअन्दाज नहीं करना चाहिए। कभी-कभी यह किसी गम्भीर बीमारी जैसे बड़ी आँत के कैन्सर के लक्षण हो सकता है। बड़े बूढ़ों में इस सम्भावना के बारे में हमेशा ध्यान देना चाहिए।
अमीबा की चिरकारी छूत और कीड़े भी अक्सर कब्ज़ का कारण होते हैं। मल का मुख्य हिस्सा होता है मोटा खाना, जिसमें सब्जियों के रेशें भी शामिल हैं। आहार में रेशों की कमी कब्ज़ का एक सबसे आम कारण है। हरी सब्जियॉं मोटा अनाज, सब्जियॉं और फल आदि आहार में ज़रूरी रेशे उपलब्ध करवाते हैं। बिना चोकर के आटे से पूरे गेहूँ का आटा बेहतर होता है, रेशे और विटामिन दोनो होने के कारण।
कब्ज़ का इलाज करे, लेकिन इसका कारण भी खोजे।
कब्ज़ के इलाज के लिए कई विरेचक उपलब्ध हैं। इसफगोल, अरण्ड का तेल, मिल्क ऑफ मैगनीशिया कब्ज़ कम करने की आम दवाइयॉं हैं। विरेचकों के लिए साथ दी गई तालिका देखें।
मलद्वार से किसी भी चिकनाई युक्त तरल पदार्थ को गुदाशय और बडी आँत के अन्दर धीरे धहरे डालने की प्रक्रिया को एनीमा कहते हैं। वयस्कों में आधा लीटर साबुन का पानी सख्त हो गए मल को मुलायम करने के लिए काफी है। बच्चों में हम सुईरहित चिपकारी की सहायता से खाद्य तेल डाल सकते है। ग्लीसरीन या वेजलीन की बत्ती की वर्ति पाखाना करवाने के लिए मलद्वार में रखने के लिये उपयुक्त है। यह बच्चों और वयस्कों दोनों के लिए अलगअलग आकार में मिलती है।
2 से 5 मिलीलीटर तेल को पिचकारी (इंजेक्शन) की सहायता से मलद्वार में डालने से सख्त पाखाना आसानी से बाहर आ जाता है। थोड़ी से प्रशिक्षण के बाद से रोगी यह स्वंम भी कर सकते हैं। तेल पाखाने को मुलायम बनाने में करीब दो से तीन घण्टे का समय लेता है।
अगर किसी व्यक्ति का पाखाना ज़्यादा ही सख्त हो तब उसे 40 से 50 मिलीलीटर तेल रात को पीना चाहिए। एक गिलास गर्म पानी या एक कप चाय उसके बाद पी लेने से मुँह का स्वाद ठीक हो जाता है। औषधीय विरेचकों में त्रिफला (आमला, बहेड़ा और हरदा) या अमलतास का गूदा, या अरण्ड का तेल इसफगोल आदि होते हैं। त्रिफला चूरण सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है। एक दो चम्मच त्रिफला चूरण एक गिलास गर्म पानी में डालकर पीने दें। अगर सोने से पहले यह दिया जाए तो सुबह तक इसका फायदा हो जाता है। त्रिफला चूर्ण के बाद १ चम्मच घी या तेल मुँह से लेना चाहिए। क्योंकि ये विरेचक आँतों के लिए थोड़ा सख्त होता है।
लगातार रहने वाले कब्ज़ की शिकायत के इलाज के लिए ज़रूरी है कि खान-पान की आदतें बेहतर हो। भुनी हुई मूँगफली, चना, और इनके बने व्यंजन और तला हुआ भोजन खाने से आमतौर पर कब्ज़ हो जाता है क्योंकि इनसे मल सूखा बनता है। हरी पत्तेदार सब्जियॉं, हरे चने वाले आहार में रेशा होता है जिससे कब्ज़ ठीक करने में मदद मिली है। एक और सलाह यह होती है कि जल्दी सोएँ और जल्दी उठें। और शौच क्रिया के पश्चात ही अन्य काम करें इस आदत से कब्ज नही होगा।रोजाना की कसरत में पेंट की मॉसपेशियो की कसरत (जैसे नौलीचालन) करने से भी मदद मिलती है।