कोशिका – शरीर की एक सूक्ष्म इकाई जिससे उतक बनते है |
जैसे एक घर ईटों का बना होता है ठीक उसी तरह से हमारा शरीर कोशिकाओं से बना हैं। सूक्ष्म बैक्टीरिया से लेकर सभी जटिल जीवों जैसे मनुष्य या हाथी या बड़े पेड़ों के शरीर की बुनियादी इकाई कोशिकाएँ ही हैं। हर कोशिका के कुछ बुनियादी विशेषताएँ होते हैं। कोशिका के बाहरी झिल्ली में छोटे (सूक्ष्म) छिद्र होते हैं जिनसे पदार्थ अन्दर और बाहर आ जा सकते हैं। कोशिका के अन्दर जैली जैसा पदार्थ (जीवद्रव्य) होता है। इसमें पानी, प्रोटीन और कुछ उर्जा पैदा करने वाली इकाई (सूत्रकणिकाएँ) होती हैं। कोशिका का केन्द्रक, जीवद्रव्य के अन्दर होता है। इस केन्द्रक में गुणसूत्र होते हैं इनमें कोशिका के काम करने के लिए सूचनाओं का जैसे संग्रह होता है।
सरल और जटिल जीवों में अन्तर मुख्यत: कोशिकाओं की संख्या और प्रकार के कारण होता है। जितनी ज़्यादा कोशिकाओं की संख्या होगी जीव और उसके कार्य उतने ही जटिल होंगे। मानव मस्तिष्क में ज़्यादा कोशिकाएँ होती हैं इसलिए इसमें अन्य जीवों के मुकाबले ज़्यादा विशेषताएँ और क्षमताएँ होती हैं। दूसरी ओर एक कोशकीय जीवों में एक ही कोशिका अपना खाना ग्रहण करती हैं, उसे पचाती है, फालतू पदार्थ बाहर फेंकती है, हवा लेती है, अगली पीढ़ी तैयार करती है और कुछ हद तक अपने को सुरक्षित रखने का काम करती है। अमीबा और बैक्टीरिया इसी तरह के एककोशकीय जीवों के उदाहरण हैं। इन जीवों की तुलना लघु उद्योगों की तरह होते हैं जिनमें माल तैयार करने, साफ करने, लेखा जोखा रखने और माल बेचने आदि सभी काम एक ही छत के नीचे होते हैं, जिन्हें आमतौर पर एक ही व्यक्ति सम्भालता है। दूसरी तरफ बहुकोशकीय जीव बड़े जटिल संघीय उद्योगों जैसे होते हैं जिनके तहत कई एक फैक्टरियॉं आती हैं जिनमें हज़ारों लोग काम करते हैं और अलग-अलग लोग अलग काम करते हैं।
एक जैसा काम कर रही कोशिकाओं के समूहों को ऊतक कहा जाता है। जैसे हड्डी ऊतक, पेशिय ऊतक या रेशेदार संयोजी ऊतक आदि। खून भी एक ऊतक है हालॉंकि इसकी कोशिकाएँ वाहिकाओं में प्लाज़मा नामक द्रव में घूमती रहती हैं।
शरीर के भार का करीब ६२ प्रतिशत पानी होता है। इसमें से कुछ (एक तिहाई) कोशिकाओं के अन्दर रहता है और बाकी बाहर। शरीर के उत्सर्ग पदार्थों जैसे पेशाब, पसीने और वाष्प के माध्यम से शरीर का पानी बाहर आ जाता है। इस कमी को पूरा करने के लिए हमें पानी पीना पड़ता है। हमें शरीर की ज़रूरत के हिसाब से ही प्यास लगती है। हम जो पानी पीते हैं वो आँत में पहुँच जाता है। वहॉं से पानी शरीर में घूमता हुआ खून उसे ले लेता है। इसके अलावा शरीर के अन्दर पानी और लवण होते हैं। जीवन की शुरूआत क्योंकि समुद्र से हुई थी इसलिए सभी जीवों के शरीरों में लवण होते हैं। इसलिए जब अन्त: शिरा द्रव दिया जाता है उसमें शरीर के द्रवों के अनुसार पर्याप्त मात्रा में लवण होते हैं।
मानव कोशिका में २२ रंगसुत्र जोडियॉं और २३ लिंगसुत्र का जोडा |
हम और हमारे मॉं बाप (पूर्वजों) में काफी समानताएँ होती हैं। ये समानताएँ या गुण उनसे बहुत ही व्यवस्थित तरीके से हममें पहुँचते हैं। यह गुणसूत्र और जीन के माध्यम से हो पाता है। आनुवंशिकी समझाती है कि कैसे और क्यों गुण एक पीढ़ी से दूसरी तक स्थानान्तरित होते हैं। अनुवंशिकीय पदार्थ असल में गुणसूत्र होते हैं जिनके अन्दर जीन होते हैं। ये जीन, घुमाववाली सीढ़ी जैसे गुणसूत्रों पर मोतियों जैसे बिछी रहती हैं। हर ज़ाति में कुछ निश्चित संख्या में गुणसूत्र होते हैं। जो उसकी हर कोशिका के केन्द्रक में उपस्थित रहते हैं। मनुष्यों में ४६ यानि २३ जोड़ी गुणसूत्र होते हैं। अगर हम केन्द्रक की दीवार को फाड़ें तो हमें गुणसूत्रों के ये जोड़े दिखाई दे जाते हैं। सभी गुणसूत्र अँग्रेज़ी के एक्स आकार के दिखते हैं, परन्तु इन सभी जोड़ों में फर्क होते हैं। और इन फर्को के कारण ये सभी अलग-अलग तरह के होते हैं।
इन २३ जोड़ी गुणसूत्रों में से २२ जोड़ी दैहिक गुणसूत्र होते हैं और एक जोड़ी लिंग सम्बन्धित गुणसूत्र। औरतों में इस जोड़ी के दोनों गुणसूत्र एक्स प्रकार के होते हैं और पुरुषों में इनमें से एक एक्स होता है और एक वाई। कुछ गुणसूत्रों या जीन में गड़बड़ियॉं हो सकती हैं। इससे उस व्यक्ति में कोई गड़बड़ी या बीमारी हो सकती है। जैसे कि गुणसूत्रों के २१ वे जोड़े की जगह तीन गुणसूत्र होने से डाउन संलक्षण नाम का रोग होता है। इसी तरह एक खून का कैंसर विशिष्ट गुणसूत्र के छोटे होने से होता है। पुरुषों में कानों में बाल होने का सम्बन्ध वाई गुणसूत्र से होता है।
जीन में न्यूक्लिक अम्लों का एक विशिष्ट क्रम होता है। शरीर अन्दर बाहर जो कुछ भी करता है। वो एक तरह से इन्हीं जीनों द्वारा (प्रोग्राम) संचालित किया हुआ होता है। कुछ रोग पूरी तरह से या आंशिक रूप से जीनों में गड़बड़ियों के कारण होते हैं। इन्हें अनुवंशीय गड़बड़ी कहते हैं। ये आमतौर पर आने वाली पीढ़ी में उभरकर आते हैं। रक्त स्राव सम्बन्धित एक गड़बड़ी जिसे हीमोफीलिया कहते हैं, एक्स गुणसूत्र से जुड़ी अनुवंशीय स्थिति है। उच्च रक्तचाप और अन्य कई बीमारियॉं अंशत: जीन के कारण से होती हैं और अंशत: स्थिति के कारण होती है। सभी जन्मजात बीमारियॉं भी जीन सम्बन्धी नहीं होती। जैसे कि खण्डोष्ठ गर्भावस्था के दौरान ली गई दवाओं के कारण होता है, जीन के कारण नहीं। मानव जेनोम योजना, तहत विभिन्न जातियों के जीनों का अध्ययन हो रहा है। इसके द्वारा बीमारी के बारे में बहुत सारे रहस्यों के बारे में पता चल सकेगा। किसी व्यक्ति की जीन संरचना उस समय तय हो जाती है जब निषेचन के दौरान उसका भ्रूण बनता है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि बच्चे का लिंग भी उस समय तय हो जाता है।