मस्तिष्क की तंत्रिकाएँ, जोकि दोनों तरफ 12-12 होती हैं, गले और चेहरे की खास संवेदनाओं के लिए होती हैं। एक मस्तिष्क की तंत्रिका जिसे वेगस कहते हैं, छाती और पेट में नीचे तक जाती है। यह अन्दरुनी अंगों को उत्तेजित करने का काम करती है। बाकी की तंत्रिकाएँ मेरुदण्ड में से निकलती हैं और सिर को छोड़कर सारे शरीर के लिए काम करती है। हालाँकि दोनों ओर 32 तंत्रिका जड़ें
होती हैं, इनमें से कई आपस में जुड़कर बण्डल बना लेती हैं। बाद में ये फिर अलग-अलग होकर अलग-अलग जगहों के काम करती हैं। कारण तंत्रिकाओं पर चोट, संक्रमण और ज़हरीले पदार्थों का असर होता है। कुष्ठ और शराब से होने वाला तंत्रिका शोथ, महत्वपूर्ण कारण है। मोतीझरा बुखार में अनेक तंत्रिका ग्रस्त (पोली न्यूराईटिस) हो जाता है।
लक्षण इस पर निर्भर करते हैं कि कौन-कौन से तन्तु पर असर हुआ है। इसलिए या तो संवेदना खत्म हो जाती है। या फिर पेशियों की शक्ति खत्म हो जाती है या दोनों साथ-साथ होते हैं। बाद में इस्तेमाल न होने के कारण पेशियाँ खराब हो सकती हैं या फिर प्रभावित भाग पर घाव हो सकते हैं। अगर मुद्रा सम्बन्धित तंत्रिका तन्तु प्रभावित हुए हों तो इसके गम्भीर परिणाम हो सकते हैं। ऐसा सिफलिस वाले तंत्रिका शोथ में होता है।
हर तरह ही तंत्रिकाओं की बीमारियों के कुछ खास लक्षण होते हैं। कुष्ठ और मोतीझरा के कारण होने वाले तंत्रिका शोथ में तंत्रिकाओं में दबाने से दर्द (टैंडरनैस) होता है और तंत्रिकाएँ मोटी हो जाती हैं। इन सब बीमारियों के कुछ अलग लक्षण भी होते हैं।
दाल पर प्रतिबन्ध लगाया व्यवहारिक नहीं है। अगर उचित ध्यान रखा जाए तो इसकी ज़रूरत भी नहीं है। गर्म पानी में भिगोकर धोना काफी है। पर कई कारणों से यह आसान तरीका भी ज्यादा इस्तेमाल नहीं होता है। और बहुत से लोग इस बीमारी के शिकार होते हैं।
वात रोग सायटिक तंत्रिकाओं की बीमारी है। यह तंत्रिका श्रोणी से निकलकर कूल्हों से होती हुई सीधी जाँघों और पैरों के पीछे से होती हुई नीचे तलवों तक जाती है। वात रोग में अचानक दर्द की लहर उठती है। यह दर्द कभी असहनीय होता है। इसके लिए दर्द निवारक दवाओं के अलावा ऍलोपथी में कोई और इलाज नहीं है। एॅक्युपंक्चर अक्सर काम करता है। कुछ मामलों में ऑपरेशन ज़रूरी होता है। इसकी ज्यादा जानकारी अस्थि अध्याय में दी गयी है।
आयुर्वेद में हरसिंगार के फूलों का काढ़ा हर रोज़ सुबह और शाम को 2 से 3 हफ्तों तक लेने की ज़रूरत होती है। एक और इलाज में चावल या खिचड़ी में भेल मिलाया जाता है (भेल का चौथाई हिस्सा सरौते से काटा जाता है)। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि खिचड़ी खाने से पहले इसे निकाल दिया जाए। भेल से पेशाब करते समय जलन हो सकती है। खूब सारी धनिए की पत्तियाँ खाने से यह ठीक हो जाती है। सायटिका में शलाभासाना और भुजंगासन से फायदा होता है।
पिछले कुछ सालों में सड़क पर यातायात बहुत बढ़ गया है। इससे सड़क पर दुर्घटनाएँ भी बढ़ गई हैं और इनमें अक्सर सिर में चोट लग जाती है। दो पहिया वाहनों की दुर्घटनाओं में सिर की चोट अक्सर लगती है। खासकर तब जबकि सवार ने हैलमेट न पहना हो। ऐसे व्यक्ति की बाहर से खोपड़ी को देखने से अन्दर की चोट का अन्दाज़ा नहीं लगाया जा सकता। कई बार बाहर की चोट नहीं होती है पर अन्दर की चोट हो सकती है।
सिर की चोट एक काफी धोखे में रखने वाली स्थिति होती है। यह कभी-कभी अन्दर ही अन्दर कुछ हो जाने से गम्भीर रूप ले सकती है। इसलिए सबसे अच्छा यह है कि सिर की चोट लगने पर व्यक्ति को तुरन्त अस्पताल भेजा जाए। यह कहने से पहले कि व्यक्ति खतरे से बाहर है कम से कम 24 घण्टों तक निगरानी में रखना ज़रूरी होता है।
सड़क दुर्घटनाएँ क्योंकि बढ़ती जा रही हैं इसलिए बचाव ही सबसे अच्छा उपाय है। यातायात के नियमों का कड़ाई से पालन करना चाहिए। कई राज्यों में दोपहिया वाहन चलाने वालों और पीछे बैठने वालों के लिए हैलमेल पहनना ज़रूरी है। सिर की चोट के सम्बन्ध में कुछ संकेत यहाँ दिए जा रहे हैं: