स्वास्थ्य सेवाएं
स्वास्थ्य चेतना (उत्तर प्रदेश सरकार के २००६ प्रकाशन से)
‘‘स्वास्थ्य ही धन है’’ यह एक बहुत पुरानी कहावत है, जो आज भी सही है और आगे भी सही रहेगी। इस कहावत के पीछे एक वास्तविक तथ्य यह निहित है कि यदि मनुष्य शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ है तो उसका आचार-विचार एवं सोच, विवेकपूर्ण तथा उसके द्वारा किया गया श्रम हमेशा तकनीकपूर्ण तथा उत्पादक होगा। एक स्वस्थ व्यक्ति हमेशा स्वस्था समाज तथा प्रगतिशील राष्ट्र के निर्माण में सहायक होता है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही, एक कल्याणकारी राज्य होने के नाते, हमारे देश एवं विभिन्न प्रदेशों में सरकार द्वारा जनस्वास्थ्य कार्यक्रम प्रभावी ढंग से चलाए जा रहे है। फलस्वरूप जन्मदर, मृत्युदर, शिशु मृत्युदर एवं कार्यक्रमों से प्रभावी रूप से आच्छादित नहीं हो पाए है। इन अनाच्छादित/असेवित इलाकों में या तो शिक्षा की अत्याधिक कमी है, या जनस्वास्थ्य के प्रति लोगों में जानकारी तथा जागरुकता का अभाव है। कहीं कहीं स्वास्थ्य केंद्रों से इनकी दूरी काफी अधिक है। सस तरह ऐसे तमाम कारण है, जिनकी वजह से सरकारी स्वास्थ्य इकाइयों की पहुँच तथा स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग में अभी भी ढेर सारी कठिनाइयॉं है।
उपरोक्त स्थिती के मद्देनजर भारत सरकार ने वर्ष २००५ से राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन योजना क्रियान्वित की है, जो देश के १८ कमजोर स्वास्थ्य सूचकांकों वाले राज्यों में ग्रामीण जनता को प्रभावी एवं सुलभ स्वास्थ्य सुविधा मुहैय्या कराएगी। सस आधार पर चुने गए १८ राज्यों में उत्तर प्रदेश भी एक राज्य है।
उत्तर प्रदेश में राज्य ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का गठन किया गया है। इस मिशन के तहत महिला स्वयंसेविकाओं का एक समूह तैयार किया गया है, जिन्हे मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ‘आशा’ नाम दिया गया है। ‘आशा’ ग्रामीण जनता और स्वास्थ्य सेवाओं के बीच एक कडी का काम करेगी, जिससे सबके लिए स्वास्थ्य एवं जनसंख्या नीति के उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके। ‘आशा’ समुदाय की ऐसी कार्यकर्ती है, जो समुदाय को स्थानीय स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने में सहायता करेगी तथा कुछ छोटी-मोटी बीमारियों के लिए उपचार भी प्रदान करेगी। एक ‘आशा’ औसतन १,००० की ग्रामीण आबादी में कार्य कर रही है। इन ‘आशाओं’ का चयन उसी समुदाय से किया गया है, जिसके लिए इन्हें काम करना है। ये महिला कार्यकर्ती स्वेच्छा से कार्य करती है। ‘आशा’ को अपने काम में समुचित ज्ञान एवं कुशलता पदान करने के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाए गये है, जिसमें ‘आशा’ को १२ महिनों के भीतर पॉंच दौर में, कुल २३ दिनों का प्रशिक्षण दिया जाता है। साथ ही हर दूसरे महीने २ दिवसीय पुनर्प्रशिक्षण की भी व्यवस्था रखी गई है।
संक्षेप में, हम यह कह सकते है कि इस मिशन के अंतर्गत जो नीति निर्धारित की गई है उसका सामान्य उद्देश्य प्रत्येक गॉंव में १००० की आबादी पर एक ‘आशा’ का चयन कर उसे प्रशिक्षित करना है। इस प्रकार जन समुदाय को सरकार द्वारा दी जानेवाली समस्त स्वास्थ्य सुविधाओं को उपलब्ध कराने तथा इस प्रकार जागरुक बनाने हेतु स्वास्थ्य सेवा केंद्रों/कार्यकर्तियों/आँगनबाडी केंद्रों/गैर सरकारी संघटनों के बीच एक संपर्क कार्यकर्ता (लिंक वर्कर) उपलब्ध हो जाएगा। इससे स्वास्थ्य के समस्त कार्यक्रमों में सामूहिक भागीदारी को बढावा मिलेगा तथा जनता के बीच स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकेगी।
आशा का चयन
उत्तर प्रदेश राज्य ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की कार्यप्रणाली के अंतर्गत यह व्यवस्था है कि राज्य स्तर के साथ साथ जिला स्तर पर भी ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की स्थापना की जाएगी। जिला स्तरीय स्वास्थ्य मिशन के अंतर्गत एक जिला स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण सोसाइटी गठित होगी, जो ‘आशा’ के चयन की पूर्ण प्रक्रिया हेतु उत्तरदायी होगी। ‘आशा’ के चयन हेतु वांछित अर्हताएँ निम्नवत है।
- वह महिला संबंधित गांव की स्थायी निवासी हो।
- प्राथमिकता के तौर पर विवाहित/विधवा/तलाकशुदा महिला, जिसकी आयु २५ से ४० वर्ष हो, चुनी जाएगी।
- वहह महिला कम से कम कक्षा ८ उत्तीर्ण होनी चाहिए। हाईस्कूल पास को वरीयता दी जाएगी।
- आबादी के पिछडे समूहों के प्रत्याशियों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा।
- अल्पसंख्यक/अनुसूचित जाति/जनजाति के प्रत्याशियों को वरीयता दी जाएगी।