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चित्र तकनीकी

शरीर के अन्दरुनी अंगो का चित्र-छवि बनाने वाले नये-पुराने तकनीकि चिकित्सा शास्त्र में भारी महत्वपूर्ण है। एक्स-रे, अल्ट्रा साऊँड, सीटिस्केंन आदि शब्द आपने सुने होंगे। यहॉं हम इनके बारे में संक्षिप्त जानकारी लेंगे।

एक्स-रे
neck x ray

गर्दन का एक्स-रे फोटो

x-ray examination facilities

ऑपरेशन थिएटर में एक्स रे जॉंच की सुविधा

एक्स-रे अदृश्य किरणें होती हैं और उन्हे शरीर भेदन क्षमता होती है। वो कपड़े, त्वचा और मुलायम ऊतकों को भेद लेती हैं। परन्तु वो हडि्डयों और किसी ठोस चीज़ को नहीं भेद सकतीं। इससे इन ठोस चीज़ों की छाया फोटो प्लेट पर बन जाती है। इससे एक्स रे पिक्चर बन जाती है। क्योंकि अलग अलग ऊतकों की अपारदर्शिता अलग अलग होती है, एक्स रे प्लेट में ऊतकों की अलग-अलग छाया-छवि बन जाती है। एक्स-रे निदान खास कर हडि्डयों की समस्याओं के इलाज में काफी महत्वपूर्ण है। ये छाती और पेट, दॉंतों और हडि्डयों की बीमारियों के निदान में काफी उपयोगी होती है।
शरीर के अंगों द्वारा ग्रहण किए गए रेडियों-अपारदर्शी चीज़ों की जॉंच के लिए एक और तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। खास अंगों के एक्स रे पिक्चर ली जाती है। इससे उन अंगों के फैलाव और कभी-कभी काम करने की क्षमता का पता चल जाता है। इस तकनीक को रेडियोन्यूक्लाइड स्कैन कहते हैं। और यह गुर्दे के काम, अल्सर, मूलतंत्र और बड़ी आँत के बारे में जानकारी मिल जाती है।
अगर शरीर में धातु की कोई चीज़ गलती से पहुँच गई हो तो उसका भी एक्स-रे से पता चल जाता है। इसलिए अगर कोई बच्चा गलती से कोई कील या नट निगल ले या शरीर के अन्दर गोली लग जाने पर इनका पता एक्से-रे से लग जाता है।
इन सब उपयोगों के कारण एक्स-रे का इस्तेमाल काफी होता है। परन्तु दुर्भाग्य से इन्हीं कारणों से बहुत से चिकित्सक इस तकनीक का गलत इस्तेमाल करने लगे हैं। एक्स-रे को रेडियोधर्मिता होती है। इसलिए इनसे कैंसर और कोशिकाओं में आनुवंशिक बदलाव आ सकते हैं। हर बार एक्स रे किए जाने पर कुछ न कुछ बदलाव ज़रूर आ जाते हैं। कुछ बदलावों को शरीर अपने आप ठीक कर लेता है पर कुछ को नहीं। पुराने समय में एक्स रे पर काम कर रहे शोथकर्ताओं को ऐसे घाव हो गए जो ठीक नहीं हो सकते थे। कई बार उन्हें त्वचा का कैंसर भी हो गया। एक्स रे से गर्भाशय में स्थित शिशु को भी नुकसान पहुँच सकता है।

एक्स रे सुरक्षित इस्तेमाल के लिए कुछ सुझाव ये हैं|
  • मरीज को इस बात पर ज़ोर नहीं देना चाहिए कि उसका एक्स-रे करवाया जाए। इस बारे में केवल डॉक्टर को ही फैसला करना चाहिए।
  • बच्चों में एक्स-रे द्वारा जॉंच से कम से कम करनी चाहिए। बच्चों को एक्स रे से ज़्यादा नुकसान हो सकता है। अगर किसी बच्चे का एक्स-रे लिया जाना बहुत ज़रूरी हो तो उसके वृषण या डिम्बवाही ग्रन्थियों को इन विकिरणों से बचाना चाहिए।
  • एक्स-रे द्वारा जॉंच केवल तभी सुरक्षित होती है जब वो किसी अच्छे व्यावसायिक केन्द्र में करवायी जाए। ऐसे केन्द्र में जहा विकिरणें कम से कम देर के लिए शरीर में प्रवेश करें। अगर केन्द्र में उपकरण ठीक न हो या फिर एक्स-रे से जॉंच करने वाला स्टाफ प्रशिक्षित न हो तो ज़रूरत से ज़्यादा देर के लिए किरणें शरीर में रह सकती हैं। लैड की प्लेटों से अन्य अंगों को बचाना भी ज़रूरी होता है|
  • एक्स रे की यूनिट अच्छी ईटों की दीवारों में होनी चाहिए ताकि एक्स रे की विकिरणें दीवारों से बाहर न चली जाएँ।
  • गर्भावस्था में एक्स-रे लेने से बचें।
  • एक्स-रे स्क्रीनिंग में एक्स-रे प्लेट का इस्तेमाल नहीं होता। इससे एक स्थाई कॉपी भविष्य में उपलब्ध नहीं होती। एक फ्लोरोसेंट स्क्रीन पर पिक्चर देखी जाती है। ये शरीर के अन्दर की गतिशीलता की छवि लेने (जैसे दिल या फेफड़ों की गतिशीलता) के लिए या आपरेशन के दौरान महत्वपूर्ण होता है। परन्तु स्क्रीनिंग के दौरान किरणें भी सोच समझ कर और किसी डॉक्टर या शल्य चिकित्सक के द्वारा ही की जानी चाहिए। स्क्रीनिंग के दौरान किरणें शरीर में बहुत देर रहती हैं। इसलिए ये तकनीक स्थाई एक्स-रे से ज़्यादा नुकसानदेह है।
अल्ट्रासाऊण्ड, या अल्ट्रासोनोग्राफी (यूएसजी)
ultrasound machine
सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउंड मशिन

निदान के आधुनिक तरीकों में अल्ट्रासोनोग्राफी से एक क्रांति सी आ गई है। इसमें ध्वनि की तरंगों का इस्तेमाल होता है जो बिलकुल भी नुकसानदेह नहीं होतीं। इस तकनीक में खास तरह से पैदा की गई ध्वनि की तरंगें किसी अंग पर फैंकी जाती हैं। उस अंग से आने वाले ‘प्रतिध्वनि’ को किसी फ्लोरोसैंट मोनीटर (जैसे टैलीवीज़न का पर्दा) पर देखा जाता है। यह तकनीक मुलायम अंगों की जॉंच के लिए उपयोगी है जिनके बारे में सामान्य एक्स-रे से जानकारी नहीं मिल पाती। इस तकनीक से ऊतकों को कोई नुकसान नहीं होता। कई एक स्थितियों में सिर्फ यूएसजी टैस्ट ही काम आते हैं।
यूएसजी टैस्ट गर्भावस्था में गर्भाशय ही जॉंच और पेट की जॉंच के लिए काफी उपयोगी होती है। इससे हमें लीवर के फोड़े, रेशेदार रसौली, पेट में पथरी, मूत्रमार्ग में पथरी, गुर्दे की सूजन और पेट के कैंसर आदि की जानकारी भी मिलती है। इससे हमें गर्भस्थ शिशु के अंगों, नाड़ और शिशु की गतिशीलता की जानकारी भी मिलती है। इसलिए प्रसव पूर्व जॉंच के लिए ये काफी उपयोगी तकनीक है। उन गड़बड़ियों में जिनमें अन्य तकनीकों से जानकारी नहीं मिल पाती है यूएसजी एक बहुत ही महत्वपूर्ण तकनीक साबित होती है।
परन्तु दुर्भाग्य से बहुत से डॉक्टर बच्चे का प्रसव पूर्व लिंग पता लगाने के लिए इस तकनीक गलत इस्तेमाल करते हैं। इस तरह लड़की वाला भ्रूर्ण को अक्सर कार दिया जाता है। ये एक सामाजिक समस्या है इससे हमें लोक शिक्षण और सख्ती से निपटना चाहिए। वैसे भी ये प्रसव पूर्व लिंग पता करने का बहुत भरोसेमन्द तरीका नहीं है। प्रसवपूर्व लिंग-जॉंचना कानूनना अपराध है और इसका प्रयोग करनेवाले डॉक्टर, परिवारजन आदि दंडित हो सकते है।

सीटी स्कैन
ct scan
सोनोग्राफी या अल्ट्रासाउंड मशिन

यह भी एक एक्स-रे तकनीक है। सीटी स्कैन शरीर के अन्दर की संरचना हर ओर से इंच बाई इंच पढ़ी जा सकती है। मस्तिष्क में कहीं कोई धमनी में से खून निकल रहा हो या मस्तिष्क में कहीं कोई छोटी सी रसौली बन रही हो तो सीटी स्कैन से आसानी से इनका पता चल जाता है। सीटी स्कैन से मस्तिष्क ओर मेरुदण्ड की बीमारियों के निदान में काफी सुधार हुआ है। इससे रसौली या रक्तस्त्राव की जगह का ठीक ठीक पता लगाया जा सकता है। इसमें भी एक्स-रे का ही इस्तेमाल होता है।

मैगनेटिक रैसोनैन्स इमेजिंग (एम आर आई)
joint mri
जोडों का एम.आर.आय.

ये भी सीटी स्कैन की तरह ही एक अत्यन्त विकसित तकनीक है। इसका इस्तेमाल भी मस्तिष्क और मेरुदण्ड की बीमारियों की जॉंच के लिए किया जाता है। इसमें एक्स-रे का इस्तेमाल नहीं होता। इसलिए ये सीटी स्कैन के हिसाब से सुरक्षित तकनीक है। परन्तु ये तकनीक ज्यादा महॅंगी होती है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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