नेत्रगोल में जो द्रव होता है, उसका एक अंदरुनी दबाव होता, जैसे रक्तचाप होता है। यह सामान्य होना चाहिये। नेत्रगोल पर अंदरुनी दवाब बढ़ जानेसे ग्लॉकोमा (सबजमोतिया) रोग होता है। इससे आँख के आकार पर भी असर पड़ सकता है। अगर इसका समय से इलाज न हो तो इससे अन्धत्व भी हो सकता है। इससे दृष्टिक्षेत्र धीरे-धीरे सिमट जाता है। इसके मुख्य लक्षण हैं- आँखों में भंयकर दर्द होना, आँखों का लाल होना, सिर में दर्द और देखने के क्षेत्र में कमी। कभी-कभी साथ में उल्टियॉं भी आती हैं। ऐसी शिकायतों में आँखों का दवाब कम करने की ज़रूरत होती है। यह अक्सर एक ही आँख में हो सकता है।
कुछ लोगों में ग्लॉकोमा के लक्षण न होने पर भी आँखों का तनाव बढ़ा हुआ हो सकता है। और इससे तो आँखों की रोशनी हमेशा के लिए जा सकती हैं। उँगलियों से नेत्रगोल के तनाव की जॉंच करने के लिए अनुभव की ज़रूरत होती है। आँखों के विशेषज्ञ एक इसके लिए टोनोमीटर का इस्तेमाल करते हैं। इस टोनोमीटर को कॉर्निया के ऊपर रखा जाता है। और साथ लगे एक स्केल पर सूई घूमती है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता के लिए केवल इतना ज़रूरी है कि वे ग्लॉकोमा होने की सम्भावना पकड़ पाएँ और ऐसे मामलों में रोगी को विशेषज्ञ के पास भेज दें। अनुभवी स्वास्थ्य कार्यकर्ता अपनी उँगलियों से भी तनाव समझ सकते है। ग्लॉकोमा रोधी दवाइयॉं उपलब्ध है, जैसे मुँह से ली जाने वाली ऐसीटाज़ोलामाइड और आँखों में टीमोलोल या पीलोर्कापिन द्रव। कुछ मामलों में आपरेशन की भी ज़रूरत होती है।
नेत्र श्लेष्मा का करिनिका पर आरोहण |
टेरीज़ियम याने कॉर्निया के ऊपर नेत्रश्लेष्मा का बढना। आँखो के कॉर्निया के उपर यह बेल की तरह छा जाता है। यह प्रक्रिया बरसों तक चलती है। अन्तत: आँखों की रोशनी को प्रभावित करती है।अगर यह पुतली तक फैल जाए तो इसमें भी आपरेशन की ज़रूरत होती है।
आँखों में कई तरह की चोटें लग सकती हैं। चोट लगने का सबसे आम ज़रिया है किसी बाहरी कण का आँख में घुस जाना, जैसे लोहे का बुरादा, रेत, धूल, लकड़ी का बुरादा या अनाज की भूँसी। गॉंवों में मवेशिया की पूँछ से भी कभीकभी आँख में चोट लगती है। कहीं गिर जाने या झाड़ियों में से गुज़रते हुए कॉंटे या पत्तियों आदि से भी आँख में चोट लग जाती है। मवेशियों के सींगों से काफी बुरी चोटें लग सकती हैं। मोटरसायकलपर बिना चष्मे के घूमना भी चोट को बुलावा देता है।
आँखों में चोटों की कितनी गहराई या गम्भीरता में काफी अंतर हो सकता है। कुछ चोटों से आँख का बड़ा हिस्सा प्रभावित होता है। कुछ चोटे इतनी छोटी होती हैं कि इन्हें आँख को ध्यान से देखने से ही पता चलता है। कुछ चोटों का असर काफी अन्दर तक होता है। सामान्य कायचिकित्सक (सामान्य डॉक्टर) के लिए भी अक्सर यह पता लगा पाना मुश्किल होता है कि चोट कितनी गहरी है। इसके लिये विशेषज्ञ की ज़रूरत होती है।
लोगों को बताया जाना चाहिए कि आँखों की चोटों से बचें। लेथ मशीन चलाने वाले, वैल्डिग का काम करने वाले या मोटरसाइकिल चलाने वाले चोट से बचने के लिए चश्मा पहनना चाहिए। गॉंव में लोगों को खासकर मवेशियों के सींगों से लगने वाली चोटों के प्रति काफी सावधान रहना चाहिए। रोगी को आँखों के विशेषज्ञ के पास भेजने से पहले उसकी आँख में एन्टीसेप्टिक दवाई की बूँदें डाल दी जानी चाहिए और पट्टी बॉंध दी जानी चाहिए।