हाथ के पीछे की तरफ से मरीज के माथा की जॉंच करना इसका सबसे आम तरीका है। हम अपने घरों में भी ज़्यादातर इसी तरह से बुखार नापते हैं। अपने दोनों हाथ इस्तेमाल करके हम यह ज़्यादा अच्छी तरह से कर सकते हैं। एक हाथ से रोगी के तापमान की जॉंच होती है और दूसरे से अपने खुद के तापमान से तुलना।
आमतौर पर घरों में थर्मामीटर होता है। हालॉंकि गॉंव के घरों में ये नहीं होता। यह इस सिद्धान्त पर काम करता है कि गर्मी से पारा फैलता है। बुखार होने से शरीर की गर्मी से थर्मामीटर में पारा चढ़ता है।थर्मामीटर को एक मिनट के लिए बगल, मुँह (या नवजात शिशुओं में गुदा) में रखें। इससे शरीर का तापमान पता चल जाता है। गुदा का तापमान मुँह के तापमान से एक डिग्री ज़्यादा होता है। मुँह का तापमान बगल के तापमान से एक डिग्री ज़्यादा होता है। इसलिए अगर बगल का तापमान १०० डिग्री फॉरेनहाइट है तो मुँह और गुदा के तापमान का मान क्रमश: १०१ डिग्री फॉरेनहाइट और १०२ डिग्री फॉरेनहाइट आएगा।
सेंटीग्रेड | फॅरनहीट |
३५ | ९५ |
३६ | ९६.८ |
३७ | ९८.६ |
३८ | १००.४ |
३९ | १०२.२ |
४० | १०४ |
४१ | १०६ |
सामान्य स्वस्थ वयस्क में नाड़ी की गति करीब ७० प्रति मिनट होती है। एक डिग्री फॉरेनहाइट तापमान की वृद्धि से नाड़ी की गति करीब १० प्रति मिनट बढ़ जाती है। इसलिए अगर बुखार १०० डिग्री हो (यानि सामान्य से २ डिग्री ज़्यादा तो नाड़ी की गति (७० जमा २०) यानि ९० होगी। दिल की यह बढ़ी हुई सक्रियता संक्रमणों से लड़ने के लिए ज़रूरी होती है। इसलिए अगर शरीर का तापमान और ज़्यादा हो तो नाड़ी की गति १०० प्रति मिनट से ज़्यादा भी हो सकती है। ज़ाहिर है कि यह तापमान पर निर्भर करेगा।
परन्तु इस नियम के दो अपवाद होते हैं। मोतीझरा और पीलिया। इन दोनों में नाड़ी की गति उतनी नहीं बढ़ती जितनी अपेक्षित होती है। और यह अपेक्षित वृद्धि से केवल आधी भी हो सकती है। इसे “रिलेटिव ब्रैडी कार्डिया” कहते हैं। एक समय इसे मोतीझरा का लक्षण माना जाता था।
कारण के अनुसार बुखार के सात वर्ग हो सकते है।
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इस जानकारी के साथ हम बुखार का कारण संभवत: ढूंढ सकते है। लेकीन कभी कभी खून की जॉंच जरुरी होती है।