रोग का फैलाने के लिये त्रिकोण आदमी, पर्यावरण और कारक की आपसी प्रतिक्रिया जरूरी है। इसलिये इसे “मरक विज्ञान त्रयी” कहते है।
मरक विज्ञान त्रयी (डीसीस र्टेड) बीमारियों के कारणों के बारे में समझने का एक और तरीका है। ज़्यादातर बीमारियॉं, बीमारियॉं करने वाले कारकों (एजेंटों) परपोषी, (हूयमन होस्ट), और वातावरण के बीच की आपसी प्रतिक्रिया है कारक, पोषद मनुष्य (होस्ट), वातावरण की त्रिकोणी प्रतिक्रिया ही रोग को जन्म देती है। विभिन्न कारकों में जीवाणु कारक जैसे बैक्टीरिया वायरस परजीवी, विषैले रसायन जैसे जहर, एल्कोहल, धॅुआ और प्रतिकूल भौतिक कारक जैसे गर्मी, विकिरण, किसी पोषक तत्व की कमी या अधिकता और विभिन्न तरह की चोटें महत्वपूर्ण कारक हैं। जहॉं तक जीवाणुओं का सवाल है इनकी मात्रा (जीवाणुओं की संख्या) और विषाक्तता (घातकता या रोग पैदा करने की क्षमता या गंभीरता) दोनों महत्वपूर्ण होते हैं। उदाहरण के लिए अगर पानी और खाने में मोतीझरा (टॉयफाइड) के जीवाणुओं की संख्या या विषाक्तता ज़्यादा होगी तो शरीर में टॉयफाइड होने की सम्भावना ज़्यादा बढी होगी। ज़हर, जीवविष या परमाणु विकिरण के मामले में भी मात्रा और बीमारी के बीच सम्बन्ध होता है।
बहुत से व्यक्तिगत कारको से यह तय होता है कि किसी व्यक्ति को वह बीमारी होगी या नहीं। उदाहरण के लिये एक सी परिस्थिति/जगह में रहने वाले लोगो में एक ही अनावरण्के बाद, कुछ लोग जुकाम का शिकार हो सकते हैं और कुछ इससे बचे रहते हैं। बीमारी कितनी गम्भीर हो जाएगी ये भी व्यक्तिगत कारकों पर निर्भर करता है।
ये कारक उम्र, लिंग, प्रजाति, धर्म, रीतिरिवाज, बर्ताव, व्यवसाय, रहन-सहन का स्तर (जिसमें पोषण, आदतें, स्वछता, क्रयशक्ति, शिक्षा, प्रतिरक्षा, अनुवाशिक संरचना आदि शामिल होते हैं । इन कारकों को पोषद कारक (होस्ट फेक्टर) कहते हैं। वातावरण (बिमारी के कारक को छोडकर) में भूगौलिक और मौसम परिस्थिति, सफाई व्यवस्था के हालात, सामाजिक और सांस्कृतिक कारक और उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाऍ शामिल होते हैं। जैसे तापमान, सांद्धता, उचाई, भीड़, घर, पडौसी, पानी, दुध, भोजन, प्रदयुषण और शोर रोग पैदा करने के खतरे के संभावित कारक है। ये तीनों हिस्से मिलकर बीमारी(यों) का या मारक विज्ञान त्रय -त्रिकोण बनाते हैं। आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में बीमारियों से निपटने के लिए इन सभी को शामिल किया जाता है। भारत जैसे देश में ज़्यादातर बीमारियॉं संक्रमण या कुपोषण और असंक्रामक रोग जैसे डायबिटिस, हद्धयघात, मष्तिकआधात, उच्च रक्तचाप और कैंसर के कारण होती हैं। इसलिए स्वास्थ्य के लिए मुख्यत: पोषद कारकों (जैसे पोषण) और पर्यावरण में सुधार लाना ज़रूरी है। हमारी ज़्यादातर स्वास्थ्य समस्याएँ जैसे मलेरिया, तपेदिक, कोढ़ आदि के लिए सिर्फ दवाइयॉं ही नहीं बल्कि कई तरह के कदम उठाने की ज़रूरत है।
बीमारी पैदा करने वाले कारक ज्यादा बाहरी तत्व होते है जो, पोषद और पर्यावरण कारक पर निर्भर करते हैं। हम बीमारी पैदा करने वाले कारकों की सूची बना सकते हैं जैसे कि :
अक्सर आनुवंशिक और बाहरी कारकों मिलकर बिमारी का कारण होते है जैसे मधुमेह (डायबटीज़, उच्च रक्तचाप गठिया आदि)। कैंसर आन्तरिक कोशिकीय बदलावों और बाहरी कैंसर करने वाले कारकों के कारण होता है। परन्तु कुछ बीमारियॉं पूरी तरह से आनुवंशिक होती हैं। जैसे कि सिकल सेल अनीमिया या कुछ रक्तस्राव सम्बन्धी विकार।
कृमि की बिमारियॉ गंदी और गीली हालातो में पनपती है| |
इसमें बीमारी करने वाले एजेंटों के अलावा सभी बाहरी कारक शामिल होते हैं। मौसम में किसी तरह के बदलाव से हम अचानक देखते हैं किसी बीमारी में बढ़ोत्तरी हो जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि वो मौसम किसी खास तरह की बीमारी के होने और फैलाने में मददगार होता है। इसलिए सर्दी के मौसम में दमा, गर्मी और मानूसन के मौसम में दस्त और पेचिश बहुत आम होते हैं।
झौपड़पटि्टयों में संक्रमण रोग होने और फैलने की सम्भावना ज़्यादा होती है। घर के अन्दर के खराब हालात जैसे बहुत सारे लोगों का घर में छोटे से कमरे यानी कम जगह में रहना, रसोई में से निकलने वाला धुँआ, चूहों और कीड़ों की मौजूदगी, अंधेरा और हवा ठीक से न आना आदि से घर पर रहने वाले लोगो स्वास्थ्य पर बुंरा असर करता है। आँतों में कीड़े होना बहुत आम बिमारी है, गंदा मल युक्त पानी पीना इसका मुख्य कारण है। किसान लोग खेती-गीली जमीन और पाखाने की असुविधा में काम करते हैं जिनमें कीड़ों के अण्डे सहज जीवित रह पाते हैं। ऐसा ही कॉच, खदान और रसासन फैक्ट्रीयों में काम कर रहे मजदूरों के साथ होता है। ये मजदूर लगातार नुकसानदेह रसायनों और धुल के बीच रहने के कारण बहुत ही चमडी और फेफडे की बीमारियों और कैंसर से त्रस्त रहते हैं। पर्यावरण को ठीक से सम्भालना भी सामुदायिक स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण पहलू है।