हमें पूरी ज़िन्दगी खाना, पानी और हवा की ज़रूरत होती है। इसके अलावा हमें कुछ फालतू चीज़ों को शरीर से बाहर निकालने की भी ज़रूरत होती है। पाचन और श्वसन तंत्र हमारे जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं क्योंकि ये इन प्रक्रियाओं में लगे होते हैं। यह तंत्र या संस्थान मानो शरीर के बडे बंदरगाह है जहॉं बीजों का आवागमन होता है। श्वसन तंत्र द्वारा शरीर ऑक्सीजन अन्दर लेता है और कार्बन डॉईआक्साइड (और कुछ और गैसें) छोड़ता है। इसी तरह पाचन तंत्र भोजन और पानी को ग्रहण करने, पचाने का काम करता है। हम इन दोनों तंत्रों के माध्यम से दवाई भी ले सकते हैं।
इन तंत्रों में पदार्थों का आदान प्रदान होता है। श्वसन तंत्र के बन्दरगाह हैं फेफड़ों के वायुकोष्ठिका और पाचन तंत्र में आँतों के आँत्रअकुंर। खून की सूक्ष्म वाहिकाएँ कुछ चुने हुए पदार्थों को अवशोषित कर लेती हैं। शेष पदार्थ शरीर बाहर फैंक देता हैं। इन दोनों तंत्रों का हरदम सूक्ष्म रोगाणुओं और प्रदूषणकारी तत्वों से सामना होता है। इस कारण से इनमें बीमारियॉं होने की सम्भावना काफी ज़्यादा होती है। साफ खाना, पानी और ाफ हवा से बहुत सी आँतों और सॉंस की बीमारियों से बचाव हो सकता है।
पाचन तंत्र असल में एक लम्बी लचीली नली होती है जो कि मुँह से मलद्वारा तक जाती है। इसमें गला, ग्रासनली, आमाशय, छोटी और बड़ी आँतें और गुदा शामिल होते हैं। लार ग्रंथियॉं, अग्न्याशय, लीवर और पित्ताशय पाचन द्रव स्रावित करती हैं। खाने को पहले भौतिक रूप से तोड़ा फोड़ा जाता है और फिर पाचन प्रोटीनों की मदद से रासायनिक रूप से। ये पाचक तत्व एन्ज़ाइम कहलाते हैं। आँतों पाचन में पानी की भूमिका पाचन में करीब नौ लीटर पानी इस्तेमाल होता है1 इसमें से कुछ तो खाने में से आता है और बाकि का आँतें और खून की नलियॉं स्रावित करती हैं। छोटी आँत में पाचन के अंत में केवल डेढ़ लीटर पानी बचता है। विभिन्न पेशियों में पोषक तत्व अवशोषित हो जाते हैं। और जिन पदार्थों की ज़रूरत नहीं होती है या जो पचने लायक नहीं होते वो मल के रूप में बाहर निकल जाते हैं।
चबाने के समय खाना पिस जाता है और लार से घुल जाता है। लार में एन्ज़ाइम, श्लेष्मा (जैली) और पानी होती हैं जो गालों, जीभ के नीचे और जबड़े की हड्डी के नीचे स्थित ग्रंथियों द्वारा स्रावित होती है। ये ग्रंथियॉं नलियों के माध्यम से गालों और मुँह के निचले हिस्से में खुलती हैं। लार तुरन्त की कार्बोहाईड्रेट (चावल, रोटी, आलू) पर क्रिया करना शुरू कर देती है।
निगलने का मतलब है खाने के गोलों का ग्रासनली (खाने की नली) में जाना। इस समय नाक का पिछला हिस्सा, और श्वास नली (सॉंस की नली) बन्द हो जाती हैं। आप असल में गले में श्वास नली का ढक्कन यानि कण्ठच्छेद देख सकते हैं। फिर ये खाना ग्रासनली में से होकर गुज़रता है। अमाशय में यह एक दरवाज़े जैसे रास्ते से गुज़रता है। सिर्फ उल्टी आने और ग्रासनली की अन्य बीमारियों के अलावा यह दरवाजा इकतरफा वाल्व के रूप में काम करता है।
आमाशय में खाना १ से २ घण्टों तक रहता है। यह समय खाने के प्रकार पर निर्भर करता है। जैसे कि मॉंस यहॉं ज़्यादा समय रहता है और चावल जल्दी निकल जाता है। आमाशय में खाने पर रासायनिक क्रियाएँ होती हैं। आमाशय खाने पर अम्लों और पेट के एन्ज़ाइमों काम करते है। कुछ एक पदार्थ जैसे एल्कोहॉल (दारू) आमाश्य से सीधे खून में प्रविष्ट होते हें। ऐसा आँशिक रूप से पचा हुआ खाना निचले दरवाज़े से छोटी आँत में चला जाता है।
आमाशय से निकलने के बाद छोटी आँत, लीवर के पाचक पदार्थ (पित्त), और पित्ताशय के पाचक पदार्थ खाने के अव्यवों पर और क्रिया करते हैं। पित्त सबसे ज़्यादा जाना पहचाना पाचक पदार्थ है। यह हरे रंग का होता है और मुँह में यह कड़वा लगता है। पित्त वसा पर क्रिया करता है जबकि आँतों के पाचक पदार्थ प्रोटीन और कार्बोहाईड्रेट पर किया करते हैं।
छोटी आँतों के अस्तर में कई सारे छोटी और बड़ी तहें होती हैं। इनको आँत्रअंकुर कहते हैं। इस कारण आँत में अवशोषण के लिए बहुत बड़ी सतह होती है। आप किसी कटे हुई भेड़ की आँत के अन्दर ये देख सकते हैं। छोटी आँत की लम्बी नली में पाचन पूरा हो जाता है। इसीके साथ सूक्ष्म पोषक तत्व अवशोषित होते हैं और खून में प्रेवश कर जाते हैं।
छोटी आँत में पाचन के बाद खाना बड़ी आँत में जाता है। बड़ी आँत में प्रविष्ट पदार्थों में अघुलनशील और तन्तुई फालतू तत्व होते हैं। बड़ी आँत छोटी आँत से कम लंबी पर ज़्यादा चौड़ी होती है। यहॉं ये पदार्थ मल में बदल जाता है जबकि पानी वापस खून में चला जाता है। इसलिए अगर मल शरीर में से समय पर न निकले तो यह सख्त हो जाता है।
हमारी आँतों में कुछ बैक्टीरिया स्थाई रूप से रहते हैं। इनमें से कुछ हमारे लिए उपयोगी होते हैं क्योंकि ये हमारे लिए विटामिन बनाते हैं (‘के’ और ‘बी कॉपलैक्स’)। जब हम कोई जीवाणु नाशक दवा मुँह से लेते हैं तो इससे उपयोगी और नुकसानदेह दोनों तरह के बैक्टीरिया मर जाते है और अन्य प्रकार के बैक्टीरिया पनपते हैं जिनसे दस्त आदि परेशानियॉं हो जाती हैं। इसलिए प्रतिरोगाणु दवाओं का प्रयोग कम से कम करना चाहिए।
आँतों में से अवशोषित हुए सभी पोषक तत्व लीवर तक पहुँच जाते हैं। लीवर पोषक तत्वों का लेखा जोखा रखता है, शरीर की ज़रूरत से ज़्यादा तत्वों को रख लेता है और शरीर के लिए ज़रूरी तत्वों को परिसंचरण के लिए भेज देता है। अगर आँतों में से कोई जीवविष बन गए हों तो लीवर उनको भी निष्क्रिय कर देता है। इस तरह से यह कई सारे जैवरासायनिक कार्य करता है।
श्वसनतंत्र |
सॉंस लेने की प्रक्रिया सॉंस के मार्गों और फेफड़ों के लाखों कूपिकाएँ में होती है। सॉंस के मार्ग में नाक, गला स्वर यंत्र और सॉंस की नली के अलावा बहुत सी कूपिकाएँ और श्वसनिकाओं के रूप में विभाजित सॉंस के रास्ते शामिल होते हैं। श्वसन के द्वारा शरीर फालतू गैसों से छुटकारा पा लेता है और ताज़ी हवा शरीर में संचरण के लिए पहुँचा देता है।
नाक से लेकर स्वर यंत्र तक के रास्ते को ऊपरी श्वसन तंत्र कहते हैं। यह भाग लगातार बाहरी कीटाणुओं के सम्पर्क में रहता है। इसलिए इसे अकसर उनसे लड़ना पड़ता है। इसलिए जुकाम और खॉंसी की शिकायतें बहुत आम होती हैं। ऊपरी श्वसन तंत्र की छूत आमतौर पर कम गंभीर और अपने आप ठीक हो जाने वाली होती हैं।
श्वसन तंत्र के निचले भाग में श्वास प्रणाल, श्वसनिकाएँ, श्वसनियों आदि आते हैं। श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग की तुलना में यह अन्दरूनी श्वसन तंत्र भाग कम छूतग्रस्त होता है। परन्तु यहॉं होने वाला संक्रमण अक्सर गम्भीर होता हैं। जैसे कि निमोनिया या तपेदिक।
श्वसन तंत्र के निचले भाग में श्वास प्रणाल, श्वसनिकाएँ, श्वसनियों आदि आते हैं। श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग की तुलना में यह अन्दरूनी श्वसन तंत्र भाग कम छूतग्रस्त होता है। परन्तु यहॉं होने वाला संक्रमण अक्सर गम्भीर होता हैं। जैसे कि निमोनिया या तपेदिक।
जब हम हवा अन्दर लेते हैं तो छाती फूलती है और जब बाहर छोड़ते हैं तो ये सिकुड़ती है। श्वसन आमतौर पर एक अनैच्छिक क्रिया होती है। परन्तु कुछ एक परिस्थितियों में इसे कुछ हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। इसलिए गहरी सॉंस भी ली जा सकती है और कुछ समय तक सॉंस रोकी भी जा सकती हैं। सॉंस के द्वारा ही खून में ऑक्सीजन और कार्बनडाईऑक्साइड का स्तर नियंत्रित किया जा सकता है। सॉंस रूकने के बाद कोई व्यक्ति ७ से १० मिनट तक ही जीवित रह सकता है।