आँख धोना |
लोहे का बुरादा, लकड़ी का बुरादा, कीड़े, अनाज की भूँसी, रेत और धूल आमतौर पर आँख में चली जाती है। इससे दर्द, आँखों में लाली और पानी निकलने की शिकायत होती है। अक्सर ये लक्षण नेत्रशोथ जैसे होते हैं। परन्तु बाहर से कोई कण गिरने से साधारणतय एक ही आँख पर असर होता है जबकि नेत्रशोथ से दोनों आँखों पर असर होता है। ज़्यादातर मामलों में रोगी बता पाता है कि उसकी आँख में कुछ पड़ गया है।
अच्छी रोशनी में आँख की जॉंच करें। पलकों के अन्दर, नेत्रश्लेष्मा के सफेद हिस्से और कॉर्निया की जॉंच करें। कॉर्निया में कुछ कण पड़े होने की जॉंच बहुत ही सावधानी से किए जाने की ज़रूरत होती है। और इन्हें निकालते समय भी सावधानी बरतने की ज़रूरत होती है। अगर आपके पास कोई फ्लोरोसीन रंजक है, तो आपको ये कण ढूँढने में आसानी होगी। अच्छा है की कोई विशेषज्ञ या डॉक्टर से इलाज हो।
साफ गीली रूई के फाहे के बार से पड़ा कण निकाला जा सकता है। लिग्नीकेन (जो कि स्थानीय निश्चेतक की तरह से इस्तेमाल होता है) के घोल की बूँदें कुछ समय के लिए दर्द कम करने में मदद कर सकती हैं। कभी-कभी यह कण नेत्रश्लेष्मा या कॉर्निया में भी फॅंसा हो सकता है। ऐसे में यह डॉक्टर के द्वारा ही निकाला जाना चाहिए। बाहरी कण को निकालने के बाद आँख में चोट छूट सकती है। कॉर्निया की चोट गम्भीर हो सकती है, अन्य चोटें ३-४ दिनों में ठीक हो जाती हैं। आँखों में एन्टबैक्टीरियल दवा की बूँदें डालना ( आँखों पर पैड रखे या रखे बिना) व आराम आमतौर पर काफी होता है। पैड साफ और कीटाणुरहित होना चाहिए। गन्दे पैड से संक्रमण हो सकता है। आप पैड को प्रेशर कुकर या सोलर कुकर में किटाणुरहित कर सकते हैं। नहीं तो मेडिकल स्टोर में उपलब्ध गामा किरणों से किटाणुरहित किए गए पैड का इस्तेमाल करें।
भैंगापन ऑपरेशन से दुरुस्त हो सकता है |
भेंगापन आँखों से ठीक से एक सीध में न होने से होता है। इससे एक आँख थोड़ी तिरछी हो जाती है। इसका आम कारण बचपन में नज़र के दोष पर ध्यान न दिया जाना। थोड़े से भेंगेपन में नज़र के दोष को ठीक करवा लेना काफी होता है। अगर भेंगापन लम्बे अर्से तक चलता रहे तो उसके इलाज के लिए आपरेशन की ज़रूरत होती है।