अवटु ग्रन्थि गले के सामने स्वरयंत्र और श्वसन नली के बीच में स्थित होती है। इसका आकार तितली जैसा होता है।
घेंगा-कई इलाकों में आयोडीन की कमी से घेंगा होता है |
अवटु ग्रन्थि को ठीक से काम करने के लिए आयोडीन की ज़रूरत होती है। आयोडीन सभी मनुष्यों को समुद्री स्त्रोतों से मिल जाता है। पीने के पानी में भी कुछ मात्रा में आयोडीन होता है। शरीर को बहुत ही कम मात्रा में आयोडीन की ज़रूरत होती है। परन्तु भारत के हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में या कुछ भागों में आयोडीन की कमी बहुत आम है।
आयोडीन की कमी से घेंघा रोग हो जाता है। घेंघा रोग से प्रभावित माताओं के बच्चों को कई स्वास्थ्य समस्याएँ होती हैं जिनमें मानसिक विकलांगता भी शामिल है। इसी समस्या के कारण भारत में नमक में आयोडीन मिलानेका कानून बन गया है। इसके बारेमें हम और कही ज़्यादा जानकारी लेंगे।
हायपोथैलामस मस्तिष्क का एक छोटा भाग जो अंतस्रावी तंत्र (एंडोक्राईन) के लिये संम्पूर्ण समन्वयक केन्द्र का काम करता है। वातावरण से सभी संवेदी आगत (सेंसरी इनपुट) केंद्रीय तंत्रीका तंत्र तक पहॅूचा दिये जाते है। यह केंद्रीय तंत्रीका तंत्र के सारे संकेतो को ग्रहण करने के उपरान्त समाहित करने का काम करता है। तंत्रि अन्त:स्त्रावी संकेतो का आरंभ होने के बाद इन संकेतो की प्रतिकिया में हायपोथैलामस इपोथैलेमिक हॉर्मोनस (मोचित (रिलिसींग)कारक) तुरन्त पास में स्थित पीयूष ग्रंथि ((पिटूइटेरी ) में रक्त वाहिनीयों के द्वारा छोड दिये जाते है।
अवटु ग्रन्थि द्वारा स्त्रावित थायरोक्सिन हार्मोन मुख्यत: शरीर के चयापचय की दर को नियंत्रित करता है। यह कोशिकाओं के श्वसन, वृध्दि और कई अन्य प्रक्रियाओं को भी नियंत्रित करता है।
थायरोक्सिन के स्तर में कमी या अधिकता से शरीर पर कई सारे असर होते हैं। थायरोक्सिन की अधिकता से अवटु अति सक्रियता या माईस्थेनिया ग्रेविस ग्रेव्स बीमारी हो जाती है। थायरोक्सिन की कमी से मिक्सेडेमा हो जाता है।
थायरॉईड हॉर्मोन ज्यादा होने का प्रभाव- नेत्रगोलक कुछ बाहर आने से ऑखे बडी दिखती है| |
अधिक थायरोक्सिन स्त्रावित होने से ग्रेव्स बीमारी हो जाती है। ऐसे मामले कम होते हैं जिनमें बीमारी गम्भीर रूप ले ले। परन्तु ऐसे मामले बहुत होते हैं जिनमें थोड़ी बहुत बीमारी हो। हालाँकि आम तौर पर इसका पता ही नहीं चलता। ग्रन्थि में कोई भी दिखाई देने वाली वृध्दि नहीं होती क्योंकि एक छोटा-सा भाग भी बहुत सारा थायरोक्सिन बना सकता है। सिर्फ कुछ ही मामलों में ग्रन्थि में सूजन दिखाई देती है।
कम गम्भीर मामलों में धड़कन, काँपने, पैरों और हाथों में पसीना आने, हल्के बुखार और नेत्रगोलक के बाहर निकलने की शिकायत होने लगती है। बीमार व्यक्ति आम तौर पर कमज़ोरी और धड़कन की शिकायत करता है। आम तौर पर इन लक्षणों को यह कहर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है कि ये तो उसकी आदत घबराहट है । निदान के लिए थायरोक्सिन के स्तर की जाँच करना ज़रूरी होता है।
जिस व्यक्ति को अवटु अति सक्रियता की गम्भीर समस्या होती है उसे हाथ काँपना और ऑंखों के गोले बाहर आना साफ दिखाई देता है। हम बीमार व्यक्ति का हाथ फैलाकर उस पर कागज़ रखकर काँपने की जाँच कर सकते हैं।
चाहे बीमारी मध्यम दर्जे की हो या गम्भीर इलाज ज़रूरी है। इलाज में दवाइयाँ, अगर ज़रूरी हो तो ऑपरेशन या रेडियो सक्रिय आयोडीन का इस्तेमाल होता है। बीमारी के हिसाब से अलग-अलग व्यक्ति में अलग-अलग तरह से इलाज होता है।
अवटु ग्रन्थि में से स्त्राव कम होने से हायपो थॉयरॉईडिझम (अवटु अल्प सक्रियता) की समस्या नवजात शिशुओं और वयस्कों दोनों को हो सकती है। नवजात शिशुओं में यह माँ को घेंघा रोग होने पर होता है।
वयस्कों में भार बढ़ जाना और मोटापा, शरीर पर सूजन इस बीमारी का खास लक्षण है। बहुत अधिक कमज़ोरी लगना इस बीमारी में होने वाली आम शिकायत है। मानसिक अवसादन, यौन इच्छा कम होना, मासिक स्त्राव या माहवारी में काफी बदलाव, भूख न लगना आदि समस्याएं भी दिखती है। थायरोक्सिन हारमोन द्वारा इलाज से बीमारी में फायदा होता है। इलाज पूरी ज़िन्दगी चलता है। महिलाओं में इस बीमारी का संभव ज्यादा होता है।
एक और तरह की अवटु अल्पसक्रियता गर्भ के समय औरतों को प्रभावित करती है। बहुत अधिक गड़बड़ी के कारण गर्भपात भी हो जाता है। अगर गर्भ पूरे समय ठहरा भी रहे तो भी बच्चों में गम्भीर गड़बड़ियाँ होती हैं। शारीरिक और मानसिक वृध्दि कम हो जाती है। चेहरे पर सूजन होना, चेहरा सफेद पड़ना, जीभ मोटी और भारी होना, भेंगापन होना, पेट निकल आना, नाभि के पास हर्निया हो जाना और त्वचा सूख जाना इस बीमारी के आम लक्षण हैं। बच्चा कम खाता है और उसे कब्ज़ भी हो जाता है। बच्चा एक खास तरह से रोता है और रोने की आवाज़ बिल्ली की आवाज़ जैसी लगती है। इस अवस्था को अवटु- वामनता कहते हैं।
जल्दी निदान और हारमोन के इलाज से ये सभी समस्याएँ ठीक हो सकती हैं और इससे वृध्दि ठीक हो सकती है। देरी से ठीक न हो सकने वाली खराबी जैसे मानसिक विकलांगता, वृध्दि में कमी और मूकबधिरता हो जाती है।