बैक्टीरिया से होने वाली एक खतरनाक बीमारी हैजा है। अगर इस का इलाज न हो तो अक्सर इससे मौत भी हो सकती है। मुख्य लक्षण पतली टट्टी व उल्टियॉं आना ही होता है। परन्तु कई बार उल्टियॉं नहीं आती है। समुदाय को हैजा से बचाने का एकमात्र तरीका, साफ पानी पीने के लिये उपलब्ध होना ही है। हैजा के टीके का इस्तेमाल वर्तमान में बन्द कर दिया गया है। क्योंकि यह असरकारी नहीं है। हैजा उन जगहों की मुख्य समस्या है जहॉं स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं होता। खासतौर पर उन गॉंवों में जहॉं झरने या छोटी नदी का पानी पीने के स्रोतों के रूप में इस्तेमाल होता है। हैजा आमतौर पर बरसात की शुरुवात में या फिर गर्मियों के आिखरी महीनों में फैलता है। गर्मियों में क्योंकि पानी की कमी हो जाती है लोग दुषित स्रोतों से पानी पीने लगते हैं। दुषित संक्रमित पानी से बनी बर्फ खाने से भी संक्रमण हो सकती है। बरसात के दिनों में पानी के स्रोत दूषित हो जाते हैं और उनमें गन्दगी पैदा हो जाती है। आज कल हालॉंकि बड़े स्तर पर हैजा से महामारी नहीं फैलती पर छोटे स्तर पर हैजा फैलने की घटनाएँ इधर-उधर होती ही रहती हैं।
हैजा व्हिब्रिओं कॉलेरी नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह जीवाणु हैजा रोगी की टट्टी व उल्टी में होते हैं और असंक्रमित लोगों में के पाखाने से आगे फैलते हैं। हैजा दुषित पानी, भोजन, मक्खियों के सम्पर्क से फैलता है। आहारनली या आँतों में कीटाणुओं के पहुँचने के 3 से 4 घण्टों में ही उल्टियॉं व दस्त शुरू हो जाते हैं। कभी-कभी ये 24 घण्टों बाद भी शुरू होते हैं।
आँतों में शोथ से शरीर में से पानी और ज़रूरी लवण निकल जाते हैं और इससे निर्जलीकरण और शॉक/सदमा की स्थिति बन जाती है। हैजा में आखिर में शॉक आघात के कारण ही मृत्यु होती है। अक्सर बहुत अधिक पानी निकल जाने से गुर्दों का काम करना बंद कर देता हैं। और खून के संचारण में भी गड़बड़ियॉं हो जाती हैं।
किसी भी संक्रमण में निर्जलीकरण का इलाज तुरन्त होना ज़रूरी है। निर्जलीकरण को पहली, दूसरी या तीसरी अवस्था की श्रेणियों में देखा जाता है।
पहली अवस्था – के लक्षण प्यास व जीभ का सूखना
दूसरी अवस्था – पानी की कमी के लक्षण दिखाई देने लगना जिसमे आँखे और त्वचा सूखने लगती हैं परन्तु कोई खतरे वाली बात नहीं होती।
तीसरी अवस्था – ऊपर बतायी सभी लक्षणो पाये जाते हैं पर साथ में आघात व बेहोशी होती है। नाड़ी तेज,फिर कमजोरी होने लगती है और व्यक्ति मरणासन्न हो जाता है।
निर्जलीकरण अवस्था के मुताबिक उपाय करना चाहिए। पहले और दूसरी अवस्था में निर्जलीकरण में मुँह से तरल पदार्थ देने से ही स्थिति सुधर जाती है। तीसरी अवस्था के निर्जलीकरण में डॉक्टर की मदद से अन्त:शिरा के माध्यम से सलाईन देने से ही फायदा होता है, पर ऐसे मामलों में भी मॅंह से तरल पदार्थ देने तो शुरू कर ही देने चाहिए। दस्त की शुरुआत से ही तरल पदार्थ देते रहने से इसको बिगड़ने से रोका जा सकता है। ज़्यादातर मामलों में निर्जलीकरण या तो मन्द होता है या मध्यम दर्जे का। ऐसे में मुँह से तरल पदार्थ देने, बच्चों व वयस्कों में दस्त के इलाज के लिए एक बहुत फायदेमन्द तरीका है। अत: शिरा के माध्यम से द्रव देने का तरीका सीख लेना भी काफी उपयोगी है।
हैजे के इलाज के लिए बहुत ही सावधानी से देखभाल की ज़रूरत होती है। आमतौर पर इसका इलाज गॉंव में हो पाना सम्भव नहीं है। शिरा में ड्रिप दिए जाने की सुविधा उपलब्ध होना ज़रूरी है क्योकि रोगी की हालत खराब हो जाने की सम्भावना रहती है।
पर फिर भी मुँह से तरल पदार्थ देकर पानी की कमी पूरी करने की कोशिश शुरू कर देनी चाहिए। इसके कई फायदे भी हैं। मुँह से तरल देकर पानी की कमी पूरी करने का तरीका शिरोम में सक्राइन देने से की सस्ता है। गम्भीर रूप से बीमार व्यक्ति में भी अस्पताल पहुँचने तक पानी की कमी पूरी करने की कोशिश जारी रखनी चाहिए। जब तक पानी की कमी ठीक न हो जाए पानी पहुँचाना जारी रखें। पेशाब आ जाना निर्जलीकरण ठीक हो जाने का एक अच्छा लक्षण है। नारियल का पानी पिलाना भी अच्छा होता है। टैट्रासायक्लीन वयस्कों के लिए एक अच्छी दवा है और बच्चों के लिए फ्यूराजोलिडीन या एम्पीसिलीन का इस्तेमाल ठीक है। अपने स्वास्थ्य केन्द्र को तुरन्त हैजे के मामले की जानकारी दे। पीने के पानी के कीटाणुरहित बनाएँ। आप नीचे दी गई सावधानियॉं बरत सकते हैं।