अगर अन्य कोई तकलीफ न हो तो ताजी चोटें आमतौर पर एक सप्ताह तक में भर जाती हैं। अगर किसी तरह के संक्रमण के कारण जख्म न भरे या भरने में देर हो जाए तो वो चिरकारी हो जाता है ऐसा जख्म त्वचा के छाले का सबसे आम कारण है। कोई भी फोड़ा या फुँसी फट जाने पर अगर बहुत समय तक ठीक न हो तो वो अल्सर, (छाले) बन सकता है। और ऐसे जख्म जिनमें कोई बाहरी चीज अन्दर हो, (जैसे कॉंटा घुसा हो) वह भी बहुत धीरे-धीरे भरते हैं। डायबिटीज़, हडि्डयों का संक्रमण पैरों पर फुली हुई शिराओं की बीमारी भी छाले का कारण बनते हैं।
त्वचा के अल्सर असल में चिरकारी घाव होते हैं। यह रोग के प्रकार के अनुसार अलग अलग होते हैं। आमतौर पर इसकी त्वचा काफी मॉंसल दिखती है। यह घाव को भरने के लिए ऊतकों के बढ़ने से होता है। संक्रमण के कारण यह बहुत ही खराब सा दिखने लगता है। त्वचा के अल्सर से लिंफ ग्रंथियों में सूजन आ जाती है या गिल्टियॉं बन जाती है। यह कीटाणुओं को फैलने से रोकने का प्राकृतिक तरीका है।
पीप से भरे हुए घावों के लिए मल्हम पटटी से ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत होती है। अगर पट्टी से पीप गीली हो जाती है तो इसे बार बार बदलें। पटटी से दवा को अपनी जगह पर रखने में भी मदद मिलती है। एन्टीसेप्टिक मलहम ज़ख्म के संक्रमण को रोकने व ठीक करने में मदद करते हैं। रूई और गाज़ की पट्टी जख्म के ऊपर रखें और उसे बँडेज पट्टी से बॉंध दें।
जख्मपर कुमारी लगाना |
ज़ख्मों के भरने के लिए कुछ औषधीय उपाय फायदेमंद हैं। केतकी या घृतकुमारी (एक गूदेदार पौधा) (एलो वेरा) का एक टुकड़ा ज़ख्म के लिए एक आदर्श मरहम पट्टी है। यह न केवल ठण्डक पहुँचाता है, चिपकने वाला नहीं है बल्कि इसमें ज़ख्म ठीक करने के गुण भी है। यह सस्ता होता है और आसानी से मिल जाता है। इसमें कोई भी जीवाणु नहीं होते। इसलिए इसे अन्य पटिटयों जैसे जीवाणुरहित करने की भी ज़रूरत नहीं होती। ज़ख्मों के लिए नीम या नीम तेल का लेप भी एक बहुत लाभकारी दवाई है।
संक्रमित ज़ख्मों में टिटनस के जीवाणु पैदा होने का खतरा होता है। हाईड्रोजन पेरॉक्साइड में से निकलने वाला खुला ऑक्सीजन कीटाणुओं को मारता है। यह खुला ऑक्सीजन जैविक अवशेष जैसे पीप आदि को तोडती है और ज़ख्म की दरारों को साफ करती है। अगर टिटनस का टीका पहले से न लगा हो तो इसको दो डोज़ एक महीने के अन्तराल पर दी जानी ज़रूरी है।
अगर ज़ख्मों को तीन चार दिनों के लिए खुला छोड़ दिया जाए तो मक्खियॉं उनमें इल्ली पैदा करने लगती हैं। मरहम पट्टी हो जाने से इससे बचाव हो जाता है। इल्ली से बहुत दर्द होता है। इन्हें हटाना या खतम करना भी मुश्किल होता है। जख्म में से इल्लीयों को हटाने के लिए यूक्लिपटस (गंधसफेदा) तेल या टर्पेन्टाइन तेल या करेले की पत्तियों का रस उन पर लगाएँ। इनसे वो बाहर निकलेगी और फिर हम उन्हें चिमटी से निकाल सकते हैं। ऐसी चोटों में भी ज़ख्म बन सकते हैं।
जिनमें बड़ा कटाव हो ऐसे जख्मो में टॉंके लगाए जाने ज़रूरी होते है। अगर ज़ख्म को ठीक से बन्द न किया जाए तो खुले हुए हिस्से में संक्रमण हो सकता है। इसलिए ताजे ज़ख्म का तुरंत इलाज ज़रूरी है। छोटे मोटे ज़ख्म चिपकने वाले प्लास्टर लगाकर भी ठीक किए जा सकते हैं। टॉंके लगाने के कौशल की स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अक्सर ज़रूरत पड़ सकती है। और इसे सीखना काफी आसान हैं।
एन्टीबैक्टीरियल दवाओं का इस्तेमाल ज़ख्मों के संक्रमण से बचाने, संक्रमण हो जाने पर उसे ठीक करने के लिए व संक्रमण को फैलने से राकने के लिए ज़रूरी होता है। कोट्रीमोक्साजोल, ऐमोक्सीस्लीन, पैन्सेलीन, सल्फा, टैट्रासाइक्लीन आदि कुछ दवाएँ हैं जो आप इस्तेमाल कर सकते है। यह ज़रूरी है कि रोगी इन प्रतिरोगाणु दवाओं का ५ से ७ दिनों का कोर्स पूरा करें। एस्परीन और आईब्रूप्रोफेन जैसी दर्दराहत व शोथरोधी दवाएँ सूजन और दर्द को कम करती हैं। ज़ख्म के इलाज के समय डॉक्टर आमतौर पर टिटनेस ऑक्साइड का इन्जैक्शन देते हैं। यह ध्यान रखना ज़रूरी है कि केवल इंजेक्शन से रोगी को पूरी सुरक्षा नहीं मिलेगी, घाव की देखभाल भी ज़रूरी है।
कुछ घाव देखभाल के बावजूद भी ठीक नहीं होते। ऐसे में घावों के न भरने के कारणें पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है। डायबिटीज़, कुष्ठ, सिफलिस, अपस्फीत शिरा, हडडी का संक्रमण या कोई बाहरी चीज का होना कोई एक घाव के चिरकारी होने का कारण हो सकता है। ऐसे रोगियों को डॉक्टर के पास भेज दिया जाना चाहिए।