दमा फेफड़ों में आक्सीजन की कमी के कारण सॉंस लेने में परेशानी को कहते हैं। यह हवा के रास्ते सिकुड़ जाने के कारण होता है। दमा की पहचान काफी आसानी से हो जाती है। रोगी काफी कोशिश से ज़ोर-ज़ोर से सॉंस लेता है। अक्सर सॉंस लेने के साथ आवाज़ भी आती है, जो दूर से सुनी जा सकती है।
दमा बच्चों में भी काफी होता है। बहुत से बच्चों को एक या दो साल खराब मौसम में दमा का दौरा पड़ जाता है। यह समस्या बाद के सालों में अपने आप खतम भी हो सकती है। कभी-कभी यह बीमारी फिर से भी हो सकती है। बच्चों की बीमारियों वाले अध्याय में आप इसके विषय के बारे में और अधिक पढ़ेंगे।
एलर्जी से हुए शोथ से श्वसन तंत्र के रास्ते सिकुड़ जाते हैं। हवा के इन रास्तों की मुलायम पेशियों में एक एंठन होती है। हवा के रास्तों के अन्दर के आवरण सूज जाते हैं। इनमे श्लेष्माभ स्त्राव (कफ) इकट्ठा हो जाता है। इससे अन्दर की अन्दर घुटन सी होती है। क्योंकि ऐसे में हवा को पतले रास्तों से गुजरना पड़ता है इसलिए सॉंय सॉंय जैसी आवाज़ भी होती है।
दमे मी आनुवॉंशिक प्रवृति है। अगर बचपन में दम की शिकायत रही हो तो उन बच्व्चों में बड़ी उम्र में भी दमा चलता रह सकता है। जिनके परिवार में दमे का कोई इतिहास हो उनको दमा होने की ज्यादा संभावना होती है।
दमे में हवा के रास्तों के सिकुड़ जाने के कारण छाती में से सॉंय सॉंय या सीटी जैसी आवाज़ आती है। अगर यह आवाज़ वैसे ही सुनाई न दे रही हो तो आप इसे आले की मदद से सुन सकते हैं।
इन आवाज़ों के अलावा, हल्की बुलबुलों जैसी आवाज़ भी आले की मदद से सुनाई देती है। ऐसा आवाज़ गाढ़े बलगम में से हवा के गुज़रने के कारण होता है।
नथुनों का फूल जाना, छाती की गति बढ़ना और सॉंस फूलना दमे के स्पष्ट लक्षण हैं।
ज़्यादातर रोगियों में दमे की तकलीफ का पूर्व इतिहास होता है और उन्हें पता चलता है कि किन कारणों से इसका दौरा पड़ता है। जैसे ऐसा मौसम जब बादल छाए हुए हों या फिर कुछ एलर्जी करने वाले कोई तत्व जैसे घर की धूल आदि। यह तय करने की कोशिश करें कि दमे का दौरा कितना गम्भीर है।
पहली बार दमे का दौरा पडने पर यह तय करना मुश्किल होता है कि यह श्वसनी का दमा है या दिल का। इसलिए पहली बार दमे का दौरा पड़ने पर तुरन्त अस्पताल भेजा जाना ज़रूरी है।
दमे का कोई खास इलाज नहीं है। इलाज के लिए पहले यह पता लगाएँ कि रोग कितना गम्भीर है।
आयुर्वेद में दमे को तीन श्रेणियों में बॉंटा गया है।
कफदोशिक श्रेणी का दमा आमतौर पर खाना खाने के तुरन्त बाद शुरू होता है। यह ठण्डे मौसम, ठण्डा पानी पीने से बढ़ जाता है। उल्टी करवा देने से आमतौर पर फायदा होता है। यह आम अनुभव है कि बचपन के दमे में उल्टी हो जाने या करवा देने से आम तौर पर बच्चे को सॉंस फूलने की तकलीफ में आराम पहुँचता है। आर्युवेद में उल्टी करवाने के साथ-साथ श्वासकुठार की गोलियॉं दिए जाने की सलाह दी जाती है। उल्टी करवाने के लिए, लहसन की एक गॉंठ को पीस लें और बच्चे का दूध के साथ दें। इससे गाढ़ा बलगम ढ़ीला पड़ जाता है और एंठन नहीं हो पाती।
पित्तदोषिक दमा खाने के कुछ घण्टों के बाद शूरू होता है। और इसके बाद पॉंच घण्टों तक चल सकता है। इसके लिए पित्तदोष का इलाज करने की ज़रूरत होती है (सूत शेखर की १०० मिली ग्राम की गोलियॉं दिन में तीन बार दी जानी चाहिए। इसके अलावा लिक्वोरिस के सत्त से खास इलाज किया जाता है। इसे बनाने के लिए २०० ग्राम लिक्वोरिस पॉउडर को एक लीटर उबलते हुए पानी में डाला जाता है। उसके दो घण्टों के बाद इस्तेमाल किया जाता है। बार-बार यह थोड़ा थोड़ा लेते रहने से (हर बार १०० मिली लीटर), पित्तदोषिक दमे में फायदा होता है।
वातदेषिक दमा आमतौर पर शाम के समय या सुबह-सुबह शुरू होता है। तीन से चार दिनों तक श्वासकुठार और काण्टकारी का सत्त दिन में दो बार दो-दो चम्मच लेने से इन मामलों में फायदा होता है। अगर नारायण तेल उपलब्ध हो तो ५-१० मि.ली दूध के साथ वो देना चाहिए।
दीर्घश्वसन और प्राणायाम |
योग से दमे की बीमारी कम हो जाती है। वमन (उल्टी), जल नेती (नाक का रास्ता नमक के पानी से साफ करना) और भस्रिका प्राणायाम (सॉंस का व्यायाम) और एक पश्चिमोत्तानासन, सर्वागासन और हलासन भी काफी उपयोगी होते हैं।
आरसेनिकम, बेलाडोना, ब्राओनिआ, सेना, कॉस्टीकम, फेरम फॉस, हैपार सल्फ, लाईकोपोडिअम, मरक्यूरी कोर, मरक्यूरी सोल, नेटरम मूर, फोस्फोरिकम, फाइटोलक्का, सिलिका में से कोई एक दवा चुन कर दें।