दूध, दही, मख्खन से कृष्ण भगवान की कथा भरी है |
छोटे कद वाले या कम वजन के बच्चों को हमेशा असली कुपोषण के रोग नहीं होते जैसे कि सूखारोग या क्वाशिओरकोर रोग। परन्तु ये बहुत जल्दी संक्रमण के शिकार हो जाते हैं और इससे कुपोषण और अधिक बढता है। आमतौर पर ये बच्चे चंचल नहीं होते। बीमारी या परिवार के तनावपूर्ण हालात इन कुपोषित बच्चों को असल कुपोषण की ओर धकेल सकते हैं। बच्चा किस तरह के कुपोषण का शिकार है यह बच्चों पर निर्भर करता है। इसी कारण कुछ बच्चों को सूखारोग हो सकता है और कुछ को क्वाशिओरकोर रोग। लेकिन आजकल अल्पपोषण का ये अंतिम स्वरूप संभवत: कम हुआ है। कुपोषण से बच्चे कमज़ोर हो जाते हैं और उनके शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति कमज़ोर हो जाती है। इससे और अधिक और बारबार संक्रमण होता है। इन बच्चों में इन संक्रमणों से और अधिक जटिलताएं आ जाती हैं; और ये जल्दी ठीक नहीं हो पाते।
बच्चे ही देश का भविष्य होते है। बच्चों का स्वास्थ्य, पोषण और वृद्धी देश के स्वास्थ्य हेतू महत्त्वपूर्ण है। हर एक परिवार की इसमें प्रमुख जिम्मेदारी है। लेकिन भारत में लगभग ४०% बच्चे कुपोषित है। गरीबी इसका एक प्रमुख कारण है। इसिलिये कुपोषण असल में एक मूखमर्शका सौम्य रूप है। कुपोषण कहने से एक तरहसे यह एक चिकित्सीय समस्या बनती है लेकिन असल में यह गरिबों की बिमारी है।
किंतु अमीर परिवारों में भी अलग तरह का कुपोषण होता ही है। कुल मिलाके कुपोषण से स्वास्थ्य बिगडता है, कार्यक्षमता कम हो जाती है और शिक्षात्मक प्रगती कम होती है। अब हम कुपोषण संबंधी महत्त्वपूर्ण जानकारी लेंगे। इसके लिये भूख से रोना यही एक सूचना है। बचपन में अल्पपोषण का सबसे आम उदाहरण है लंबाई (कद) न बढ़ना। कुछ बच्चों का वजन भी सामान्य से कम हो सकता है। अल्पपोषण से लंबाई और वजन दोनों पर असर पड़ता है। लंबाई तभी बढ़ सकती है अगर लगातार सही पोषण मिले। परन्तु वजन में बढ़ोतरी थोड़े समय के लिए आहार में सुधार से भी हो सकती है। इसलिए लंबाई सही पोषण की ज़्यादा सही सूचक होती है।
कृमी-कीडों के कारण कुपोषण चक्र चलता रहता है |
छोटे कद वाले या कम वजन के बच्चों को हमेशा असली कुपोषण के रोग नहीं होते जैसे कि सूखारोग या क्वाशिओरकोर रोग। परन्तु ये बहुत जल्दी संक्रमण के शिकार हो जाते हैं और इससे कुपोषण और अधिक बढता है। आमतौर पर ये बच्चे चंचल नहीं होते। बीमारी या परिवार के तनावपूर्ण हालात इन कुपोषित बच्चों को असल कुपोषण की ओर धकेल सकते हैं। बच्चा किस तरह के कुपोषण का शिकार है यह बच्चों पर निर्भर करता है। इसी कारण कुछ बच्चों को सूखारोग हो सकता है और कुछ को क्वाशिओरकोर रोग। लेकिन आजकल अल्पपोषण का ये अंतिम स्वरूप संभवत: कम हुआ है। कुपोषण से बच्चे कमज़ोर हो जाते हैं और उनके शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति कमज़ोर हो जाती है। इससे और अधिक और बारबार संक्रमण होता है। इन बच्चों में इन संक्रमणों से और अधिक जटिलताएं आ जाती हैं; और ये जल्दी ठीक नहीं हो पाते।
कुछ संक्रमणों से कुपोषण और अधिक बढ़ जाता है। जब बच्चा बीमार होता है तो वो कम खाता है और बीमारी में अपने शरीर के प्रोटीन भी खो देता है। बहुत से संक्रामक रोगों में पाचन पर भी असर पड़ता है। दस्त, मलेरिया, तपेदिक, खसरा, कुकुरखॉंसी और अन्य छाती की बीमारियॉं आमतौर पर कुपोषण से जुड़ी होती हैं। विटामिन ए की कमी से बच्चों में और अधिक बीमारियॉं और मौतें होती हैं।
बोतल से दूध ना पिलाए |
बच्चें का पोषण और वृद्धी जॉंचने की चार प्रमुख रितीयॉं है।
सिर का घेरा नापना |
सिर का घेरा भी पोषण पर निर्भर है। जन्म के समय सिर का घेर ३४ से.मी.होता है। छठे माह के अंत में ४२, पहले वर्ष के अंत में ४५, दुसरे साल के अंत में ४७, तिसरे साल के अंत में ४९, चौथे वर्ष के अंत में ५० से.मी. अपेक्षित है।
जच्चे बच्चे का वजन ढाई किलो से उपर होना चाहिये |
कुपोषण पहचानने के लिये उम्र के अनुसार वजन यह मापदंड सर्वाधिक प्रचलित है। लगभग ४०% बच्चे उम्र की अपेक्षा हलके होते हैं। कम वजन अर्थात शरीरभार और वृद्धी का कम होना। अपेक्षित वजन हेतू कुछ मापदंड इस प्रकार है। जन्मजात शिशू – ३ किलो, छठे माह के अंतमें ६ किलो, १ वर्ष के अंतमें ९ किलो, २ वर्ष के अंतमें १२ किलो, ३ वर्ष के अंतमें १४ किलो तथा ४ वर्ष के अंतमें १६ किलो.
लाल निली पट्टी से बच्चो की भूजा नापना |
भुजाघेर नॉंपना – यह सबसे आसान तरीका है। १ से ५ वर्ष उम्र तक के बालकों में यह एक सी लागू होती है। भुजाघेर १३.५ से.मी. से अधिक होना अच्छा है। भुजाघेर ११.५ से.मी. से कम होने पर कुपोषण समझे। भुजाघेर ११.५से १३.५ से.मी के बीच में हो तो मध्यम कुपोषण समझे। नॉंपने हेतू सामान्य टेप या भुजाघेर पट्टी का इस्तेमाल करे।
इस मापतोल के अलावा भी कुपोषण के कुछ लक्षण होते है। उदा. हिमोग्लोबीन या रक्तद्रव्य का प्रमाण १२ ग्रॅम से अधिक हो। लगभग ५०% बालकों में खून की कमी होती है।