बिना संक्रमण वाले दस्त
एलर्जी से होने वाला डायरिया

बच्चों में दूध सहन न होना इसका एक आम उदाहरण है। शुरुआत में ही इसका पता चलना मुश्किल होता है। आमतौर पर जब प्रतिरोगाणु दवाओं से असर नहीं होता तब उसके बाद ही समझ में आता है कि ये एलर्जी के कारण है।

दूध सहन न होने के कारण अक्सर मलद्वार के पास लाली आ जाती है,ऐसा पाखाने में लैक्टिक एसिड होने के कारण होता है। खाने की अन्य चीज़ों से भी डायरिया हो सका है। किस चीज़ से ऐसा हो रहा है इसका पता एक एक करके चीज़ें छॉंटकर अलग करने से होता है। नन्हे बच्चों में कुछ सॉंस की बीमारियों से भी दस्त हो जाते है।

बदहज़मी अपचन

किसी भी उम्र में खाना ठीक से न पचने से भी डायरिया हो जाता है। बच्चों में दॉंत निकलने के समय में भी कुछ-कुछ समय के लिए डायरिया हो जाता है कुपोषण व विटामिन ए की कमी से भी डायरिया हो जाता है।

इलाज

इन सभी के लिए अलग-अलग तरह के इलाज की ज़रूरत होती है। वैसे ये सब खुद ठीक होने वाली तकलीफें हैं। दस्त में आँतों को शान्त करने वाली दवाएँ भी अक्सर दी जाती हैं। (लोप्रामाइड जैसी) वयस्कों के लिए ये सुरक्षित दवाएँ हैं पर ये बच्चों के लिए खतरनाक हैं।

दस्त और आयुर्वेद

जठर अत्यम्लता का इलाज करने से पहले पक्का कर लें कि रोगी को अलसर तो नहीं है। अल्सर का इलाज अलग तरह से होता है। अल्सर के लक्षण इस विषय के बाद दिये है।

दस्त व पेचिश के लिए खास इलाज के अलावा पाचन सुधारने के लिए आयुर्वेद में कई और इलाज हैं। त्रिखाटू का चूर्ण (हींग कालीमिर्च और पिप्पली), एक से दो ग्राम दिन में तीन बार लेने से फायदा होता है। पानी जैसे दस्त चलते है तब एक एक चम्मच हींग व ताजे प्याज का जूस थोड़े से कापूर के पाउडर के साथ लेने से अक्सर फायदा होता हैं। पहले घण्टे में यह हर 15 से 20 मिनट के बाद लें और फिर हर घण्टे बाद इसके बाद घूँट-घूँट करके गुनगुना पानी पुदीना व सौंफ के सत्त के साथ दें। अगर सत्त उपलब्ध न हो तो 25 ग्राम सोयाबीन और 50 ग्राम हरा पुदीना पीसकर लेप बना लें और 300 से 400 मिलीलीटर उबला हुआ पानी उसमें डालें। इसके बाद उसे उबालें नहीं।

कई तरह के दस्त व पेचिश, जिनमें खूनी पेचिश शामिल है के लिए कूटज एक बहुत अच्छी औषधि है। यह गोलियों, सिरप या चीनी के साथ मिलके बनी दवाइयों के रूप में उपलब्ध है। इसे 2 से 3 हफ्तों तक दिन में दो से तीन बार लेने से पाचन स्वास्थ्य बेहतर हो जाता है।

श्लेष्मा व टेनेसमस के साथ पेचिश होने पर आँतों के लिए कोई आराम पहुँचाने वाली औषधि की ज़रूरत होती है। 15 से 20 मिलीलीटर तिल या सूरजमुखी का तेल सोने के समय लेने से फायदा होता है नहीं तो इसकी जगह 10 से 15 मिलीलीटर घी एक कप गुनगुने पानी के साथ लेने से भी फायदा होता है। तेल की तुलना में घी को निगलना भी आसान होता है। अपचन (बदहज़मी) दस्त में कुछ समय तक कुछ न खाने या फिर तरल पदार्थ लेने से ठीक हो जाता है बदहज़मी को ठीक करने के लिए आधा लीटर पानी कुछ आटे व चावल के साथ उबाल लें इसमें अदरक व काली मिर्च डाले यह सूप काफी फायदेमन्द होता है।

पेचिश और दस्त
dysentery
खुनी पेचीश

साथ की तालिका में इसके विभिनन प्रकारों के बारे में पढ़ें। हमें पानी जैसे पाखाने, रसे जैसे पाखाने व मुलायम पाखाने में फर्क ज़रूर करना चाहिए। पाखाने में खून या श्लेष्मा आना बड़ी आँत में आमतौर पर बैक्टीरिया और कभी-कभी अमीबा के कारण होता है इसे पेचिश कहते हैं दस्त और पेचिश क्योंकि काफी आमतौर पर इस्तेमाल होने वाले शब्द हैं दोनों में फर्क समझना ज़रूरी है। आमतौर पर छोटी आँत की गड़बड़ियों में ज़्यादा पतली टट्टी होती है। बड़ी आँत की बीमारियों में तुलनात्मक रूप से गाढ़ा पाखाना होता है। क्योंकि मूलत: इसमें पानी की अधिकता नहीं होती।

कारण
  • आधा द्रवीय और आधा ठोस पाखाना आमतौर पर वायरस के कारण नहीं होता,और इसका कारण आमतौर पर बैक्टीरिया या अमीबा होता है। तीब्र स्थिति में अमीबा और जिआरडिया से हरे से रंग का आधा द्रवीय ओर आधा ठोस पाखाना होता है। परन्तु चिरकारी अमीबियोसिस में दिन में एक या दो बार मुलायम और आधा ठोस पाखाना होता है।
  • कृमियों से होने वाला दस्त आधा ठोस होता है।
  • बिना पाखाने के खून या श्लेष्मा आना दण्डाणु बैसिलरी पेचिश का लक्षण हे।
  • अमीबिक कोलाईटिस में म्यूकस के साथ पाखाना होता है, हालॉंकि इस स्थिति में भी कभी-कभी खून की बूँदें दिख सकती हैं।
लक्षण

पेचिश में पेट में दर्द होता है।

  • बदबू कीड़े, अमीबियोसिस या ज़िआरिडिआसिस के कारण आती है।
  • हरे से रंग का पाखाना अमीबियोसिस एक छोटे से जीवाणु (अमीबा) से होने वाला रोग या ज़िआर्डियासिस (ज़ियार्डिया भी अन्य सूक्ष्म जीवाणु होता है) में आता है। ज़ियार्डियासिस में पाखाने के साथ झाग भी आता है और इसमें तुरन्त पाखाना जाने की ज़रूरत होती है।
खून और श्लेष्मा
  • तेज़ दर्द,खून व श्लेष्मा की बीमारियों का आम लक्षण है।
  • इन बीमारियों में निर्जलीकरण नहीं होता।
  • बैक्टीरिया की बीमारी में साथ में बुखार भी हो सकता है।
  • आमतौर पर बैक्टीरिया से होने वाली पेचिश के कारण खून का श्लेषमा निकलता है।

कृमि और अमीबा इन्सान के शरीर में लम्बे समय तक रहते हैं इस कारण लोगों को अक्सर लम्बे-लम्बे समय तक निस्तानिका (पाखाने जाने में दर्द और पेट पूरी तरह साफ नहीं होने), पेट में गैस व बदहज़मी की शिकायत होती है।

इलाज
  • बैक्टीरिया से होने वाली छूत में हैजा में टैट्रासाइक्लीन या एम्पीसिलीन या फ्यूराजोलिडीन से फायदा होता है। अन्य बैक्टीरिया पर इन दवाओं के अलावा कोट्रीमोक्साजोल भी असर करती है।
  • बैक्टीरिया से होने वाली खूनी पेचिश में फ्यूराज़ोलिडीन के अलावा ऊपर दी गई सभी दवाएँ असर करती हैं। इसके अलावा अन्य असरकारी दवाएँ हैं नॉरफ्लोक्साज़ीन और नालीडिक्सिक एसिड।
  • अमीबा या जिआरडिया की छूत का इलाज मैट्रोनिडाज़ोल या टिनिडाज़ोल से करें।
  • कृमि का इलाज मेबेण्डाज़ोल, आलबेण्डाज़ोल या पिपराज़ीन से करे।
पाखाना कैसा है चोबीस घंटो में कितनी बार टट्टी हुई है
एकबार दो बार तीन बार तीन से ज़्यादा बार
पानी जैसी दीपक को दस्त हैं मीना के बच्चे को दस्त हैं
आधा द्रवीय सुभाष को बदहज़मी है
आधा ठोस या मुलायम गोविन्द अक्सर बाहर खाता है उसे अमीबियोसिस है
टट्टी में श्लेष्मा उमा को चिरकारी अमीबियोसिस है राजू को अमीबियोसिस है
खून और श्लेष्मा लीला को शिगलोसिस है

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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