tantrika tantra मानसिक स्वास्थ्य मस्तिष्क/तंत्रिका तंत्र
भग्नमनस्कता

schizophreniaमथुरा अब २० बरस की महिला हो गयी है। मै जब उसे मिलने गया तब वो खेत में काम करने गयी थी और उसके पिता ने उसे बुलवा लिया। आते ही मथुरा ने मुझे नमस्ते कहा। जाहीर है की अब मथुरा काम करती है और परिवार को काफी मदद करती है, सारा काम तो वह करती ही है उपर का खेत का अन्य काम भी समय समय कर लेती है। लेकिन चार बरस पहिले मथुरा की हालत इतनी बुरी थी की उसको उसका बाप रस्सी से बांधकर रखता था। मॉं बाप अपने हालात से तंग आ गये थे क्यों की मथुरा एक भी काम ठीक से नही करती थी और आये दिन किसीको मारपीट भी करती थी। कपडे और खाने पीने की सुद भी इसको नही रही थी। ये सारा शुरु हुआ जब वो १४ साल की थी। इसलिये शादी की तो कोई गुंजाईश नही थी। शुरु में कुछ बरस वो स्कूल चली जाती थी लेकिन सरदर्द के कारण अक्सर घर लौटा करती थी। बीमारी बढती गयी और स्थानिक डॉक्टरी इलाज नाकाम हुए। पैसा बरबाद हुवा और बच्ची का इलाज भी न हुआ । लेकिन हमारी स्वास्थ्य सेविका प्रतिभा बहन ने उनको सरकारी अस्पताल में डॉक्टर को दिखाया। सही दवा प्रयोग से कुछ हप्तों में ही मथुरा को आराम मिल गया। चंद महिनों में वह बिलकुल कामकाजी महिला बन गयी है। हर दिन गोली खाने का खर्चा ज्यादा नही होता, वैसे भी सरकारी अस्पतालों में यह दवा मुफ्त मिलती है। सिवाय कुछ सरदर्द के अब उसको और कोई तकलीफ नही है। मथुरा अब बिलकुल स्वस्थ्य है।

इस बीमारी में उस व्यक्ति और उसके परिवार को असीम मुश्किले झेलने पडती है। उस घर में शादी-ब्याह के संबंध ही मुश्किल से ही होते है। सामाजिक डर के कारण बीमारी को छिपाना पडता है। इसलिये इलाज भी ठीक से नही होते। इस बीमारी का कारण आनुवंशिकी है और एक जैवरासायनिक तत्व की मात्रा बढना इसका कारण समझा गया है। इसलिये इसके लिये अब दवाइयॉं भी हासिल हुई है। इस बीमारी को जल्दी निदान के लिये नीचे दी गयी लक्षणों में कम से कम दो मुख्य लक्षण और एक छोटे लक्षण मिलना जरुरी है।

मुख्य लक्षण
  • हमेशा असंबद्ध बोलने, चिल्लाने की आदत हो जाना।
  • अनसुने आवाज और अवास्तव घटना का बयान।
  • मन में आवास्तव विचार प्रक्रिया जिससे वह आहत होता है। जैसे की कोई उसपर हमला कर रहे है।
  • गलत धारणा जैसे की वह कोई भगवान है|
  • हमेशा विचलित और अस्वस्थ मन।
  • बहुत ही शांत और आत्मरत, बोलचल नहीं।
  • खुद की बुनियादी निगरानी न ले पाना। जैसे खाना, पिना, सफाई आदि।
schizophrenia
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छोटे लक्षण
  • भावनाहिनता, बात पर ध्यान न होना।
  • गलत व्यवहार, कभीकभी जोखम भरा।
  • खुद को या औरों को चोट पहुँचाना।
  • घर से भागना और कभी भी वापस आना।
  • वास्तवता से रिश्ता नही रखना।
  • समय, स्थान और परिस्थिती की समझ ना होना। कभीकभी खुद को भूल जाना।
  • बिना किसी कारण के।विचित्र हरकत, करना
  • कभीकभार परिवारिक व्यक्ति को भी न पहचानना।
  • घंटों तक नींद न आना, बिना सोये रहना।
  • डॉक्टर के पास जाने को राजी नहीं।
  • खुद के कपडे फाडना या निकाल देना।

यह एक बृहत्मनोविक्षप्ति है। आमतौर पर लोग इसे पागलपन मान लिया जाता है। बीमारी उम्र के दूसरे या तीसरे दशक में शुरु होती है और पूरी उम्र तक कम या ज़्यादा चलती रहती है। यह उस व्यक्ति और उसके परिवार के लिए बहुत ही परेशान करने वाली होती है। इस बीमारी की शुरुआत किसी तनाव वाली घटना जैसे परिवार में किसी की मौत या लड़ाई आदि से हो सकती है। लेकिन इसमें यह दिखाई देता है की गत पीढीयों में किसी व्यक्ति में ऐसी बीमारी थी, जो अब इस पीढी में किसी को हुई है। असल में हम इसका वांशिक नक्शा बना सकते है, २-३-४ पंक्तियों तक।

विवरण

schizophreniaइसमें सोचने, समझने, भावनाओं और व्यवहार में बहुत अधिक गड़बड़ियॉं हो सकती हैं। उल्टे सीधे ख्याल आना, भ्रम होना, यथार्थ से संपर्क टूट जाना और सोचने में बहुत अधिक व्यवधान स्किज़ोफ्रेनिया के प्रमुख लक्षण हैं। व्यक्ति बेकार की बातें बोलता है, बार बार एक ही बात दोहराता है और उसकी बातों से कुछ समझ पाना या मतलब निकाल पाना संभव नहीं होता। कभी लंबी चुप्पी का दौर होता है तो कभी बहुत अधिक बोलने का। व्यक्ति बहुत ही बेचैन हो सकता है या फिर एक ही स्थिति में स्थिर हो जाता है।

बुरा भला कहने या हमला करने की भी प्रवृति रहती है। साइज़ोफ्रेनिया के रोगियों द्वारा आत्महत्या करना बहुत आम नहीं है। ऐसी मानसिक गड़बड़ियों के शिकार लोगों को अक्सर परिवार के लोग अकेला छोड़ देते हैं। और ये लोग सड़कों पर भिखारियों जैसे घूमने को मजबूर हो जाते हैं। कई परिवारों में असहायता की स्थिति में स्किज़ोफ्रेनिया के रोगी को घरों में बंद या चेन से 24 धंटे बॉध कर रखते है। परन्तु आज के आधुनिक इलाज से बहुत ही विकट मामलों में भी गड़बड़ी को कम किया जा सकता है। स्किज़ोफ्रेनिया के बहुत से रोगियों (करीब 50 प्रतिशत) को जल्दी और उपयुक्त इलाज से फायदा होता है।

उदाहरण
  • सैबू गॉंव की सड़कों पर भटकता रहता है। हमेशा नंगा और अनाथ। अक्सर वो खाने की जगहों के आसपास भीख मांग रहा होता है। कभी कभी वो घंटों रोता रहता है और कभी कभी गलियों में ज़ोर ज़ोर से गाता और चिल्लाता रहता है। किसी को नहीं पता वो कहॉं से आया। उसके मॉं बाप कौन हैं। रात को वो खुली जगहों में ही सो जाता है। सैबू को त्याग दिया गया है और उसके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं है।
  • पार्वती पिछले 20 से 25 सालों से एक छोटे से शहर में रह रही है। वो घंटों बोलती और चिल्लाती रहती है। अगर गुस्से में हो तो किसी पर भी हमला कर देती है। उसको कपड़ों, खाने या मल मूत्र त्याग ने की भी समझ नहीं है। कभी कभी जब उस पर नियंत्रण करना मुश्किल होता है तो लोग उसके हाथ बांध देते हैं। जब से मैं उसे देख रहा हूँ, यानी कि पिछले 20 सालों से तब से उसमें कोई बदलाव नहीं आया है।
  • शंकर उस समय अपना मानसिक संतुलन खो बैठा जब उसके पड़ोसियों ने उसकी ज़मीन पर गलत तरीकों से कब्ज़ा कर लिया। तब से वो रो रहा है और चिल्ला चिल्ला कर अपनी ज़मीन वापस मांग रहा है। वो अक्सर अपना सिर ज़मीन पर मारता रहता है और अक्सर खुद को घायल भी कर लेता है। कभी कभी वो अपने परिवार की खोई हुई ज़मीन पर जा कर लेट जाता है और कई कई दिनों तक वहॉं ऐसे ही पड़ा रहता है जबतक कि उसे वहॉं से भगा नहीं दिया जाता। उसके परिवार वाले यानी कि उसकी पत्नी और बेटा इतने गरीब हैं कि वो उसे खिला पिला नहीं सकते और उसकी देखभाल नहीं कर सकते।

इलाज

इस बीमारी के लिये अब नये अच्छे इलाज उपलब्ध है। क्लोरप्रोमेझिन, हॅलोपेरिडॉल या ट्रायफ्लूपेरॅझीन इसमें से एक दवा दी जाती है। खर्चा ज्यादा नहीं होता। अगर गोली खाने से इन्कार करे तो खाने में मिलाकर प्रयोग कर सकते है। जरुरत पडे तब मासिक एक इंजेक्शन भी पर्यायरुप उपलब्ध है।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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