त्वचा के ज़ख्म और अन्य बीमारियाँ त्वचा और उसकी खुजलीवाली बीमारियाँ
फोड़ा (बॉईल)
boil
फोड़ा

त्वचा में पीप से भरे या शोथग्रस्त गॉंठ को फोड़ा कहते हैं। इसमें आमतौर पर त्वचा की ग्रंथियॉं प्रभावित होती है। पीप पैदा करने वाले बैक्टीरिया को पायोजेनिक बैक्टीरिया कहते हैं। कम पोषण और कमजोर प्रतिरक्षातंत्र के स्थिती में फोड़े अधिक होते है। मधुमेह (डायबेटिज) में भी अक्सर फोडे होते है।

चिकित्सीय लक्षण

शुरुआत में फोड़ा एक छोटे, दर्द करने वाले शोथग्रस्त क्षेत्र के रूप में उभरता है। अगर किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा क्षमता ठीक ठाक है तो यह इसी अवस्था में ठीक हो जाता है। परन्तु अक्सर यह पीप भरा बन जाता है जिसमें दर्द होता है। जब फोड़ा फूटने वाला होता है तो उसमें एक सफेद सा धब्बा उभर आता है। इसके अलावा भी अगर फोड़े पर सफेद, मुलायम सा हिस्सा दिखाई देने लगे तो इसका अर्थ है कि फोड़ा पक चुका है। पीप के साथ बुखार भी हो सकता है और बीमार होने की भावना भी।

फोड़ा जब पहली अवस्था में हो तो बेन्जाइल पेरॉक्साइड मल्हम लगाने से फायदा होता है।

ऐबसेस यानी अंदरुनी फोडा

चिकित्सीय भाषा में ऐबसेसिस पीप के इकट्ठा होने को कहते हैं। यह फोड़े की तुलना में त्वचा के ज़्यादा अन्दर होता है। ऐबसेस आसपास की त्वचा की तुलना में ज़्यादा गर्म, दुखारु और लाल होता है। यह उँगली से दबाया जा सकता है।

इलाज

पीप बनने की अवस्था से पहले एन्टीबैक्टीरियल और शोथ रोधी दवाओं से इलाज असरकारी हो सकता है। एक बार पीप बन जाएँ तो उसे निकालना ज़रूरी हो जाता है। फोड़ा उस स्थान से फूट जाता है जिस हिस्से की त्वचा ज़्यादा कमजोर होती है। ऐबसेस को दबाने से पीप बाहर निकल जाती है। ऐसा ३ से ४ दिनो तक करना पड़ता है, इसके बाद फोड़ा ठीक होने लगता है। ज़्यादातर गॉंव वाले इसके ईलाज के लिए घरेलू उपाय करते हैं। गेहूँ के आटे की गरम पटटी का इस्तेमाल किया जाता है। कुछ लोग गर्मपानी की पट्टी का इस्तेमाल भी फोड़े को जल्दी ठीक करने के लिए करते हैं। ये तरीके ठीक हैं।

चीरा लगाना व पीप निकालना

कुछ ऐबसेस में इससे ज़्यादा कुछ करने की ज़रूरत होती है। नाखूनों के अन्दर, स्तनों में, चूतड़ो पर या योनि में बारथेलिन ग्रंथि का फोड़ा कुछ उदाहरण है जिनमें चिकित्सीय सहायता की ज़रूरत होती है। ऐबसेस में चीरा लगाकर उसमें से पीप निकाल दी जानी चाहिए।

इसको उपर्युक्त संक्रमणरोधी तरीकों का इस्तेमाल करके ब्लेड से चीरा लगाया जाता हैं। चीरा लगाने के बाद दबाकर पीप निकाला जाता है। यह १६ नम्बर की इन्जैक्शन की सिरिन्ज से भी कर सकते हैं। इस में काफी दर्द होता है पर इससे ऐबसेस ठीक हो जाता है। अक्सर इस काम में मरीज को बेहोश करने की भी ज़रूरत होती है। बड़े और गहरे ऐबसेसिस का इलाज सर्जन द्वारा ही करवाया जाना चाहिए।

आर्युवेद

आयुर्वेद में गन्दा खून जोंक द्वारा चुसवाकर फोड़े का इलाज करवाया जाता है। पीप बनने से पहले की अवस्था में जोंक काफी उपयोगी होती हैं। जोंक गन्दे खून को चूस लेती है और इसमें किसी भी तरह की चोट नहीं लगती और न ही दर्द होता है। यह एक बहुत ही फायदेमन्द तरीका है।

शिवस्त्र (ल्यूकोडरमा)
leukoderma
शिवस्त्र (ल्यूकोडरमा)

शरीर पर सफेद धब्बे होने को ल्यूकोडरमा कहते हैं। ये धब्बे सफेद होते हैं क्योकि इनमें मेलेनिन नहीं होता। यह दोष आनुवॉंशिक कारणों से हो सकता है। यह ज़्यादातर उन्नीस साल तक की उम्र में या कभी-कभी बीस से तीस साल की उम्र में उभर सकता है। और या तो धब्बों तक ही सीमित रह सकता है या फिर फैल भी सकता है। इसमें स्वास्थ्य को किसी तरह की कोई मुश्किल नहीं होती। परन्तु अगर धब्बे शरीर के दिखाई देने वाले भागों में हो तो व्यक्ति मन में दु:खी होता है। ऐसे व्यक्ती को लोग यह सोच कर ठुकराते है की यह कुष्ठ रोग है| मगर यह बिल्कुल गलत फहमी है|

इलाज

शुरुआती स्थिती में स्टीराइड मल्हम लगाने से कई लोगों में यह ठीक हो जाता है| अधिक क्षेत्र पर धब्बे होने से सोरालेन मल्हम और गोली से इलाज किया जा सकता है| हाल ही मे अल्ट्रावायलेट किरणों के जरिए इलाज किया जा रहा है। इन धब्बों में अल्ट्राव्हायोलेट किरणे मेलेनिन बना देती है। करीब ६० से ७० प्रतिशत मामलों में यह इलाज सफल रहा है ऐसा बताया जा रहा है।

कुछ मामलों में आयुर्वेद का इलाज सफल रहता है और उपचार का मुख्य तरीका है भेला/भिलावा (ऐनाकारडियम) द्वारा मेलेनिन बनाने की कोशिश करना। ल्यूकोडरमा के रोगी मानसिक रूप से परेशान हो जाते हैं। उन्हें नकली इलाज करने वाले यह कह कर बहकाते रहते हैं कि वो उन्हें पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं। हमें रोगियों की सहायता उन्हें उनकी हालत के बारे में सही जानकारी देकर करनी चाहिए।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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