अंडे में सफेद भाग प्रथिन होता है तो पीला भाग याने जरदी वसा होती है |
प्रोटीन शरीर के बहुत महत्वपूर्ण अंश होते हैं। जैसे कि कार, साइकल आदि साधन स्टील व प्लास्टिक से बना होता है, वैसे ही हमारा शरीर मुख्यत: प्रोटीनसे बना होता है। ये हमारे शरीर की ईटों के समान हैं।
प्रोटीन असल में अमीनो अम्ल की कड़ियॉं होते हैं। ये कार्बन, ऑक्सीजन, और नाईट्रोजन से बने होते हैं। हमारा शरीर प्रोटीन के कई अमीनो अम्ल नहीं बना सकता, इसलिए यह ज़रूरी है कि ये हमारे आहार का हिस्सा हों।
प्रोटीन हमारे शरीर की कोशिकाओं व ऊतकों को बचाते हैं व उनकी मरम्मत करते हैं। अलग-अलग तरह के अमीनो एसिड अलग-अलग तरह के प्रोटीन बनाते हैं। आम तौर पर वनस्पती से मिलने वाले प्रोटीन, दूध अंडे या समिष प्रोटीन की तुलना में निम्नस्तर होते है। आम तौर पर हर समाज अपना आहार कुछ इस तरह से तय करते हैं कि उसमें वनस्पती स्रोत के अलग-अलग प्रोटीन या प्राणिजन्य प्रोटीन को मिला कर कुल ज़रूरत पूरी हो जाती है। पेशियॉं, बाल और नाखून प्रोटीन के सबसे स्पष्ट उदाहरण हैं। मॉंस पेशियॉ तो असल में प्रोटीन के रेशे ही होते हैं, जो फैल और सिकुड़ सकते हैं। कोशिकाओं और शरीर के द्रवों में भी प्रोटीन पाए जाते हैं। प्रोटीनही एन्ज़ाइम बनाते हैं जो कि शरीर के आजार होते हैं। ये आजार बहुत से काम करते हैं, जैसे पाचन या ऑक्सीजन ले जाने का काम। एन्टीबोडिज़ के रूप में प्रोटीन रोगों के जीवाणुओं को मारने का काम भी करते हैं। प्रतिरक्षी (एन्टीजन) जैसे सॉंप का ज़हर भी प्रोटीन से बने होते हैं।
हमारे शरीर को कितने प्रोटीन की ज़रूरत है यह हमारी उम्र, लिंग और वजन पर निर्भ्रर करता है। जन्म से लेकर किशोरावस्था तक शरीरका विकास और बढन्त होती है। इस चरण में शरीर के प्रति किलो वजन के लिए दो ग्राम प्रोटीन की ज़रूरत होती है। उसके बाद बीस साल की उम्र तक प्रति किलो १.५ ग्राम प्रोटीन की ज़रूरत होती है। वयस्को में शरीर के प्रति किलो वजन के लिए केवल एक ग्राम प्रोटीन की ज़रूरत होती है क्योंकि इस समय प्रोटीन केवल टूट फूट की या किसी गम्भीर नुकसान की मरम्मत के लिए चाहिए होता है। परन्तु गर्भवती महिलाओं को प्रति किलो वजन के लिए १.५ ग्राम प्रोटीन की ज़रूरत होती है। प्रोटीन के फायदे बताने के लिए हमारे पास दो नाप हैं। जैविक- असरकारिता का प्रतिशत (टेबल)
आहार तत्वोंकी प्रोटीन मात्रा गुणवत्ता
बतख जैसे घरेलू पंछी हमारे लिये प्रथिन का अच्छा और सस्ता स्त्रोत है |
कुछ तरह के प्रोटीन शरीर ज़्यादा अच्छी तरह से समा सकता है और कुछ कम। अगर किसी पदार्थ का सारा प्रोटीन शरीर अपने अन्दर समा सके या पूर्ण प्रोटीन माना जाता है। उदाहरण के लिए शरीर दूध का प्रोटीन अपने अन्दर समा सकता है। इसके विपरित मूँगफली से मिलने वाला प्रोटीन केवल कुछ अंश शरीरमें समाना है। इसलिए दूध का प्रोटीन, मूँगफली प्रोटीन से बेहतर प्रोटीन है। अंडे का प्रोटीन सबसे ज्यादा गुणवत्ता का माना जाता है, यह करीब करीब १००% समा जाता है|
कुछ प्रोटीन वजन बढ़ाने के लिए ज़्यादा असरकारी होते हैं और कुछ कम। इसे उनके जैविक रूप से असरकारी होने का सूचक माना जाता है। जैविक असरकारिता प्रतिशत में दर्शाई जाती है। इसका अर्थ है प्रति ग्राम प्रोटीन से, वजन में वृद्धि का प्रतिशत। साथ में दी गई तालिका जैविक असरकारिता और जैविक गुणवत्ता को दर्शाती है।
उन प्रोटीन को ज़्यादा प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जो कि जिनकी जैविक गुणकारिता बेहतर हो। बच्चे के आहार में ऐसे प्रोटीन हो जिनकी जैविक असरकारिता बेहतर हो।
विटामिन व खनिज बहुत ही छोटी-छोटी मात्रा में ज़रुरत होते हैं। परन्तु शरीर में इनकी कमी से गम्भीर रोग या गड़बड़ियॉं पैदा होते है।
विटामिन छ: प्रकार के होते हैं- ए, बी, सी, डी, ई और के। इनका वर्गीकरण ऐसे किया जाता है- पानी में घुलनशील विटामिन (बी और सी) और वसा में घुलनशील विटामिन (ए, डी, ई, के)। विटामिन बी के बी १, बी २ बी-६ और बी १२ प्रकार है। पानी में घुलनशील विटामिन शरीर में टिकते नहीं हैं और पेशाब के साथ बाहर निकल जाते हैं। दूसरी तरफ वसा में घुलनशील विटामिन कई महीनों तक शरीर की वसा में सुरक्षित रह सकते हैं। वसा में घुलनशील विटामिनों के बहुत अधिक मात्रा में सेवन से विषाक्तता हो सकती है। जैसे असम में एक बार बच्चों को हुआ था।
लोहा, कैलशियम, आयोडीन, फोसफोरस, पोटाशियम, जिंक, कॉपर और मैगनीशियम सभी शरीर में बहुत ही कम मात्रा में होते हैं। परन्तु इनकी, खासकर लोहे, कैलशियम और आयोडीन की कमी से, गम्भीर गड़बड़ियॉं हो सकती हैं। (जैसे क्रमश: खून की कमी, यानि अनीमिया, रिकेट्स और घेंघा रोग)।
सभी फलों और सब्ज़ियों में रेशे होते हैं- जैसे कि सेब के छिलके में, पालक में, सभी अनाजों और मोटे अनाजों की ऊपरी सतह में। आहार में रेशेदार पदार्थ का होना ज़रूरी है क्योंकि इसे टट्टी बनने में मदद मिलती है।
संतुलित आहारमें ५०-६०% उर्जा ‘मंड’ (याने कार्बोहायड्रेट) १०-०१५% प्रोटीनों से और २०-३०% (प्रकट या छिपे) वसा पदार्थोंसे आना चाहिये| इस सूत्र से लगभग सभी आवश्यक पू तत्वोंकी अपूर्ती हो जाती है। कार्बोहाईड्रेट, वसा, प्रोटीन, खनिज, विटामिन और रेशे हर दिन के आहार का हिस्सा होने चाहिए। प्रत्येक भोजन में क्यों न हो लेकिन १-२ दिन का भोजन मिलकर तो संतुलन बनना जरुरी है। कई हफ्तों इनके असन्तुलन से नुकसान हो सकते हैं। गरीब लोगों के खाने में सब्ज़ियों, फलों और वसा की कमी होती है। इन परिस्थितियों में अन्य खाने जिनसे उसी तरह की ज़रूरत पूरी हो सकती है, भोजन में शामिल किए जा सकते हैं। जैसे कि मूँगफली या मॉंसाहारी खाने की जगह (जो कि कुछ क्षेत्रों में महॅंगे हो सकते हैं), सस्ते प्रोटीन जैसे दालें सोयाबीन या अनाज इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
उर्जा | ६०% |
वसा | २५% |
प्रोटीन | १५% |
आहार की योजना बनाते समय, समाज की संस्कृति का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। यह स्वाभाविक ही है कि समुद्री खाना तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के भोजन का अभिन्न हिस्सा होगा। शहरों में रहने वाले लोग अन्य लोगों की तुलना में ज़्यादा प्रक्रियागत शुद्ध खाना खाते हैं। समुदायों के परम्परागत आहार की अहमियन जानना ज़रूरी है क्योंकि वह उपलब्धता, मौसम और अनुकूलता के हिसाब से तय हुआ होता है। शाकाहारी और मांसाहारी दोनों ही आहार इस तरह से तय किए जाने चाहिए कि उनमें सभी ज़रूरी तत्व ठीक मात्रा में मौजूद हों।
खाने की कुछ चीज़ें साल भर नहीं मिलतीं। इन चीज़ों को बचाकर रखने के लिए सुखाना, नमक लगाकर रखना और चीनी का इस्तेमाल आदि तरीके हैं। धूप व गर्मी से कुछ विटामिन की क्षति हो जाती हैं। अंकुरित करने या खमीर उठाने से विटामिन बी बनता है। विकासशील देशों में नदियों और समुद्रों के ज़्यादातर तट प्रदूषित होते हैं, इसलिए इनसे मिलने वाली खाने की चीज़ों से संक्रमण संभव है। बहुत ज़्यादा गोश्त, मटन खाने से दिल की बीमारियॉं हो सकती हैं।
कुछ एक भोज्य पदार्थों में सभी ज़रूरी तत्व जैसे विटामिन, कार्बोहाईड्रेट, वसा, प्रोटीन और खनिज अलग-अलग मात्रा में उपस्थित होते हैं। जैसे कि चावल में कार्बोहाईड्रेट, प्रोटीन, विटामिन और कुछ खनिज होते हैं। मीट या मटन में प्रोटीन, वसा, विटामिन, लोहा और कैलशियम होते हैं। इसी तरह दूध में प्रोटीन, वसा, खनिज, विटामिन और शुगर (लैक्टोज़) होते हैं। इसलिए खाने को कई चीज़ों के मिश्रण के रूप में देखे न कि अलग-अलग तत्वों के रूप में।