मूत्र तंत्र की बीमारियॉं त्वचा, पाचन तंत्र या श्वसन तंत्र की तुलना में कम होती है। परन्तु ये अक्सर काफी गम्भीर होती हैं। इन बीमारियों में हमें जल्दी ही कुछ इलाज करने की ज़रूरत होती है नहीं तो इनसे बहुत गम्भीर नुकसान हो जाते हैं। ऐसा एक उदाहरण है, दिन व दिन की पेशाब की मात्रा में कमी होना। अक्सर व्यक्तियों या परिवार को इसके बारे में देरी से पता चलता है। इसी तरह से मूत्रतंत्र में पथरी होने से इसमें चिरकारी अवरोध हो जाता है। इससे गुर्दो को कुछ समय बाद नुकसान हो जाता है। इसलिये मूत्रतंत्र की बीमारियों में तुरन्त इलाज की ज़रूरत होती है। इस अध्याय में हम मूत्र तंत्र की बीमारियों के बारे में आवश्यक जानकारी लेंगे।
पुरुष मूत्र तंत्र बाये ओर से |
गुर्दे, मूत्रवाहिनियॉं, मूत्रमार्ग और मूत्राशय सब मूत्रतंत्र के अंग हैं। शरीर के अन्दर दो गुर्दे रीढ के दोनो तरफ पेशियों के ऊपर स्थित होते है। दोनो गुर्दों से एक-एक मूत्रवाहिनियॉं निकलकर मूत्राशय में पहुँचती हैं। इनसे मूत्राशय में पेशाब इकट्ठा होता है। मूत्राशय पेशियों की एक थैली होती है। यह श्रोणी में सुरक्षित होती है। कुछ तन्त्रिका मूत्राशय को नियंत्रित करती है जिससे पेशाब जब चाहो तब ही बाहर आता है।
मूत्राशय तक पुरूष और महिला का मूत्रतंत्र एक जैसा होता है। मूत्राशय से आगे स्त्री-पुरूषों में थोड़ा सा फर्क होता है। खासकर मूत्रमार्ग की लम्बाई में। पुरूषों की मूत्रमार्ग की लम्बाई करीब बीस सेन्टीमीटर और महिलाओं के मूत्रमार्ग की लम्बाई करीब ४ से ५ सेंटीमीटर होती है। इसलिए पुरूषों में मूत्रनली का कॅथेटर लगाने में महिलाओं की तुलना में ज़्यादा मुश्किल होती है। पुरूषों में मूत्रमार्ग पुरस्थ (प्रोस्टेट) और लिंग में से होकर गुजरता है। औरतों में यह योनि के सामने छोटा सा रास्ता लेकर योनिद्वार के ऊपरी कोने में भगशिश्निका (क्लायटोरिस) के पास खुलता है।
गुर्दों से लेकर मूत्रमार्ग तक पूरे मूत्रतंत्र की संरचना चित्र में देखिए। इससे आपको मूत्रतंत्र की बीमारियों की जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी। खासकर तब जबकि दर्द किसी खास जगह पर हो ध्यान रखें कि गुर्दों का दर्द पेट में आगे न होकर पीठ में होता है। जब मूत्रवाहिनी किसी पथरी को निचोड़कर निकालने की कोशिश करती है पेट में जोर का दर्द होता है इसलिए मूत्रतंत्र की बीमारियों का निदान बहुत मुश्किल नहीं होता है। परन्तु इनके इलाज में काफी मुश्किलें होती हैं।
गुर्दों का प्रमुख काम गुर्दों में बह रहे खून से पेशाब बनाना होता है। खून में जो अनचाहे पदार्थ होते हैं जिन्हें शरीर से बाहर निकाला जाना ज़रूरी होता है। इनमें से कुछ पदार्थ गुर्दें द्वारा पेशाब में पहुँचते हैं। अन्य अंग जो खून में से फालतू पदार्थ बाहर फेकतें हैं वो हैं फेफड़े, आते और त्वचा।
शरीर गुर्दे का छानने के साधन हैं। इनमें खास तरह की सूक्ष्म छन्नियॉं होती हैं जिन्हे नलिकाएँ कहते है। इन नलिकाओं के पास खून की सूक्ष्म नलियों (केशिकाओं) का जाल होता है ठीक वैसे ही जैसे कि फेफड़ो में होता है। इस तरह दोनों के पास-पास होने से इनमें (सूक्ष्म छन्नियों और केशिकाओं) से पदार्थ का निकास होता है। यूरिया (बिलिरूबिन का आखरी उत्पाद), लवण और पानी इन सूक्ष्म छन्नियों में चले जाते हैं।
इन सूक्ष्म छन्नियों का हमारे शरीर के रासायनिक गठन से पूरा तालमेल होता है। ये छने हुए द्रवों में से गुर्दा कुछ खनिज निकालता है। गुर्दो में इकट्ठा होने वाला द्रव पेशाब होता है। छानने की यह प्रक्रिया लगातार जारी रहती है। शरीर का यह महत्वपूर्ण काम है। अगर गुर्दे ये चीज़ें हर दिन बाहर न फेंक पाए तो इससे जान को ही खतरा हो सकता है।
दस्त से होने वाले निर्जलन (शरीर सूखना) से गुर्दों को आघात हो सकता है। अगर शरीर में पेशाब बनने के लिए पर्याप्त पानी न हो तो २४ घण्टों के अन्दर गुर्दे बन्द हो सकते हैं। इसी कारण से निर्जलन होने पर मुंह से पानी की कमी पूरा करना इतना ज़रूरी होता है। लैसिक्स जैसी कुछ दवाएँ कम संचरण वश बंद हुए गुर्दों को खोल सकती है। पर यह दवा तभी काम कर सकती है जबकि शरीर में पर्याप्त पानी हो। निर्जलन के अलावा गुर्दों के फेल होने के और भी कई कारण होते है। दिल और लीवर की तुलना में गुर्दों के मामलें में केवल एक ही फायदा होता है। फायदा ये है कि गुर्दा एक नहीं बल्कि दो होते हैं । इसलिए अगर एक पूरी तरह से खराब हो जाये तो भी दूसरा पहले का भी काम सम्भाल सकता है। इसलिए कोई व्यक्ति एक गुर्दा दान देने के बाद भी वैसे ही जीवित रह सकता है।