इस बीमारी मे गालों और जीभ पर असर होता है। यह सुपारी, पान मसाला, गुटका या बहुत अधिक मसाले दार खाना खाने से जुड़ी है। मुँह के श्लेष्मा के नीचे वाले उतकों पर इसका असर होता है। मुलायम उतकों की जगह सख्त रेशेदार ऊतक बन जाते हैं।
सबसे पहले एक सफेद सा घाव सख्त छल्ला जैसा उभरता है। इसे हम हाथ से महसूस कर सकते है। जीभ पर फाईब्रोसिस के कारण संगमरमर जैसे सख्त दाग उभरते है।
बिमारी को विकसित होने में महीने या साल लग जाते हैं। रोगी को इसका पता तब तक नहीं चलता जब तक कि यह काफी बढ़ नहीं चुकी होती। एक और लक्षण है दर्द के कारण मसालेदार खाना बिल्कुल ही न खा पाना। मुख्य समस्या है मुँह खोलने में आनेवाली दिक्कत की। मुँह खोलना मुश्किल और दर्दनाक होता है।
दवाइयों व भौतिक चिकित्सा (फिजियो थैरेपी) से मदद मिलती है। बीटा कैरोटिन की एक गोली रोज़ दिन में एक बार छ: महीनों के लिए दें। दाँतों के डाक्टर घाव के स्थान पर गर्भनाल के सत्त का इन्जैक्शन भी देते हैं। फिसियो थैरेपी में लकड़ी के एक मुलायम टुकड़े से धीरे धीरे मुँह को खोला जाता है। इसे रोज़ मुँह में डालें और १५ – २० मिनट वहीं रखें। ऐसा दिन में दो तीन बार करें जबतक कि मुँह ठीक से खुलना शुरु न हो जाए। हर रोज़ लकड़ी को थोड़ा थोड़ा और अंदर धकेलें।
गुटखा दॉंत और मुँह को हानीकारक है |
यह अच्छी बात है कि पान मसाला खाने के खतरों के बारे में आज काफी जागरूकता है। जिन्हें इनकी लत है उनके द्वारा इस पर ढ़ेर सारा पैसा होकर बरबाद और मुँह की खतरनाक बीमारियों के मोल लेना पडता है। हाल ही में गुटका बनाने वालों ने मान लिया है कि वो इसके बारे में जानकारी फैलाने का खर्चा उठाएंगे और इसे स्कूलों के पास नहीं बेचेंगे। कुछ शहरों में पान वालों ने खुद ही कुछ खतरनाक ब्रैंड न बेचने का निर्णय किया है। लेकिन पूरी पाबंदी का कानून बने भी तो अवैध धंदा होता ही है।
जबड़े की हड्डी की चोट में हड्डी में फ्रैक्चर हो सकता है। या फिर इससे दाँत टूट भी सकते हैं। दर्द, खून निकलना, मसूड़ों की लाईन में गड़बड़ी और जबड़े को हिलाने व बंद करने में मुश्किल होना इसके मुख्य लक्षण हैं। निदान मुश्किल नहीं है। पर इसके इलाज के लिए विशेषज्ञ की य ज़रूरी है। इस फ्रैक्चर को या तो स्क्रू और प्लेट लगाकर बांधते है या दोनो जबडे वायरिंग से बांधकर ६-८ हप्ते मुँह बंद रखना पडता है
इसके लिए आपको जीभ को नीचे करने वाला उपकरण (चम्मच से भी काम हो सकता है), दाँत देखने वाला शीशा और जांच के लिए एक उपकरण चाहिए। रोशनी का एक अच्छा सा साधन भी चाहिए। नीचे दिए हुई बातों पर ध्यान दीजिए-
मसुडों का स्वास्थ्य मुँह और दॉंत के स्वास्थ्य के लिए बिलकुल जरुरी है |
दाँतों का स्वास्थ्य डीएमएफ संख्या द्वारा नापा जा सकता है। यहॉं “डी” अंग्रेज़ी के डिकेड के लिए है जिसका अर्थ होता है सड़े हुए। इसी तरह ‘एम’ मिसिंग के लिए है जिसका अर्थ है गायब। और “एफ” फिल्ड के लिए है जिसका अर्थ है छेद भरे हुए दाँत। यह गणना दूध के दाँतों व स्थाई दाँतों दोनों के लिए होती है और फिर संख्या को डीएमएफटी कहा जाता है।
डीएमएफ गणना दाँतों की सामुदायिक स्तर पर दाँतों की स्वच्छता का प्रतीक होता है। यह कई सारे कारकों पर निर्भर करता है जैसे कि चीनी की खपत, दाँतों की बीमारियों के प्रति आनुवांशिक पूर्व वृति, दाँत साफ करने की आदत और पीने के पानी में फ्लोराइड की मात्रा। ज्यादा डीएमएफ निर्देशांक जादा नुकसान दिखाता है।