यह पद्धती विलब्मित माहवारी के लिए इलाज है| चाहे वह गर्भ ठहरने से विलंबित हुआ हो या और किसी कारण से, यह गोलियों से या शल्य पद्धती से किया जा सकता है| निर्वात पंप द्वारा एम.आर करना सरल और सुरक्षित तरीका है| इसे प्लॅस्टिक की नली और हाथ से चलाया गया पंप से किया जाता है| इसके लिए महिला को बेहोश करने की जरुरत नही होती|आखरी माहवारी से गिनकर ४२वी और ४९ वी दिन (६-७ सप्ताह) के बीच एम.आर. कराना सबसे सुरक्षित होता है|
एम. आर. में प्रयोग किए जाने वाले औजार सस्ते और आसानी से रखे जानेवाले होते है| इनके प्रयोग के लिए बिजली सप्लै की जरुरत नही होती है| खतरा कम रहता है| बेहोश करने की दवाएँ एवं माीन की जरुरत नही पडती| जरुरत सामान सभी भारत में ही तैयार होते है और बाजार में उपलब्ध है| यह बाह्य विभाग में किया जा सकता है| एम. आर. करने में दो मिनट लगते है और महिला आधे घंटे के बाद घर जा सकती है| उसे भर्ती होने की जरुरत नही है| फिर भी कोई दुर्घटना या तकलीप के लिए कहॉं और कैसे रेफर करे, इसे पहले से सुनिश्चित करे| क्योंकी एम.आर. के पहले पेशाब जॉंच से गर्भ का ठहरना पता नही किया जाता| कभी कभी ऐसा होता है की गर्भ के ठहरे बिना ही महिला एम.आर. करवाती है| इसलिए इसे करने से पहले माहवारी का देर होने के निम्नलिखित कारण पुछे –
महिला को एम.आर. के खतरे और विपरित असर के बारे में समझाएँ (संक्रमण गर्भ बना रहना या फैलोपियन नली में गर्भ ठहरना) महिला एम. आर. के दो और चार सप्ताह बाद जॉंच कराने आए ताकि गर्भ ठहरा है या नहीं, कोई संक्रमण है या नहीं इसका पता लग सके| एम. आर के बाद गर्भनिरोधक विधी को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करे| स्त्री रोग विशेषज्ञ से अलावा कोई भी डॉक्टर, नर्स या प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मी एम. आर. कर सकता है|
खतरा यह है की गर्भ बने रहता है इसके अलावा बच्चेदानी का मुँह में चोट लगना, संक्रमण होना, बी.पी. कम होना और अधिक दिनों तक खून बहना (५ दिन से अधिक) जिसके कारण क्युरेटिंग करना पड सकता है| मगर बाद में गर्भपात कराने के तुलना में एम.आर. से यह खतरे होने की संभावना काफी कम होती है| एम.आर. हमारे देश में अभी परिवार नियोजन विदियों में नहीं उपयोग हो रहा है, लेकिन कई जगहों में इसका उपयोग सफलता पूर्वक किया गया है|
महिलाओं के लिए मुँह से ली जाने वाली कई सारी अलग अलग गर्भनिरोधक दवाओं को पिल या ओरल पिल कहा जाता है। इन दवाओं में कृत्रिम ऐस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रोन हारमोन होते हैं। इसे रोज़ दिए जाने से प्राकृतिक हारमोनों का बनना कम हो जाता है। इससे प्राकृतिक चक्र की जगह एक कृत्रिम चक्र शुरु हो जाता है जिसमें अंडोत्सर्ग नहीं होता।
मुँह से ली जाने वाली गर्भनिरोधक दवाएं २८ गोलियों के पैकेट में आती हैं। सिर्फ पहली २१ में हारमोन होते हैं। बाद की ७ गोलियों में आयरन (लोहा) और फोलिक एसिड होते हैं। इसलिए ये ७ दिन हारमोन रहित होते हैं। इससे गर्भाशय से रक्त स्त्राव शुरु हो जाता है। क्योंकि ज़्यादातर महिलाओं में खून की कमी होती हैं, आयरन और फोलिक एसिड दिया जाना अच्छा रहता है।
गोलियॉं मासिक चक्र के पॉंचवे दिन से शुरु करें और पैकेट खतम होने तक जारी रखें। अगर नियमित रूप से गोलियॉं ली जाएं तो गर्भ रोकने के लिए यह तरीका १०० प्रतिशत प्रभावशाली है।अगर कोई महिला एक दिन गोली लेना भूल जाती है तो उसे अगले दिन दो गोली ले लेनी चाहिए। पर कभी भी दो दिनों से ज़्यादा गोली लेना भूलना नहीं चाहिए। अगर ऐसा हो जाए तो माहवारी होने दें और फिर नया पैक शुरु करें। तब तक संबंध के समय निरोध का उपयोग करे।
गोलियों के अपने खतरे और प्रतिकूल असर होते हैं। इनमें से किसी भी हालत में गोलियॉं इस्तेमाल न करें, जैसे-
इसलिए किसी भी महिला को गर्भनिरोधक गोली देने से पहले उसकी पूरी जांच ज़रूरी है। बहुत से डॉक्टर और स्वास्थ्य कार्यकर्ता किसी महिला को दवा शुरु करवाने से पहले सामान्य जांच भी नहीं करते। यह ठिक नही।
सही ढंग से जांच करने और चुनाव करने के बावजूद कई महिलाओं को मुँह से ली जाने वाली पिल से प्रतिकूल असर हो जाते हैं। इसमें मितली, सिर में दर्द, छाती में भारीपन, माहवारी में कम या ज़्यादा बहाव, यौनिच्छा में कमी और दूध बनने में कमी जैसी शिकायतें हो सकती हैं। कभी कभी किसी और ब्रैंड की पिल और साथ में ट्राईफेसिक हारमोन की हल्की खुराक देने से आराम मिल जाता है। यह भी ध्यान रखना चाहिए की ये गोलियॉं लगातार लेते रहने के लिए नहीं होतीं। क्योंकि शरीर को इस तरह की बाहरी प्रक्रिया से छुटकारा और कुदरती हारमोन प्रक्रिया की बहाली की ज़रूरत होती है। हर साल कम से कम एक मासिक चक्र के लिए गोलियॉं नहीं लेनी चाहिए और किसी और गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करना चाहिए। भारत के मुँह से ली जाने वाली ये गोलियॉं खास प्रचलित नहीं हैं। (खासकर ग्रामीण इलाकों में) इसलिए यहॉं लंबे समय के लिए असर करने वाले और कम परेशानी पैदा करने वाले तरीकों की मांग है।
भारत में परिवार कल्याण कार्यक्रम में इन्जैक्शन (नैट – एन और डेपो प्रोवेरा) और त्वचा के नीचे लगाने वाले दवा (नॉरप्लांट) को प्रोत्साहन दे रहा है। परन्तु अभी तक यह पता नहीं है कि ये क्या पूरी तरह से सुरक्षित हैं। इनके ज़्यादातर विपरीत संकेत और साथ में होने वाले प्रतिकूल असर मुँह से लेने वाले हारमोन गर्भनिरोधकों जैसे ही होते हैं। इसके अलावा माहवारी के समय बहुत अधिक खून बहने की भी समस्या होती है।
यह लंबे समय के लिए असरदार हारमोन वाले तरीके, गोलियों जैसे मासिक चक्र को नियंत्रित और नियमित नहीं करते हैं। पारंपरिक ग्रामीण परिवेश में मासिक चक्र ज़िंदगी के अन्य पहलुओं से जुड़ा होता है। मासिक चक्र में किसी भी तरह की गड़बड़ी से महिला को काफी समस्याएं और तनाव झेलना पड़ता है। ये तरीके आसानी से वापस उल्टे भी नहीं जाते। इनका असर कम होने में दो से तीन महीने तक लगते हैं। इसलिए यह कोई हैरानी की बात नहीं है कि चिकित्सीय परीक्षणों में कई महिलाएं दूसरे इन्जैक्शन के लिए वापस ही नहीं आतीं। पॉंच से सात साल तक लगे होने से रोप के गंभीर बुरे असर होते हैं। पर इनके बारे में अभी तक भी ठीक से पता नहीं है।
मान लिजिये की बीती रातमें यौन संबंध हुआ है लेकिन गर्भ निरोधक तरीका न अपनाया हो| इस हालत में सुबह या चोबीस घंटोंमे यह गोली ले ले| अगर डिंब का निषेचन भी हुआ है तब भी इसके प्रभाव से गर्भाशयमें वह टिक नहीं सकता|
वैज्ञानिक ऐसा प्रजनन विरोधी टीका बनाने की कोशिश में हैं जो एक बार में एक साल तक असर कारी रहेगा। यह उसी तरह से काम करता है जैसे कि कोई वैक्सीन किसी बीमारी के खिलाफ काम करती है। प्रजनन विरोधी टीका शुक्राणुओं के ऊपर असर करता है। इस तरीके को लेकर भी कुछ सवाल हैं क्योकि इसमें महत्वपूर्ण और नाज़ुक प्रतिरक्षा तंत्र के साथ छेड़छाड़ की जाती है। इसमें भी यह पता नहीं रहता कि प्रजनन क्षमता कब वापस आएगी। इस तरीके पर शोध अभी जारी है।