blood-lymph रक्त-लसिका
लसिका तंत्र की बीमारियाँ

लसिकाग्रंथी – लसिकातंत्र

शरीर में विस्तृत फैला लसिका तंत्र का जाल

लसिका तंत्र की कल्पना एक ज़मीन के नीचे स्थित पानी की निकासी की व्यवस्था जैसा होता है। शरीर के अन्य तंत्रों में से टूटे फूटे कोशिका व उतक अवशेषों और उपयोगी व अनुउपयोगी बडे आकार के उत्पादों जो वाहिकाओं से नही निकल पाते है उनको को यह इकट्ठा करता है। इसकी अपनी नलीकाओं की तंत्रप्रणाली होती है जो रक्त शिराओ के साथ साथ रहती है इस तरह पंरे शरीर में तीन धमनी, धमनी,शिरा और लसीका वाहिकाऍ’ साथ साथ हमेशा रहती है और शरीर में तरल पदार्थ को इकठा नही होने देते । आखिर में इन नलीकाऍ का सारा लसिका एक बड़ी शिरा में पहुँचा दिया जाता है जिसे महाशिरा कहते हैं। यह दिल की दाईं तरफ के ऊपरी कोष्ठ में पहुँचती है। इस तरह से रक्त शिराओं में खून की मात्रा का आयतन लगभग एक जितना बना रहता है। अगर लसिका तंत्र न होता तो हद्धय से रक्त पंप कर देने के बाद उसका आयतन कम हो जाता।

लसिका तंत्र सुरक्षा देने का भी कार्य करतें है। लसिका ग्रंथियाँ ( लसीका पर्व), जो कि असल में लसिका ऊतकों के गट्ठर होती हैं, शरीर में खास खास स्थानों पर होती हैं। इन जगहों पर ये ग्रंथियाँ रोग पैदा करने वाले जीवाणुओं और कैंसर कोशिकाओं को सभी तंत्रो के संचरण में घुसने से रोकने का काम करती हैं। शरीर के दोनों ओर तीन लसिका ग्रंथियाँ (पर्व)होती हैं। ये बगलों, गले और जांघों में स्थित होती हैं। शरीर के अंदर फेफड़ों, आहार नली और जनन अंगों में और भी लसिका ग्रंथियाँ होती हैं। ये भी वो जगहें हैं जिनमें जीवाणु घुस सकते हैं। इस तरह से शरीर के सभी संभव दरवाज़ों पर पहरेदारों की तरह लसिका ग्रंथियाँ मौजूद होती हैं।

लसिका ग्रंथियों में सूजन

हम आम तौर पर लसिका पर्व की गांठों को केवल तभी महसूस कर सकते हैं जब उनमें शोथ (इंफलेमेशन) या कैंसर से ग्रसीत होती हैं। सूजी हुई लसिका पर्व को को बद या गिल्टी कहते हैं। अलग अलग तरह की बीमारियों में अलग अलग तरह की गिल्टियाँ और अलग अलग स्थान की लसीका पर्व प्रभावीत हो जाती हैं:

  • मवाद पैदा करने वाले बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण लसीका पर्व व लसीका ग्रंथीयों में बहुत दर्द लालपन और प्रभावित स्थान पर त्वचा को छुने पर गर्म अहसास और गिल्टियाँ हो जाती हैं, जिनमें दबाने से दर्द होता है।
  • सिफलिस ( यौन संक्रमण रोग) बैक्टीरिया से लसिका पर्व व ग्रंथियाँ रबर जैसी हो जाती हैं। इनमें दर्द नहीं होता और ये चिरकारी होती हैं। यौन रोगों के कारण हुई गिल्टियाँ बैक्टीरिया या क्लैमैडिया से होती हैं।
  • तपेदिक (टी,बी) रोग में रबर जैसी सख्त और उलझी हुई गिल्टियाँ होती हैं।
  • कैंसर से हुई गिल्टियाँ पत्थर जैसी सख्त होती हैं।
  • एलर्जी से हुए प्रज्वलन से गिल्टियाँ नहीं होतीं।

पीप जनक (मवादीत) संक्रमण के कारण बनी गिल्टियाँ
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पैर में संक्रमण और वंक्षण में गिल्टियाँ

आम तौर पर यह हाथों, पैरों और मुँह में संक्रमण में बनती हैं। इनकी शुरुआत व्यक्ति को लगी चोट, अल्सर या छाले में रोगाणु के संक्रमण के बाद मवाद बनने से होती है। गिल्टियों में दर्द, सूजन और लाली हो जाती है। गंभीर स्थिति में रोगी को बुखार की शिकायत हो सकती है। अक्सर शुरु में लगा घाव बहुत साधारण सा हो सकता है और उससे कारण प्रभावित लसीका पर्व की बनी गिल्टी काफी बड़ी हो सकती है। यह पूरी तरह ठीक हो सकती है। कभी कभी संक्रमण से पीप बन सकता है। जब भी आप को कोई शरीर पर इस तरह की गिल्टी दिखाई दे तो उस गिलटी के रसाव क्षेत्र में शुरुआती घाव ढ़ूंढने की कोशिश करें। हो सकता है कि रोगी ने शुरु में लगी घाव पर ध्यान ही न दिया हो। ऐसा यौन संक्रमण रोगोंयो में अक्सर पाया गया है।

इलाज की शुरुआत संक्रमण के इलाज से करें। आमतौर पर जीवाणु नाशक (एंटीबायोटिक) और प्रति शोथ (एंटीइनफंलेमेट्री ) दवाओं से फायदा होता है। त्वचा की संक्रमण में जिसमें गिल्टी बन गई हो तो, ऐस्परीन के साथ कोट्रीइमोक्साज़ोल या डोक्सीसाइक्लीन या ऐमोक्सीस्लीन देने से फायदा होता है।

यौन रोगों के कारण बनी गिल्टियाँ
लसिकाग्रंथी – लसिकातंत्र

गुप्त रोगों में से सिफलिस, वंक्षण लसिका कणिका गुल्म (लिफोमा ग्रेन्युलोमा विनिरियसीस एल जी वी ) या मुलायम व्रण (सॉफ्ट सोअर) के कारण गिल्टियाँ हो सकती हैं। औरतों में पुरुषों की अपेक्षा जनन अंगों का क्षेत्र थोड़ा अंदर को होता है। इसलिए औरतों में यौन रोगों से वंक्षणों में गिल्टियाँ नहीं बनतीं। औरतों में भी यौन रोगों के कारण गिल्टियाँ बन सकती हैं पर इनका पता नहीं चल पाता क्योंकि ये पेडू में काफी अंदर होती हैं।

सिफलिस से हुई गिल्टियाँ

सिफलिस (आतशक या उपदंश) के कारण बनी गिल्टियाँ काफी अलग तरह की होती हैं। इसमें गिल्टियाँ शौटी यानि रबर की गोली जैसी होती हैं। ये उंगलियों से खिसकती जाती हैं। आम तौर पर इनमें दर्द नहीं होता और ये दूर दूर अलग- अलग होती हैं। सिफलिस से हुई गिल्टियाँ बिना इलाज के ही कुछ ही हफ्तों में ठीक हो जाती हैं। परन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि सिफलिस ठीक हो गया हो। असल में यह शरीर में छिप जाता है और फिर कुछ हफ्तों बाद फिर बाहर दिखाई देने लगता है।

अन्य यौन रोगों के कारण बनी गिल्टियाँ

अन्य यौन रोगों में बनी गिल्टियाँ आम तौर पर दबाने से दर्द करने वाली और मुलायम होती हैं। वंक्षण लसिका कणिका गुल्म की बीमारी में गिल्टियाँ कुछ हफ्तों बाद फट जाती हैं और इनसे गाढ़ी पीप निकलती है। कई बार ऐसा भी होता है कि रोगी का इलाज असली यौन रोग की घाव की पर न होकर इन गिल्टियों का इलाज कर रहा होता है। कुछ यौन रोगों में रोग की घाव बहुत छोटी और कुछ ही समय रहने वाली हो सकती है (जैसे कि वंक्षण लसिका कणिका गुल्म में)। इसलिए अगर वंक्षणों में कहीं कोई गिल्टी दिखे तो जनन अंगों में यह जांच करें कि कहीं जनन अंगों में किसी किसम का घाव तो नहीं है। अगर मुँह में कोई यौन रोग का घाव हो तो, ठोड़ी या जबड़े के नीचे गिल्टी बन जाती हैं।

फाइलेरिया की गिल्टियाँ

फाइलेरिया के बुखार में वंक्षण या बगलों में गिल्टियाँ हो जाती हैं। ये गिल्टियाँ दर्द वाली और दबाने से दर्द करने वाली होती हैं। लसिका ग्रंथियाँ भी प्रज्वलन ग्रस्त दिखती हैं। बुखार ठीक होने के बाद भी गांठें सूजी रहती हैं।

 

डॉ. शाम अष्टेकर २१, चेरी हिल सोसायटी, पाईपलाईन रोड, आनंदवल्ली, गंगापूर रोड, नाशिक ४२२ ०१३. महाराष्ट्र, भारत

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