चक्कर और बेहोशी |
चक्कर और बेहोशी आम अनुभव हैं। सबसे पहले हम इनसे जुड़े कुछ शब्द ठीक से समझेंगे। आँखों के आगे अन्धेरा छा जाने और उसके बाद शिथिल पड़ जाने को बेहोशी कहते हैं। ऐसा मस्तिष्क में खून की आपूर्ति अचानक कम हो जाने से होता है। इससे कुछ समय के लिए बिलकुल होश नहीं रहता। आमतौर पर ऐसे में जमीन पर गिर जाने से शरीर और मस्तिष्क समतल हो जाते हैं। इससे सिर और मस्तिष्क में खून की आपूर्ति फिर से पूरी हो जाती है। इससे बीमार व्यक्ति कुछ ही क्षणों में वापस ठीक हो जाता है।
वर्टिगो या चक्कर एक संवेदना है जो सिर के सन्तुलन बनाने वाले हिस्से (यानि कान, अनुमस्तिष्क) में अस्थाई गड़बडी के कारण सिर चकराने से होता है। वर्टिगो के साथ आँखों के आगे अन्धेरा नहीं छाता। इस अध्याय के अन्त में इन समस्याओं के निदान के बारे में जानकारी और तालिका दी गई है। इससे आपको ये समझने में मदद मिलेगी कि किस क्रम में जानकारी लेनी है।
तंत्रिकाओं द्वारा उत्तेजित किए जाने से स्वैच्छिक पेशियों के अचानक बहुत सक्रिय हो जाने को दौरे पड़ने कहते हैं। दौरे पड़ने में पूरा शरीरी प्रभावित हो सकता है या उसका एक हिस्सा भी। यह इस पर निर्भर करेगा कि मस्तिष्क का कितना हिस्सा इसके लिए ज़िम्मेदार हैं।
नवजात शिशुओं में दौरों को पहचानने के लिए अनुभव और ध्यान से देखने की ज़रूरत होती है। अक्सर मॉं को ये दिख जाता है कि बच्चा कोई क्रिया बार बार कर रहा है। इसमें सिर्फ कोई एक पेशी समूह, अंग हाथ पैर या पूरा शरीर शामिल हो सकता है। बच्चों के दौरे वयस्कों जैसे बहुत ज़ोरदार नहीं दिखाई देते। नवजात शिशुओं में ये इतने साधारण भी हो सकते हैं जैसे आँखों की पलकों को बार-बार घुमाना, अचानक रंग में परिवर्तन, मुँह से झाग आना, हल्के से रोना या कुछ पल के लिए सॉंस रोके रखना।
वयस्कों में दौरे पड़ने के कारण होते हैं – मिर्गी, टिटनेस, ज़हर फैलना, सॉंप का काटना, सिर की चोट, मस्तिष्क में रसौली/फोड़ा/गॉंठ, मस्तिष्क संक्रमण, मस्तिष्कावरण संक्रमण और खून में शक्कर की मात्रा अति कम हो जाना ।
ज़ोरदार दौरे में गिरने से चोट या जीभ कटने का डर होता है। ऐसे दौरे में सॉंस या दिल के रुकने से मौत भी हो सकती है। दौरे का दुष्परिणाम दौरे के कारण पर निर्भर करेगा। बच्चों में तेज़ बुखार से पड़ने वाले दौरों को गीले कपड़े से बदन पोछने से रोका जा सकता है। मिर्गी से पड़ने वाले दौरे अक्सर अपने आप ही रुक जाते हैं। सिर्फ ये ध्यान रखने की ज़रूरत होती है कि व्यक्ति को दौरा पड़ते समय कोई चोट न लगे।
आक्षेप रोकनेवाला इन्जैक्शन जैसे डाईज़ेपाम या क्लोरोप्रोमाज़ीन असरकारी होती हैं। परन्तु केवल प्रशिक्षित स्वास्थ्य कार्यकर्ता ही इनका इस्तेमाल कर सकते हैं। बच्चों में इसकी खुराक तय करनी पड़ती है और साथ ही सॉंस पर भी ध्यान दिया जाना ज़रूरी होता है। ऐसे मरीज को अस्पताल पहुँचाया जाना तो ज़रूरी होता ही है।
अनेक बीमारियों के साथ कमज़ोरी लगती है। जैसे कि फ्लू या मलेरिया। ऐसे में ये कमज़ोरी मूल बीमारी ठीक हो जाने के साथ ही ठीक हो जाती है। कभी-कभी कमज़ोरी कुछ ऐसी बीमारियों से भी हो सकती है। जिनमें सॉंस फूलती है (जैसे कि हार्ट फेल होना)। पर इसके सबसे आम कारण अनीमिया और कुपोषण होते हैं।