पायरेथ्रम और पायेरेथ्रिन, औरगेनो क्लोरीन, औरगेनो फोसफोरस, कार्बामेट और औरगेनिक मरक्यूरिआल कीटनाशकों के प्रमुख प्रकार हैं। इनमें से औरगेनो क्लोरीन, औरगेनो फोसफोरस संयुग बहुत ज़हरीले होते हैं। ये दोनों ही तंत्रिका तंत्र पर असर डालते हैं। इससे मितली, सिर में दर्द, बेचैनी, भ्रम की स्थिति, त्वचा पर विचित्र सी संवेदना, पेशियों के अकड़ने और दौरों की शिकायत होती है। इसके अलावा औरगेनो फोसफोरस संयुगों से चक्कर, पुतली के सिकुड़ने और बेहोशी तक की संभवना होती है। अस्पताल में दाखिल पीड़ितों की मृत्यु भी हो सकती है। साथ दी गई तालिका में आम कीटानाशकों, उनके औद्योगिक नामों, उनके तीव्र और चिरकारी असर, इस्तेमाल के समय बरती जाने वाली सावधानियों और प्राथमिक सहायता के बारे में जानकारी दी गई है।
कीट नाशकों का छिड़काव हमेशा मुँह पर कुछ बांध कर या फिर रेसिपिरेटरों के इस्तेमाल के साथ करना चाहिए। एक आसान सी सावधानी है हवा की उल्टी दिशा में छिड़काव न करना क्योंकि उससे कीटनाशक छिड़काव करने वाले के मुँह पर आ सकता है। फव्वारा अपने से दूर रखिए। कोई सुरक्षात्मक कपड़े ज़रूर पहनने चाहिए। पर गर्मियों में ऐसा नहीं किया जाता है।
यह किसानों के फेफड़ों में फंफूद से होने वाला संक्रमण है। इसमें चिरकारी सूखी खॉंसी, साथ में बुखार और दर्द की शिकायत होती है जो किसी भी तरह की प्रतिजीवाणु दवाओं से ठीक नहीं होता। इसके बारे में कुछ जानकारी आपको श्वसन के अध्याय में मिलेगी। स्टीरॉएड गोलियों से इलाज से फायदा होता है। निदान और इलाज दोनों के लिए डॉक्टर की मदद की ज़रूरत होती है।
झाडू सफाई कर्मचारी समुदाय में धूल और विष्ठाजनित संक्रमण का जोखम होता है |
महिलाएं दुनिया में आधे से कहीं ज़्यादा काम करती हैं – खेतों में, निर्माण कार्यों में, रसोई और घरों में, लघु उद्योगों में और काम की कई और जगहों में। पुरुषों ने उन कामों पर कब्ज़ा कर लिया है जो कि शारीरिक रूप से कम थकाने वाले होते हैं पर जिनसे ज़्यादा पैसा मिलता है। उदाहरण के लिए खेतों में शरीरिक और एक जैसा मानसिक रूप से थकाने वाला काम औरतें करती हैं परन्तु जब एक मशीन मिल जाती है (जैसे ट्रेक्टर या भूंसी निकालने वाली मशीन) तो उसे पुरुष कब्जा कर लेते हैं। इसके बावजूद महिलाओं को कम वेतन मिलता है। इस तरह से समाज में महिलाओं के साथ भेदभाव, शोषण और सामाजिक अन्याय व्याप्त है। अगर हम नीचे दिए गए तथ्यों पर ध्यान दें तो कामकाजी महिलाओं की समस्याएं और भी अधिक जटिल हो जाती हैं:
यह तो साफ ही है कि ज़्यादातर औरतों को घर और बाहर अधिक काम करना पड़ता है और उन्हें कम पैसा मिलता है। उनको ख़ास तरह की सेवाओं की ज़रूरत होती है – जैसे शौचालय, शिशुघर, गर्भावस्था और गर्भपात की छुट्टियॉं, छोटे बच्चों को दूध पिलाने के लिए समय और स्थान। ये सब चीज़ें काम की जगहों पर उपलब्ध नहीं होतीं।
काम की जगह पर यौन शोषण भी काफी आम है। छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार कुछ भी हो सकता है। बहुत सी ऐसी घटनाओं का पता ही नहीं चलता क्योंकि महिला अपनी नौकरी खो बैठने के डर से चुप रह जाती है। प्रत्यक्ष रूप से यह कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं है परन्तु इससे महिला को अतिरिक्त तनाव से निपटना पड़ता है।
माथे पर भारी बोझ रीढ की हड्डी, खास कर के गर्दन को नुकसान पहुचा सकता है |
गरीबी बांटी नहीं जा सकती और पूरा परिवार ही इसकी चपेट में आ जाता है। बालश्रम बहुत से विकासशील देशों का एक अभिन्न हिस्सा है और इसके खिलाफ बहुत से कानून बन जाने के बावजूद यह आज भी मौजूद है। किसान परिवारों में से घर से बाहर चले जाने वाले बच्चे बालश्रम का मुख्य हिस्सा हैं।
पर बच्चे खेतों पर भी काम करते हैं। वो मवेशी चराते हैं, इंधन इकट्ठा करते हैं और बुआई और कटाई में हाथ बंटाते हैं। इन जगहों में समस्या इतनी अमानवीय नहीं लगती जितनी कि बीड़ी उद्योग, माचिस उद्योग, पटाखों की फैक्टिरियों, होटलों, कोठों और घरों में काम कर रहे बच्चों की। १४ साल से कम के बच्चों से फैक्टरियों में काम करवाना गैरकानूनी है। और १८ साल से कम उम्र में पूरे समय का काम करवाना गैरकानूनी है। परन्तु बहुत सारे उद्योग पूरी तरह से बच्चों पर ही चलते हैं, जो उनके लिए फैक्टरियों से बाहर या फिर घर में काम करते हैं। काम के लंबे घंटे, खराब हालात, कम वेतन, स्वास्थ्य के खतरे और विकलांगता इन बच्चों की ज़िंदगियों का हिस्सा है।
बाल मजदूरी के लिए अंतर्राष्ट्रीय चिंता आर्थिक और मानवीय स्तर की है। गरीब देशों में सस्ती बाल मजदूरी की मदद से विश्व की अर्थव्यवस्था में प्रतियोगिता की जाती है। परन्तु बहुत से लोग असल में विकासशील देशों में बाल मजदूरों की स्थिति को लेकर चिंतित रहते हैं। इन पेशों से बच्चों के स्वास्थ्य पर सीधे असर पड़ने के साथ साथ, इनसे दिमागी तनाव, शिक्षा के मौकों से वंचित होना आदि भी जुड़ा होता है। और कुछ विशेष तरह की समस्याएं जैसे यौन शोषण भी इससे जुड़े होते हैं।
बाल श्रम बहुत ही शर्मनाक चीज़ है, परन्तु इससे तब तक छुटकारा नहीं मिल सकता जबतक कि हर परिवार और देश अपने बच्चों को जीवनयापन की सुविधाएं उपलब्ध (मुहैया) नहीं करवा सकता। बाल मजदूरी बहुत शर्मनाक है, पर हाथ से काम करके हस्तकौशल सीखना बुरा नहीं है। हमारी शिक्षा प्रणाली में कौशलों से दूर किताबों और कक्षाओं पर ज़ोर होता है। बाल मजदूरी के खिलाफ अभियान चलाते समय इसपर ध्यान देना भी ज़रुरी है।