दर्द एक सबसे आम लक्षणों में से एक है। शरीर के किसी भी भाग में हुई किसी भी गड़बड़ी की सूूचना सम्वेदी तंत्रिका तन्तुओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचती है। यह तेज या हल्के दर्द के रूप में महसूस होती है। कुछ अंग जैसे त्वचा, स्वैच्छिक, पेशियों और कुछ एक संवेदी अंगों में बहुत सारी तंत्रिकाओं का जाल होता है अत: ये अंग काफी संवेदनशील होते हैं। आपने ध्यान दिया होगा कि आँख एक बहुत ही संवेदनशील अंग है। थोड़ी सी भी तकलीफ होने पर इनमें तुरन्त दर्द होने लगता है। इसी तरह शरीर के आगे के भाग की त्वचा पिछले भाग की त्वचा के मुकाबले कहीं ज़्यादा संवेदनशील होती है। इस संवेदनशीलता की तुलना शरीर के आन्तरिक अंगों जैसे पेट, आँतों, पेशाब की थैली, मस्तिष्क, फेफड़ों आदि की संवेदनशीलता से करें। ये आन्तरिक अंग आमतौर पर कम संवेदनशील होते हैं। इनमें तभी दर्द होता है जब गड़बड़ी या चोट ज़ोर की हो।
पेट या छाती में ज़ोरदार दर्द कि स्थितियॉं खास तरह के दर्द से जुड़ी हैं जिनके लिए निदान के विशेष तरीकों की ज़रूरत होती है। इस किताब में दिए गए निदान के तरीकों से आपको आत्मविश्वास के साथ निदान करने में मदद मिलेगी।
अपने गॉंव में आप इस तरह की प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा दिलाएँ जहॉं व्यक्ति को प्रथम सम्पर्क में ही फायदा हो। स्वास्थ्य कार्यकर्ता गॉंव में ही मौजूद हैं इसलिए कोई भी व्यक्ति बीमार होने के कुछ घण्टों बाद या कुछ दिनों बाद आपके पास ही आएगा। आप सामान्यत: प्राथमिक समस्याओं का इलाज करें और कुछ दिनों तक इन्तज़ार करें। ऐसा करना निमोनिया, मस्तिष्कावरण शोथ, अपेन्डिसाईटिस आदि में खतरनाक हो सकता है। ऐसे में आपको बीमारी को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए, प्रथमोपचार देनी चाहिए और बीमार को तुरन्त डॉक्टर तथा विशेषज्ञ के पास भेज देना चाहिए। बुखार, खॉंसी, उलटी आदि केवल ऊपरी लक्षण हैं। परन्तु ये कई बीमारियों के कारण हो सकती हैं – गम्भीर या छोटी मोटी। सही निदान प्रथम सम्पर्क में सम्भव भी है और ऐसा हो पाए ये अच्छा भी रहता है। निदान के लिए इस्तेमाल होने वाली चीज़ों और इस किताब में दी गई फोटो और विवरण से निदान कर पाने में काफी मदद मिलेगी। इलाज शुरू करने से पहले बीमारी के बारे में पता लगाया जाना ज़रूरी है। शुरूआती दौर में रोगनिदान से बीमारी को समझने में भी मदद मिलती है।
बुखार, उलटी, दस्त, खॉंसी, मितली (जी मिचलाना), पैरों का सूजना, छाती में दर्द, पेट में दर्द, सॉंस फूलना आदि लक्षण बहुत सारे तन्त्रों के रोगों से जुड़ होते हैं। इसलिए इनसे जुड़ी बीमारियों के निदान के लिए थोड़ी-सी कोशिश ज़रूरी होती है। साथ दी गई तालिका में कुछ लक्षणों के शरीर के विभिन्न भागों से सम्बन्ध के बारे में जानकारी दी गई है।
परन्तु कुछ अन्य लक्षण सिर्फ एक ही अंग से जुड़े होते है। जैसे कि त्वचा का कोई रोग, मुँहासे, आम जुकाम, आँखों में जलन आदि। इन लक्षणों से साफ पता होता है कि शरीर का ये ही हिस्सा प्रभावित है। आम लक्षणों के निदान में थोड़ी सी चिकित्सीय समझ की ज़रूरत होती है। निदान के बुनियादी सिद्धान्तों को समझना कोई मुश्किल नहीं है। दुर्भाग्य से स्वास्थ्य कार्यक्रमों में ये मान लिया जाता है कि स्वास्थ्य कार्यकर्ता द्वारा निदान न तो सम्भव है और न ही इसकी आवश्यकता है। इस किताब में इस स्थिति का बदलने की कोशिश की गई है। कई देशोमें पॅरामेडिक्स को इसका प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि वे सही निर्णय ले सके।
बीमार व्यक्ति अपनी तकलीफ के बारे में बताता है; जैसे बुखार, खॉंसी, कमज़ोरी, दर्द आदि। चिन्ह वो होते हैं जो चिकित्सक को रोगी की शारीरिक जॉंच से दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए बुखार एक लक्षण है परन्तु बुखार में गदर्न का अकड़न मस्तिष्कावरण शोथ (मैनेनजाइटिस) का चिन्ह है।