भारतमें सामान्यत: गर्मी के दिनोंमें हम लू लगने की और इससे कारण मौतों की खबरे सुनते है। हमारा शरीर उष्णता और गर्मी के बदलाव को सह लेता है। इस सह लेने की प्रक्रिया में पसीना आना सबसे अहम् है। पसीने के कारण शरीर की उष्णता वातावरण में निकल जाती है। जाहीर है की पसीने में पानी और नमक भी चले जाते है। इसके कारण गर्मी में पानी और नमक की अपूर्ती करना जरुरी होता है। अगर ये न हो तब गर्मी में थकान महसूस होती है।
गर्मी सह लेने का वातावरण में तरीका हवा चलना है। हवा चलने से शरीर का पृष्ट भाग ठंडा हो जाता है और पसीना भी सुखाया जाता है। इसिलिये पंखा या खुली हवा में गर्मी का ज्यादा अच्छा सामना हम कर पाते है। गर्मी में लू लगना हर किसी को नहीं होता। इसके लिये कुछ व्यक्तियोंको ज्यादा तकलीफ होने की संभावना है जैसे बच्चे या बुढे, गर्भवती, धूप में काम करनेवाले किसान या अन्य कर्मचारी, खदानोंमें काम करनेवाले श्रमजिवी, कम तंदुरुस्त व्यक्ती, मोटापन आदि। शरीर की कुछ अन्य कमीयॉं भी इसके लिये असुरक्षित पायी जाती है। जैसे पहलेसे बुखार होना, शराब के लत, नींद कम होना, गुर्दे की या दिल की बिमारी होना आदि।
हम पसीना निकलने की प्रक्रिया और शरीर में पानी और नमक की कमी पूरी करते रहने की बदौलत गर्मी सहन करते हैं। जब हमारा शरीर गर्मी को सहन नहीं कर पाता तो इससे कई एक नुकसान होते हैं। हल्के असर में थकावट, बेहोश हो जाना और आतम दाह शामिल हैं। देश भर के अलग अलग हिस्सों में से गर्मियों के मौसम में लू लगने के शिकार लोगों के बारे में खबर आती रहती है। वातावरण में बहुत अधिक गर्मी होने के कारण लू लगने से काफी ज़्यादा नुकसान हो जाता है। आमतौर पर इसके शिकार धूप या गर्म जगहों जैसे बॉएलरों में काम करने वाले लोग होते हैं।
लू लगने में असल में कोशिकाओं के प्रोटीन का ऊष्मा स्कंदन हो जाता है। इससे क्योंकि शरीर के तापमान नियंत्रण केन्द्र पर असर होता है इसलिए इसके असर भी गंभीर होते हैं और इससे कभी कभी मौत भी हो जाती है।
उष्माघात के कारण ज्यादा बुखार (गुदा पे तापमान ४० डिग्री से ज्यादा होना) मस्तिष्क पर असर और पसीना न होना ये तीन मुख्य बिंदू है। मस्तिष्क प्रभावित होने के कारण बेहोषी या दौरे हो सकते है। कभी कभार बोलचाल की गडबडी हो सकती है। अतिश्रम से उष्माघात जल्दी आ सकता है। उष्माघात में मस्तिष्क के प्रोटीन बिगडने के कारण उसका कामकाज रोकता है। इसीके कारण सारे दुष्प्रभाव होते है।