ऐसी क्रियाएं जो अन्य जीव भी करते हैं| |
मस्तिष्क का एक भाग मस्तिष्क स्तम्भ शरीर के बुनियादि कार्य जैसे श्वसन, दिल की धड़कन का नियंत्रण करता है। लिंबिक तंत्र भावनाओं, नींद और यौन क्रियाओं का नियंत्रण करता है।
प्रमस्तिष्क प्रान्तस्था सोचने, याददाश्त, सामाजिक व्यवहार, बोलने, भाषा, निर्णय करने, सोच, हिलने डुलने और व्यवहार का नियंत्रण करता है। अग्र मस्तिष्क प्रमस्तिष्क प्रान्तस्था का हिस्सा होता है और यह अन्य कामों को संभालता है जिन्हें ‘दिमागी और बौद्धिक’ कहा जा सकता है। मस्तिष्क दाये और बाये दो भागों में बंटा होता है। ज्यादातर लोगो में कॉरटैक्स का बांया हिस्सा सोचने, बोलने, भाषा, गणित और तकनीकी क्षमताओं को संभालता है। मस्तिष्क का सीधी तरफ वाला हिस्सा भावनाओं, कला, आध्यात्मिक प्रवृति और स्थानिक समझ को नियंत्रित करता है।
तंत्रिकाओं के ऊतकों की बुनियादि इकाई कोशिकाएं होती हैं। तंत्रिकाओं की दो कोशिकाएं एक दूसरे से जुडी नही होती, दोनो कोशिकाओ के बीच का स्थान ‘अन्तग्रथन’ (सायनॅप्स) कहलाता हैं। कोशिकाओं के बीच में संपर्क रसायनिक और विद्युत दोनों तरह का होता है। संकेत मस्तिष्क के खास हिस्सों में बिजली की लहर के रूप में जाते हैं और’अन्तग्रथन’ (सायनॅप्स) पर रसायनिक पदार्थके स्त्राव कर अगली तंत्रीका में संकेत संचार को आगं बढाते है या फिर मॉसपेशियॉ के सकुचन या ग्रंथियो में स्त्राव करती है। इसी के कारण मानसिक बौद्धिक कामकाज भी उर्जा-व्यवहार होता है। (उदाहरण गलत है नीचे का पैरा अपनी बात ठीक तरह से रख्रहा है )मानसिक स्वास्थ्य के मामले में भी यह तय करना कि यह स्थिति सामान्य है या असामान्य मुश्किल होता है। सभी लोगों में कुछ सामान्य गुण हो सकते हैं और कुछ असामान्य। इसके अलावा कुछ गुण एक देखने वाले व्यक्ति को सामान्य लग सकते हैं और दूसरे को असामान्य। उदाहरण के लिए एक हद तक गुस्सा चल जाता है और उस हद से ज़्यादा गुस्सा अस्वीकार्य होता है। किसी खास घटना को लेकर उदास होना सामान्य होता है, और उदासी की हालत जो ठीक ही न हो ‘अवसाद’ कहलाती है और यह सामान्य नहीं है। इसलिए कुछ ‘असामान्य’ है यह तय करना तब तो आसान होता है जब स्थिति काफी अधिक हद तक खराब हो। पर जब स्थिति सामान्य से थोड़ी सी ही अलग हो तो यह तय करना मुश्किल हो जाता है।
हमें ज़्यादातर मानसिक बीमारियों के कुछ कारणों के बारे में पता है इनके वैज्ञानिक कारण खोजे गये है । हमें पता नहीं है कि किसी व्यक्ति को चिंता विक्षिप्ति, पागलपन या व्यक्तित्व की गड़बड़ियॉं क्यों होती हैं। विज्ञान इन सभी क्षेत्रों के बारे में नई जानकारी खोजेगा। और शायद मानसिक बीमारियों के लिए भविष्य में बेहतर इलाज उपलब्ध हो जाएं।
मानसिक बीमारियॉं बहुत ही अलग अलग लक्षणों के साथ होती है, अक्सर रोगी के बजाय रिश्तेदार या परिचितों से इसका बयान आता है। निम्नलिखित लक्षणों में से एक या अनेक दिखाई दे सकते है।
अपने काम से बार बार विचलित होना। बच्चों में यह अध्ययन दोष हो सकता है।
प्रेरणा कम होने से हर दिन के काम न कर पाना या न शुरू रु करना। इच्छाशक्ती और प्रेरणा का अभाव आवसाद या गंभीर बीमारी का सूचक हो सकता है।
जरूरत से अधिक सक्रिय दिखाई देना। शरीर के किसी भाग में अनचाही हलचल दिखाई देना, जैसे कपाल या भोहे या होटो पर हलचल दिखाई देना। बेवजह खॉंसी या कराहने की आदत। अर्थहीन हलचल बार बार करते रहना, जैसे की मस्तिष्क, खुजला में नाक साफ करते रहना, गला साफ करना, कंधा हिलनाना आदि। लेकिन याद रखे की ऐसी कुछ बाते सामान्य लोग भी कभीकभी करते है। इसलिये इनका महत्त्व और कुछ लक्षण हो तभी होता है।
विचित्र स्थिती में रहना मानसिक बीमारी सुझाता है। कभीकभी इनके आविर्भाव असहज या अतिरिक्त दिखाई देते है जैसे की सामान्य बात पर बहुत ही अचरज दिखाना या बिना वजह हॅस पडना।
दुसरों की कही बात या शब्द बार बार दोहराते रहना। अपनी बात जरुरी से ज्यादा जोर लगाकर कहना, लगभग उन्माद का सूचक है। बडबडाना, चिल्लाना या असमय गाना यह भी अस्वाभाविक है।
हमारे ऑख, कान चमडी आदि ज्ञानेंद्रिय हमे बाहरी दुनिया के बारे में संवेदन देते है, जो की मस्तिष्क में पहुँचता है। मानसिक रुप से बीमार व्यक्ति वास्तव को छोडकर अन्य रंग, ध्वनी, गंध आदि बयान-अनुभव करते है। इनमें कुछ भ्रम होते है जो वास्तव के बजाय दुसरी वस्तू समझ लेते है जैसे की किसी रस्सी को सॉप या बादल को प्राणी या पेड समझना या पेड को भूत प्रेत समझना। इससे अलग कुछ संवेदनाएँ बाहरी वास्तव के बिना ही निकलती है जैसे की नींद में आवाज सुनना या भगवान के दर्शन होना या अपने विगत माता पिताओंकी आवाज सुनना।
मनोवस्था उल्लसित या दुखी हो सकती है। कुछ ज्यादा ही डर, चिंता, आनंद, दु:ख या क्रोध दिखाई देना। कभी कभी हालात और परिस्थिती के विपरित मनोवस्था दिखाई देती है, जैसे की किसी के मौत के समय हंस देना या त्यौहार के समय रोने-धोने की आदत। उन्माद-अवसाद में मनोवस्था बदलाव अक्सर दिखाई देते है।
सिर्फ बहुत पुरानी या सिर्फ ताजी घटनाएँ याद रहना लेकिन दुसरी भूल जाना या मनोविकार का सूचक हो सकता है। किसी घटना को विकृत रूप में उजागर करना जैसे की किसी शादी की घटना को अब झगडे के रूप में याद करना। व़द्धावस्था में स्मृती खोना अलझायमर स्मृतीभ्रंश का सूचक है।
कभी कभी अपना नाम, उम्र, पता या किसी का रिश्ता, शिक्षा आदि बिलकूल भूल जाना।
किसी की विचार प्रक्रिया असंगत या तर्कहीन हो सकती है और असंबद्ध बातों को जोडकर गलत रूप धारण कर सकती है। कुछ मनोविकारग्रस्त ऐसे शब्द इस्तेमाल करते है जो सिर्फ उन्ही तक सीमीत है और किसी को मालूम नही। इस शब्द का अर्थ उनके मन में जो कुछ हो औरों को नही समझ सकता। उनकी विचार प्रक्रिया अधुरी या दिशाहीन हो सकती है। वैचारिक प्रक्रिया बहुत ही तेज दौडती या काफी धीमी हो सकती है। कुछ लोगों को झुठा विश्वास होता है जैसे प्यार, शत्रुता, धोखा, बीमारी, डर, अमीरी, सत्ता, शिक्षा या योगदान आदि के बारे में गलत धारणा होना।
गंभीर मनोविकारग्रस्त अवस्था में आदमी खुद बीमार है इससे पता नही होता। इसलिये इन लोगोंको डॉक्टर के पास ले जाना पडता है वो खुद नही जाते। सामान्य मनोविकारों में अपनी बीमारी के बारे में एक समक्ष होती है जिसके कारण वे खुद डॉक्टर के पास जाते है या राजी होते है। मनोविकार के निदान के लिये इन्ही लक्षण चिन्हों से काम लेना पडता है। ऐसी कोई अन्य जॉंच नही जिसके द्वारा हम मनोविकार जान सकते है। मनोविकारग्रस्त व्यक्ति और रिश्तेदार से कही गयी बाते और डॉक्टर का निरीक्षण ये दोनो मिलाकर निदान हो जाता है।
मानसिक बीमारियॉं दो तरह की होती हैं। एक वो जिनके कोई पहचाने हुए शारीरिक कारण होते हैं (कायिक) और दूसरी वो जिनके कोई विशेष शारीरिक कारण नहीं होते हैं कायिक बीमारियों में सिफलिस, मस्तिष्क आवरण शोथ, मस्तिष्क में चोट लगना और बुढ़ापा आदि आते हैं।