ज्यादातर हारमोनों से जुड़ी हुई बीमारियों में यौन इच्छा में कमी आ जाती है। इससे या तो जनन अंग ठीक से विकसित नहीं होते या फिर यौन इच्छा में कमी आ जाती है। पीयुषिका ग्रन्थि की बीमारियों के अलावा, अवटुअतिसक्रियता, अवटुअल्पसक्रियता, डायबिटीज़, और कुशिंग संलक्षण/बीमारी यौन इच्छा को कम कर सकते हैं।
दोनों वृषणों के कम विकसित होने (छोटे आकार के होने) से पुरुष हारमोनों के स्त्रावित होने में कमी आ जाती है। ऐसे लोगों के जनन अंगों बगलों, दाड़ी और मूछों पर कम बाल उगते हैं। लिंग ठीक से तनाव नहीं होता और सम्भोग की इच्छा कम या बिलकुल नहीं होती। कभी-कभी वृषण का संक्रमण भी वृषण को नुकसान पहुँचा देता है (जैसे कि कोढ़ और कनफेड़ में)।
आखिर में व्यक्तिगत इच्छा पर निर्भर करता है। इसके लिए कोई भी सामान्य नियम नहीं बनाया जा सकता।
सम्भोग 3 से 30 मिनट तक चल सकता है। पाँच मिनट स्खलन की सबसे आम अवधि है। कई पुरुष और महिलाएँ सम्भोग की अवधि को लेकर असन्तुष्ट होते हैं और चाहते हैं कि वो इसे और अधिक बढ़ा सकें। अगर पुरुष वैसे सामान्य है और योनि में सामान्य चिकनाहट सेसम्भोग की अवधि बढ़ाई जा सकती है। सम्भवत: तीन मिनट से कम की अवधि महिला और पुरुष दोनों के लिए ही असन्तोष का कारण हो सकती है। एक बार उत्तेजित होने के बाद महिला कुछ समय बाद यौनानन्द की लहर/उच्च बिन्दू की स्थिति में पहुँच पाती है और तीन मिनट से कम में तो शायद ही कभी।
शिथिल अवस्था से लिंग का बढ़कर कड़ा हो जाना, उद्दीपन कहलाता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इसकी स्पंज जैसी थैलियों में खून भर जाता है। एक स्वस्थ पुरुष में लिंग के खड़े होने के लिए उत्तेजना का स्रोत मानसिक होता है। तनाव पूर्ण लिंग आसानी से योनि में प्रवेश कर सकता है।
यौनिक उत्तेजना से मूत्रमार्ग की ग्रन्थियाँ एक थूक जैसा पदार्थ स्त्रावित करती हैं जिससे लिंग का अन्दर जाना आसान हो जाता है। कई पुरुष इस स्त्राव को वीर्य समझ लेते हैं। यह अक्सर चिन्ता और परेशानी का कारण होता है। हमें उन्हें बताना चाहिए कि ये स्त्राव वीर्य नहीं होता। वीर्य स्खलन के समय बहता है। उसे वो हस्तमैथुन के अन्त में देख सकते हैं। दोनों द्रव एकदम अलग-अलग दिखते हैं। वीर्य गाढ़ा होता है, सफेद और अपारदर्शी होता है और इसकी मात्रा 2 से 3 मिली लीटर (छोटे चम्मच) इतना होती है। यह एक साथ निकलता है। शिश्न का स्राव लिंग के खड़े होने के साथ और स्खलन से पहले निकलता है। यह पारदर्शी, पतला होता है, और ज्यादातर इसकी मात्रा कुछ बूँद ही होती है।
जैसे पुरुषों में यह स्राव निकलता है वैसे ही महिलाओं में भी योनि में स्राव निकलता है जिससे योनि के चिकने होने में मदद मिलती है।
एक बार यौन सक्रियता की उम्र में पहुँचने के बाद (लड़कियों में 12 से 13 साल और लड़कों में 15 से 16 साल) महिलाएँ और पुरुष बुढ़ापे तक यौनिक रूप से सक्रिय रहते हैं। रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में अण्डे बनने बन्द हो जाते हैं पर यौनिक क्रिया ज़ारी रह सकती है। कुछ महिलाएँ 50 की उम्र के बाद यौन क्रिया में हिस्सा लेना छोड़ देती हैं पर बहुत-सी नहीं भी छोड़तीं। पुरुषों में बुढ़ापे तक भी शुक्राणु बनते रह सकते हैं और वो सत्तर की उम्र के बाद तक भी यौन रूप से सक्रिय रह सकते हैं हालाँकि कम ताकत और जोश से। कभी कभार लिंग मुड़ा हुआ भी होता है। इससे इसके खड़े होने और अन्दर जाने में मुश्किल होती है। ऑपरेशन से यह ठीक हो सकता है|
कुछ पुरुषों में गम्भीर निरुध्दप्रकाश होता है जिसका अर्थ है कि लिंग के शिश्न का ऊपरी सिरा की त्वचा का छेद बहुत छोटा होता है। इससे अपने आप सम्भोग नहीं रुकता, पर अगर शिश्न का ऊपरी सिरा खड़े हुए शिश्न में वापस चला जाता है, तो इससे सम्भोग के बाद सूजन और दर्द होता है। इससे पुरुष को सम्भोग से डर लगने लगता है। ऑपरेशन से समस्या का समाधान हो सकता है।
पेशाब के रास्ते के संक्रमण के कारण लिंग में दर्द और शोथ होने से सम्भोग के समय दर्द होता है। दर्द करने वाले अल्सर जैसे मुलायम व्रण में भी यौनिक सम्भोग पर रोक लगती है। परन्तु बिना दर्द वाले सिफलिस अल्सर में ऐसा नहीं होता। इन बीमारियों में प्रतिरोगाणु दवाओं से मदद मिलती है।
उच्च रक्तचाप, मिर्गी, दिमागी बीमारियों आदि से भी यौन इच्छा में कमी आ जाती है। लत – जिन लोगों को शराब की लत होती है उनमें यौन इच्छा की कमी होती है।
लिवर सिरोसिस और हैपेटाईटिस बी से भी यौन इच्छा में कमी आ जाती है। उम्र बढ़ना, लिंग के ठीक से खड़े न होने में मुश्किल आने लगती है। पुरुष इस बात को आसानी से नहीं स्वीकार पाते। पुराण की कहानी में याति नाम के राजा ने अपना यौवन वापस पाने के बदले में अपने बेटे को गद्दी सौंप दी थी। हमेशा युवा बने रहने की इच्छा दुनिया में हमेशा से रही है।